केंद्र सरकार लगातार दावा कर रही है कि देश में खाद्यान्न भंडार की कमी नहीं है। लेकिन ऐसा बार-बार क्यों कहा जा रहा है? सरकार बेचैन क्यों है? यह जानने के लिए खाद्यान्न स्टॉक के ताजा आंकड़े देखे जाने चाहिए।
केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के 30 सितंबर 2022 को जारी आंकड़े बताते हैं कि केंद्रीय भंडार में लगभग 232 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गेहूं और 209 एलएमटी चावल है। जबकि इससे पहले 1 सितंबर 2022 तक चावल 279.52 लाख टन और गेहूं 248.22 लाख टन यानी कुल 492.85 लाख टन खाद्यान्न भंडार में था।
यह भंडार लगातार कम हो रहा है। जनवरी 2022 में केंद्रीय भंडार में 551.66 लाख टन गेहूं-चावल था। और अगर पिछले साल से तुलना करें तो पिछले 1 सितंबर 2021 को केंद्रीय भंडार में 786.19 लाख टन अन्न था, जिसमें चावल की मात्रा 268.32 लाख टन और गेहूं 517.87 लाख टन शामिल था।
यहां उल्लेखनीय है कि रबी सीजन 2021-22 में सरकारी खरीद बहुत कम होने के कारण गेहूं का भंडार लगातार घट रहा है। लेकिन खरीफ विपणन सीजन 2022-23 में चावल के उत्पादन को लेकर बनी असमंजस की स्थिति ने केंद्रीय भंडार के प्रति चिंता बढ़ा दी है।
केंद्रीय कृषि एवं कृषक मंत्रालय के आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी खाद्यान्न उत्पादन के प्रथम अनुमान के मुताबिक चावल के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 6.05 प्रतिशत कमी आ सकती है। अनुमान है कि 2022-23 में 1049.9 लाख टन चावल का उत्पादन होगा, जबकि पिछले साल चावल का कुल उत्पादन 1117.6 लाख टन उत्पादन हुआ था। यानी कि इस साल 67.7 लाख टन उत्पादन कम हो सकता है।
हालांकि यह उत्पादन अनुमान सितंबर के आखिरी सप्ताह में हुई भारी बारिश से पहले का है। सितंबर 22-23 के बाद उत्तर भारत में हुई भारी बारिश के कारण धान की तैयार फसल को काफी नुकसान पहुंचा है। खासकर सरकारी भंडार में बड़ी भूमिका निभाने वाले पंजाब-हरियाणा में इस बरसात के कारण धान की फसल की बर्बादी की खबर है।
सरकारी खरीद की चुनौती
एक अक्टूबर 2022 से पंजाब-हरियाणा में धान की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है, लेकिन अभी किसान बारिश के कारण भीगी धान के सूखने का इंतजार कर रहे हैं। हरियाणा के बल्लभगढ़ उपमंडल के किसान जोगेंद्र कहते हैं कि अभी यह देखना है कि नमी वाली धान जब मंडियों में पहुंचेगी तो मंडी कर्मचारी क्या रुख अपनाते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि धान में तय मात्रा से अधिक नमी होने पर सरकारी एजेंसियां धान नहीं खरीदती हैं।
धान की खरीद केंद्र व राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। हालात लगभग गेहूं की सरकारी खरीद जैसे हो गए हैं। गौरतलब है कि रबी सीजन 2022-23 में गेहूं की खरीद का लक्ष्य 444 लाख टन रखा गया था, लेकिन सरकार केवल 187.92 लाख टन ही खरीद कर पाई थी।
खरीद कम होने के दो कारण थे। एक तो, मार्च-अप्रैल में बेमौसमी भीषण गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन घट गया और दूसरा यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से वैश्विक खाद्य संकट के चलते गेहूं के दाम काफी बढ़ गए थे, जिसका फायदा उठाने के लिए निजी व्यापारियों ने किसानों से सीधे गेहूं की खरीद कर ली थी। हालांकि बाद में सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
गेहूं संकट जैसे हालात बने
गेहूं संकट जैसे हालत अब चावल के साथ भी हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है, वैश्विक खाद्य संकट बना हुआ है, जिसके चलते चावल की कीमतें बढ़ती जा रही हैं।
केंद्रीय उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल के मुकाबले चावलों के रिटेल के दामों में 8.39 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। जबकि होलसेल के दामों में यह वृद्धि 8.85 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। अभी सरकार के लिए चुनौती त्यौहारी सीजन में चावल के दामों में कमी लाना है।
