77 फीसदी आंगनवाड़ी जाने वाले नौनिहालों के निवाले पर लटकी सरकारी तलवार?

सरकारी आंकड़े के अनुसार आधार केवल 23 फीसदी बच्चों के पास है और कई राज्यों में सत्यापन का काम चल रहा है और कई राज्यों में कहा गया है कि जुलाई के अंत तक यदि आधार कार्ड नहीं बना तो भोजन नहीं मिलेगा
77 फीसदी आंगनवाड़ी जाने वाले नौनिहालों के निवाले पर लटकी सरकारी तलवार?
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कोविड के दो साल बाद जब पिछली मई, 2022 में पहली बार आंगनवाड़ी केंद्र करही गांव (मध्य प्रदेश के दूर-दराज इलाके रीवा जिले में स्थित) में सूखे भोजन का पैकट बटने के लिए आया तो आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़ रही आंचल को यह नहीं मिला। उसे कहा गया कि उसका आधार कार्ड नहीं है, इसलिए उसे यह भोजन का पैकेट नहीं मिलेगा। इस केंद्र में आंचल सहित सात बच्चों को भोजन का पैकेट नहीं मिला। इस केंद्र में कुल 20 बच्चे पढ़ने आते हैं।

इनकी उम्र तीन से पांच वर्ष की है। यहां की आंगनवाडृ़ी केंद्र की शिक्षिका ने बताया कि पूर्व में जब खाना बनता था तो सभी बच्चों को मिलता था लेकिन कोविड के आने के बाद केंद्र पर खाना बनना बंद हो गया और अब जब शुरू हुआ है तो उन बच्चों को भोजन का पैकेट नहीं दिया गया जिनका आधार नहीं बना हुआ है। यह एक प्रदेश की बात हुई, वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश के चार जिलों में काम कर रही आंगनवाड़ी केंद्रों में डाउन टू अर्थ ने जानकारी की तो पता चला कि इस बार तो बच्चों को भोजन दे दिया गया है लेकिन इस चेतावनी के साथ कि जुलाई, 2022 के बाद यदि आधार नहीं बना तो भोजन नहीं मिलेगा।

मध्य प्रदेश में आधार कार्ड की अनिवार्यता पर एक आला अधिकारी ने बताया कि प्रदेशभर में आधारकार्ड का सत्यापन युद्ध स्तर पर चल रहा है। वर्तमान में केवल 42 प्रतिशत बच्चों का ही आधार कार्ड का सत्यापन हो सका है।

हालांकि इस सत्यापन में भी देशभर के गरीब बच्चों के मांबाप दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो रहे हैं। लेकिन उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। मध्य प्रदेश के सीधी जिले से 26 किलोमीटर दूर हिनौती गांव में खेतिहर मजदूर बंभोलिया कोल कहता है, हम जैसे गरीबों के बच्चों को भी दो रोटी देने के लिए सरकार कागजात (आधार) बनाने पर तुली हुई है। ऊपर से यह तो पिछले कितने माहों से बन भी नहीं पा रहा है।

मैं भी पिछले कई माहों से कई बार मजदूरी का नागा करके स्कूल के मास्टर के पास जरूरी कागजात पहुंचाने गया लेकिन हर बार वह कोई न कोई और कागजात की मांग कर देता है। मेरे जैसे अंगूठा छाप मजदूर की यह समझ से परे बात लगती है कि तीन साल का बच्चा भी कागजात दिखाएगा तो उसे स्कूल से खाना मिलेगा। उसकी पत्नी गुस्से में कहती है, सरकार तो ऐसे कागजात मांग रही है जैसे वे हमारे बच्चों को 56 प्रकार का भोग खिला रहे हो।

खिचड़ी पाने के लिए भी अब सरकार को कागजात दिखाओ और ऊपर से तो करोना के समय तो यह भी नहीं मिला है। अब सूखा आनाज के लिए हम अपनी रोजीरोटी छोड़कर अपने बच्चों के दोपहर का भोजन पाने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं।

