कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के कारण स्कूल बंद किए जा चुके है। इस वजह से दुनिया भर के 320 मिलियन (32 करोड़) बच्चों को स्कूली भोजन नहीं मिल पा रहा है। विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने 23 मार्च, 2020 को जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में ये बातें कही है।
डब्ल्यूएफपी ने कहा है कि संगठन 37 देशों में लगभग 9 मिलियन बच्चों को स्कूल में मिलने वाले भोजन कार्यक्रमों के माध्यम से भोजन उपलब्ध कराता है, जो स्कूल बन्द होने के कारण उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
जो बच्चे स्कूल भोजन कार्यक्रम के माध्यम से भोजन प्राप्त कर रहे थे, वे ज्यादातर गरीब परिवारों से थे और स्कूलों के बंद होने से मुश्किल हालात में पहुंच गए हैं।
डब्ल्यूएफपी के स्कूल फीडिंग निदेशक कारमेन बरबैनो ने कहा, "इस महामारी का दुनिया भर के स्कूली बच्चों पर, खासकर विकासशील देशों में विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है।" उन्होंने आगे कहा, “कमजोर घरों के बच्चों के लिए उचित भोजन का एकमात्र स्त्रोत स्कूली भोजन ही है। हम ऑनलाइन लर्निंग की ओर शिफ्ट हो सकते हैं, लेकिन ऑनलाइन खाने की ओर नहीं। इस समस्या के समाधान की जरूरत है, जिस पर हम काम कर रहे हैं।“
डब्ल्यूएफपी ने स्कूली बच्चों को वैकल्पिक उपायों के जरिए भोजन मुहैय्या कराने के लिए कमर कस ली है।
अभी डब्ल्यूएफपी सरकारों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है कि स्कूली बच्चों और उनके परिवारों को कोविड-19 संकट के दौरान, भोजन और पोषण संबंधी जरूरतें पूरी होती रहें।
इस संगठन ने बच्चों को भोजन प्रदान करने के लिए कुछ वैकल्पिक तरीकों का प्रस्ताव दिया है। इसमें भोजन की जगह घर तक राशन पहुंचने, खाने की होम डिलीवरी और नकदी या वाउचर देने का प्रावधान शामिल है। डब्ल्यूएफपी साफ पानी और स्वच्छता तक पहुंच में सुधार के लिए भागीदारों के साथ मिल कर भी काम कर रहा है।
भारत की स्थिति
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार, भारत में 3 से 6 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 358.33 लाख बच्चे मिड-डे मील योजना से लाभान्वित होते हैं। भारत में भी कोविड-19 बीमारी फैलने के कारण स्कूल और कॉलेज बंद हो गए हैं।
इनमें से ज्यादातर बच्चों के लिए पौष्टिक आहार का एकमात्र स्त्रोत स्कूली भोजन ही है। सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन बच्चों तक भोजन पहुंचे।
भारत में खाद्य सुरक्षा मुद्दों पर काम करने वाले व्यक्तियों और संगठनों के एक अनौपचारिक नेटवर्क, राइट टू फूड कैंपेन ने प्रधानमंत्री के नाम एक खुला खत भेजा है। इसमें परिचालन-स्तर के बदलाव और सबके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की गई है।
पत्र में कहा गया है, “छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं सहित सभी लक्षित समूहों को पोषण/भोजन घर-घर तक पहुंचाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। अंडे, दालें, तेल, और अन्य वस्तुओं के रूप में घर तक राशन पहुंचाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया और 18 मार्च को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि सभी राज्यों को एक समान नीति के साथ सामने आना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोविड -19 के प्रसार को रोकने के क्रम में बच्चों के भोजन और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।”
पत्र में कहा गया है कि सरकार यह सुनिश्चित करें कि हर किसी को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन मिल सके। इसमें उपाय भी बताए गए है कि दुकानों में भीड़ न पहुंचे, इसलिए लोग बारी-बारी से आ कर अपना राशन ले सकते है या राशन की होम डिलीवरी की सुविधा दी जा सकती है।
पत्र में कहा गया है कि विभिन्न उपायों के जरिए बेसहारा, बेघर और प्रवासी मजदूरों को पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने इसी तर्ज पर काम करना शुरू भी कर दिया है।