उधर चावल की बढ़ती मांग को देखते हुए निजी व्यापारियों ने किसानों से संपर्क करना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश-हरियाणा बॉर्डर पर स्थित होडल के एक चावल व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक कीमत पर धान की खरीद शुरू कर दी है।
इस साल सामान्य धान की एमएसपी 2040 रुपए प्रति क्विंटल है और ग्रेड ए धान की एमएसपी 2060 रुपए प्रति क्विंटल है। निजी व्यापारियों द्वारा धान की खरीद शुरू करने और साथ ही साथ धान का उत्पादन कम होने से सरकारी खरीद कम रहने की आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं।
केंद्रीय भंडार पर संकट
केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्रालय 30 सितंबर 2022 को लगभग 232 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) गेहूं और 209 एलएमटी चावल है। जबकि केंद्र सरकार के बफर स्टॉक के नियमों के मुताबिक 1 अक्टूबर 2022 तक केंद्रीय पूल में 102.50 लाख टन चावल और 205.80 लाख टन गेहूं रहना चाहिए। यानी कि गेहूं का भंडार बफर नियमों की तय सीमा के करीब पहुंच चुका है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि गेहूं की सरकारी खरीद बंद हो चुकी है, इसलिए गेहूं का भंडार बढ़ने की कोई संभावना नहीं है। जबकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत गेहूं की आपूर्ति सरकार को करनी है।
यहां यह गौरतलब है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत लगभग 79.85 करोड़ परिवारों को मुफ्त राशन देने की योजना दिसंबर 2022 तक बढ़ा दी गई है। ऐसे में सरकार को अक्टूबर 2022 से दिसंबर 2022 के दौरान 119.62 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न (21.01 लाख टन गेहूं और 98.61 लाख टन चावल) वितरित करना है।
इसका आशय है कि 1 जनवरी 2022 को केंद्रीय पूल में गेहूं की मात्रा घटकर 184.79 लाख टन रह जाएगी, जबकि बफर नियमों के मुताबिक हर साल एक जनवरी को 138 लाख टन गेहूं केंद्रीय पूल में रखा जाता है। दरअसल, यहां खास बात यह है कि इसी बफर नियमों को बनाए रखने के लिए केंद्रीय खाद्य एवं सावर्जनिक वितरण मंत्रालय ने सरकारी राशन में गेहूं की बजाय चावल की मात्रा बढ़ा दी है।
मंत्रालय का दावा है कि एनएफएसए अन्य कल्याणकारी योजनाओं के तहत स्टॉक की आवश्यकता को पूरा करने के बाद भी एफसीआई के पास बफर मानदंडों से अधिक आराम से स्टॉक होगा। अनुमान है कि 1 अप्रैल 2023 तक, लगभग 113 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 236 लाख मीट्रिक टन चावल सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद केंद्रीय पूल में 75 लाख मीट्रिक टन गेहूं और 136 लाख मीट्रिक टन चावल के बफर मानदंडों के मुकाबले उपलब्ध होंगे।
मंत्रालय का कहना है कि आगामी खरीफ विपणन सीजन 2022-23 (खरीफ फसल) के दौरान 518 लाख मिट्रिक टन चावल की मात्रा की खरीद का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले साल इस अवधि 2021-22 (खरीफ फसल) में वास्तव में 509.82 लाख मिट्रिक टन चावल की खरीद की गई थी। लेकिन उत्पादन में आई कमी और निजी व्यापारियों द्वारा चावल की खरीद में सक्रियता को देखते हुए यह लक्ष्य हासिल हो पाएगा कि यह समय बताएगा।
ऐसा नहीं है कि सरकार इस बात को लेकर चिंतित नहीं है। सरकार की चिंता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय खाद्य सचिव सुंधाशु पांडेय पिछले लगभग चार दिन से तमिलनाडु के दौरे पर हैं, जहां इस साल चावल की पैदावार अच्छी हुई है और अब तक केवल तमिलनाडु ही है, जहां से 1.99 लाख टन चावल की खरीद हुई है।
कितनी है खपत
भारत में चावल की कुल खपत होती है, केंद्र सरकार की एजेंसी एनएसओ के आंकड़े काफी पुराने हैं, लेकिन अमेरिकी एजेंसी यूएसडीए ने जून 2022 में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत में 2021-22 में 1,095 लाख टन चावल की खपत का अनुमान लगाया था।
अगर इसी आंकड़े के आधार पर चालू वित्त वर्ष में चावल की खपत और उत्पादन (1049.9 लाख टन) से तुलना की जाए तो इस साल भारत में लगभग 45 लाख टन चावल की कमी पड़ सकती है।
शायद यही वजह है कि सरकार ने सबसे पहले चावल के निर्यात पर पाबंदी लगाने का निर्णय लिया है। चावल निर्यात के मामले में भारत पूरी दुनिया में अव्वल है और 2021-22 में भारत ने 212.3 लाख टन चावल का निर्यात किया था।