हाल ही में केंद्र सरकार ने उन राज्यों की फंडिंग में कटौती करने का निर्णय लिया है जो बच्चों और गर्भवती माताओं को दिए जाने वाले मुफ्त भोजन प्राप्त करने के लिए आधार आईडी सुनिश्चित नहीं करते हैं। इसके चलते लाखों गरीब परिवारों को पोषण के प्रमुख स्रोतों के बंद होने का खतरा पैदा हो गया है। ध्यान रहे कि यह कदम सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन है जिसमें आधार नंबर के अभाव में किसी भी सब्सिडी या सेवा से इनकार नहीं किया जा सकता है।

भारत का राष्ट्रीय पोषण मिशन छह महीने से छह साल की उम्र के 7. 9 करोड़ बच्चों और 1.5 करोड़ गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाओं को मुफ्त भोजन प्रदान करता है। सरकारी आंकड़े बयां कर रहे हैं कि पांच साल से कम उम्र के सिर्फ 23 फीसदी बच्चों के पास ही आधार कार्ड है। 77 फीसदी के पास नहीं है।

महिला और बाल विकास मंत्रालय के दिशानिर्देशों से पता चलता है कि मार्च, 2022 में केंद्र सरकार ने पोषण कार्यक्रम के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया गया है। इससे पहले, नवंबर 2021 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को चेतावनी दी थी कि वह इस योजना के लिए वित्तीय सहायता में कटौती करेगी और इसे केवल आधार के माध्यम से सत्यापित लाभार्थियों तक ही सीमित रखा जाएगा।

ध्यान रहे कि बच्चों के लिए आधार पंजीकरण की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट के 2017 के एक फैसले के बावजूद हुआ जिसमें कहा गया था कि बच्चों को एक विशिष्ट पहचान संख्या के अभाव में सेवाओं या लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, अप्रैल 2022 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग की रिपोर्ट में भी पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए आधार के इस्तेमाल की आलोचना की गई थी। ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 जून 2017 को एक जनहित याचिका सुनवाई करते समय दिशानिर्देश दिया था कि किसी को भी आधार न होने के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से वंचित नहीं किया जा सकता है।

देशभर में राइट टू फूड कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तमिलनाडु जैसे गरीब राज्य जिनके पास एक मजबूत और बेहतर वित्तपोषित बाल विकास सेवा ढांचा है, वे आधार के बिना लाभार्थियों का लाभ पहुंचा सकते हैं तो देश के अन्य गरीब राज्य और जो पूरी तरह से केंद्रीय वित्त पर निर्भर हैं, वे बच्चों और महिलाओं को पोषण से कैसे वंचित कर सकते हैं।
ध्यान रहे कि केंद्र सरकार ने पहली बार आधार संबंधी अधिसूचना आज से पांच साल पहले जारी की थी। की तलवार पिछले दस माह से देश भर के 12 करोड़ से अधिक नौनिहालों के निवाले (मध्यान्ह भोजन) पर लटकी हुई है। डाउन टू अर्थ ने पांच साले पहले देश भर के चौदह राज्यों में मध्याह्न भोजन पर आधार की अनिवार्यता पर जानकारी इकट्ठी जुटाई थी।

इसमें पता चला था कि केंद्र सरकार के अधिसूचना संबंधी संशोधन के बावजूद शुरुआती पांच से छह माह तक लगभग 68 फीसदी बच्चे मध्याह्न भोजन से वंचित रहे। अब यह आंकड़ा बढ़कर 77 फीसदी हो गया है। आधार से लिंक करने की केंद्र सरकार की पहली अधिसूचना (केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा 28 फरवरी, 2017) से देश के करीब 12 लाख स्कूलों में लगभग 12 करोड़ बच्चों को मिलने वाला एमडीएम प्रभावित हुआ था।

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