जलवायु संकट और महामारी के इस दौर में खा़द्य प्रणाली की एक न्यायसंगत व्यवस्था कैसी हो सकती है?
लैंगिक समानता और खा़द्य प्रणाली एक दूसरे से जुड़ी हुई है। आज दुनिया का पूरा खा़द्य-तंत्र शक्ति के असंतुलन और असमानता का शिकार है और यह महिलाओं के हितों की चिंता नहीं करता।
संयुक्त राष्ट्र ने सितंबर 2021 में होने वाले खा़द्य प्रणाली सम्मेलन से पहले जारी अपनी ‘एक्शन ट्रैक’ रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि शक्ति के असमान ढांचे को समावेशी निर्णय-प्रक्रिया में तब्दील करने की जरूरत है। इस मुश्किल समय में महिलाओं की आजीविका को बचाने के लिए उनके हितों की रक्षा करना अत्यधिक आवश्यक है।
रिपोर्ट में ऐसा सामाजिक ढांचा बनाने की जरूरत बताई गई है, जो गरीबी कम करने के मुहावरे से आगे जाकर उन्हें रोजगार दिलाए, जिससे वे अपने लिए पैसा जुटा सकें और संपत्ति बना सकें।
असंतुलन
एक सरकारी पैनल की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और भूमि की उत्पादकता घटने का महिला किसानों पर तुलनात्मक तौर पर ज्यादा असर पड़ता है। इससे उन्हें उच्च स्तर वाले मोटापे और गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ता है।
किसी क्षेत्र की मूल निवासी महिलाएं वहां, भूख और कुपोषण मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। दुनिया में ऐसी महिलाओं की तादाद 18.50 करोड़ है, लेकिन उनके अधिकारों की सीमा और उसके हनन ने एक समान खाद्य प्रणाली को महिलाओं की पहुंच से दूर रखा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, युवाओं का शहरों की ओर पलायन आर्थिक भूमिकाओं में लैंगिक प्रकृति पर असर डालता रहा है, चाहे वह कोरोना वायरस महामारी के दौरान रहा हो या उससे पहले। इस तरह का पलायन उन दोनों जगहों के बीच अंतर को बढ़ाता है, जहां अनाज पैदा होता है और जहां अनाज का उपभोग किया जाता है। इससे लोगों के खानपान समेत उनके जीने के तरीके पर असर पड़ सकता है।
कोरोना महामारी का प्रभाव भी लैंगिक तौर पर तटस्थता के साथ नहीं पड़ा है। इसने पहले से ज्यादा महिलाओं को गरीबी, खाद्य असुरक्षा, कुपोषण और बीमारियों के गर्त में ढकेला है। संयुक्त राष्ट्र की 2020 की एक रिपोर्ट में इस ओर इशारा किया गया है कि किस तरह कोरोना महामारी ने महिलाओं की गरीबी दर को बढ़ाया है और उनकी खा़द्य असुरक्षा की स्थिति को और बिगाड़ दिया है।
ऑक्सफेम की 2019 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण महिलाएं खाद्य असुरक्षा से बुरी तरह प्रभावित हैं और 2017 तक दुनिया भर में उनकी तादाद 82.10 करोड़ थी। 2019 तक कम से कम ऐसे 31 अफ्रीकी देश थे, जो खाने के लिए बाहरी मदद पर निर्भर थे। ऑक्सफेम 20 कल्याणकारी संगठनों का ऐसा मंच है जो दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन की दिशा में काम करता है।
विकासशील देशों में खेतों में काम करने वाले कार्यबल का लगभग 50 फीसद महिलाएं हैं, जिन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उनके पास जमीन के अधिकार सीमित होते हैं, मालिकाना हक के लिए उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। इतना ही नहीं, मेहनत का हक मिलने के बजाय उन्हें ऐसे कामों में लगाया जाता है, जिससे कोई आमदनी नहीं होती।
अधिकार-विहीन होने का असर उनके खानपान पर पड़ता है। वह सबसे अंत में और कम खाना खाती है। ऐसा देखा गया है कि जिन महिला किसानों का अपनी जमीन और खेती पर नियंत्रण होता है, उनका खानपान भी बेहतर होता है।
समावेशी व्यवस्था की जरूरत
उप-सहारा अफ्रीका के ग्रामीण क्षे़त्रों में दिमित्रा क्लब जैसा संगठन पिछले एक दशक से काम कर रहा है, जिसमें महिलाएं नेतृत्वकर्ता की भूमिका में हैं।
इन समूहों में उनके साथ ऐसे पुरुष भी शामिल हैं, जो लैंगिक असमानता को कम करने के लिए काम करते हैं। ये समूह खानपान की आदतों पर प्रतिबंधों को चुनौती देकर कुपोषण से लड़ते हैं, जलवायु परिवर्तन के लिए काम करते हैं, और एक ऐसी सहकारी व्यवस्था बनाते हैं जिसमें उन लोगों को कर्ज न लेना पड़े।
संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि देशों के स्तर पर और क्षेत्रीय स्तर भी ऐसे तमाम संगठन बनाए जाने चाहिए, जो संस्था के तौर पर खेती को मजबूत करें और खाद्य तंत्र की एक समावेश प्रणाली बनाने का प्रयास करें। उसने जोर दिया कि ऐसी नीतियां बनाने और उनके रास्ते में आने वाली बाधाओं को दूर करने की जरूरत है, जिनसे लोगों को खाने का, घर पाने और स्वस्थ रहने का अधिकार मिले।
रिपोर्ट में जर्मनी के उस दोहरी प्रशिक्षण व्यवस्था का उदाहरण भी दिया गया है, जिसमें स्कूली स्तर पर बच्चों को रोजगार और बेहतर आजीविका के रास्ते बताए जाते हैं। जिसमें उन्हें बेहतर तरीके से खेती करने के साथ ही अन्य विशेष योग्यता वाले तमाम काम सिखाए जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने जोर देकर कहा है कि ऐसे असमान खाद्य-तंत्र को खत्म किए जाने की जरूरत है, जो असामनता को बढ़ाता है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि सरकारों, व्यवसायियों और संगठनों को ऐसा तंत्र बनाने के लिए कहा है, जिससे लोगों को न्यायसंगत आजीविका मिल सके।