आपने विदेशों में मनाए जाने वाले हैलोवीन फेस्टिवल के बारे में तो सुना ही होगा। दरअसल इस त्योहार को मनाने के पीछे एक मान्यता है कि इस दिन भूत-प्रेत और आत्माएं धरती पर आती हैं, इसलिए इस त्योहार को मनाने के लिए लोग अपने घरों और बच्चों को भूतों की तरह सजाते हैं। इस दौरान पकाए जाने वाले व्यंजनों को भी डरावना आकार दिया जाता है।
यह तो हुई पश्चिमी देशों की बात, लेकिन क्या आपको पता है कि कुछ ऐसा ही त्योहार अपने देश में भी मनाया जाता है? भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में दीवाली के एक दिन पहले भूत चतुर्दशी नामक एक त्योहार मनाया जाता है। इस दिन अपने पूर्वजों की याद में 14 दीये जलाए जाते हैं, जिसे चौदह प्रदीप कहा जाता है। साथ ही इस दिन चौदह शाक (साग) नामक व्यंजन भी बनाया जाता है, जिसमें 14 प्रकार के शाक का उपयोग किया जाता है। इन शाकों को जिस पानी से धोया जाता है, उसे पूरे घर में छिड़का जाता है। मान्यता है, कि ऐसा करने से पूर्वजों का आशीर्वाद बना रहता है।
भूत चतुर्दशी के दिन पकाए जाने वाले चौदह शाक व्यंजन में जिन शाकों का उपयोग किया जाता है, वे हैं- सूरन के पत्ते (आमोरफोफैलस कंपनुलेटस), बथुआ साग (चेनोपोडियम अल्बम), केउ साग (चीलोकॉस्टस स्पेचीयोसस), कसोंदी साग (कासिया ओक्किडेंटलिस), सरसों साग (ब्रासिका रापा), नीम (अजदिरचता इंडिका), जयंती (सेस्बानिया सेस्बन) गरुंडी (अलतेरननथेरा सेसिलिस), गुरुचि (टिनोसपोरा कोर्डिफोलिया), परवल के पत्ते (ट्रायकोसेंथस दायोका), लसोड़ा (कोर्डिया डायकोटोमा), हिंग्चा साग (एनहाइड्रा फ्लक्यूअंस), घेंटू साग (क्लेरोडेंड्रम स्पलेंडेंस) और सुशनी साग (मर्सेलिया कुआड्रिफोलिया)। हालांकि वर्तमान में इनमें से कई प्रकार के शाक आसानी से नहीं मिल पाते हैं, इसलिए लोग उपलब्धता के अनुसार 14 प्रकार के शाक का उपयोग यह व्यंजन बनाने के लिए करते हैं। 16वीं शताब्दी में अपनी पुस्तक “कृत्य-तत्व” मे रघुनंदन ठाकुर ने पहली बार भूत चतुर्दशी के दिन चौदह शाक खाने की परंपरा का जिक्र एक श्लोक में किया है-
ओलोंग केमुकबास्तुकोंग, सरशोपोंग निंबोंग जोयांग, शलिंचिंग हिलमोचिकंचो पोतुकोंग शेलुकोङ्ग गुरुचींतोथा। वोन्तकिंग सुनीशोन्नोकोंग शिब्दीने खादोंती जे मनोबाह, प्रेतोतोंग नो चो जानती कार्तिक दिने कृष्णे चो वुते तिथौ॥ अर्थात, जो लोग कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को 14 प्रकार के शाक खाते हैं, उन्हें प्रेतों की छाया छू भी नहीं सकती।
ऋग्वेद के सूक्त 6/24/4 के अनुसार, पूर्वी भारत में शाकद्वीप नामक एक स्थान था, जहां आर्य निवास करते थे। आर्य लोग भोजन में मुख्य रूप से हरी पत्तेदार सब्जियों का उपयोग करते थे, जिन्हें सामूहिक रूप से शाक कहा जाता था। ये लोग बाद में भारत के विभिन्न हिस्सों में जाकर बस गए और साकलद्वीपी ब्राह्मण कहलाए। ऐसी मान्यता है कि शाक चतुर्दशी मनाने की शुरुआत साकलद्वीपी ब्राह्मणों ने ही की थी। महाभारत के 13वें अध्याय के 84वें श्लोक के अनुसार, एक बार युधिष्ठिर भी शाकद्वीप स्थित शाकम्भर तीर्थ गए थे, जहां सिर्फ शाक का सेवन करने वाली शाकम्भरी देवी विराजमान थीं। युधिष्ठिर ने वहां 14 दिनों तक पूजा करने के दौरान शाकंभरी देवी को 14 प्रकार के शाक का भोग लगाया था।
चरक संहिता के अनुसार, शीत ऋतु की शुरुआत में जलवायु में ठंडक और गर्माहट दोनों महसूस होते हैं, ऐसे में सर्दी-जुकाम और बुखार जैसी बीमारियां लोगों को अपनी चपेट में ले सकती हैं। अतः औषधीय गुणों से युक्त शाक-सब्जियों के सेवन से इन बीमारियों से बचा जा सकता है।
शाक खाने का है वैज्ञानिक आधार
बचपन से ही हमें हरी पत्तेदार सब्जियां खाने के लिए हमेशा प्रेरित किया जाता रहा है। इसका मुख्य कारण इन शाक-सब्जियों में निहित पोषक तत्व हैं, जो हमारे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बेहद आवश्यक हैं। चौदह शाक में उपयोग किए जाने वाले शाकों के औषधीय गुणों की पुष्टि वैज्ञानिक शोधों से भी होती है। इंटरनेशनल आयुर्वेदिक मेडिकल जर्नल में वर्ष 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि इन शाकों के सेवन से श्वसन संबंधी मौसमी बीमारियों से तो बचाव होता ही है, साथ ही यह दमा, बुखार, गैस्ट्रिक इत्यादि रोगों से बचाता है।
वर्ष 2007 में जर्नल ऑफ मेडिसिनल एरोमैटिक प्लांट साइंस बायोटेक में प्रकाशित एक शोध के अनुसार घेटू साग का सेवन बुखार, दमा एवं ब्रोंकाइटिस के उपचार में कारगर है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ लाइफ साइंस एंड फार्माकॉलॉजी रिसर्च में वर्ष 2012 में प्रकाशित एक शोध बताता है कि सुशनी साग हमारी तंत्रिका तंत्र के लिए एक टॉनिक का काम करता है और अनिद्रा भी दूर करता है।
वर्ष 2011 में फार्माकॉलॉजी ऑनलाइन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बथुआ साग न सिर्फ लीवर को स्वस्थ रखने में मदद करता है, बल्कि पैरासिटामोल के अत्यधिक सेवन की वजह से विकृत लीवर को ठीक भी कर सकता है। इसी प्रकार चौदह शाक में उपयोग होने वाले आंय शाकोन का भी अपना-अपना औषधीय महत्व है।
व्यंजन - चौदह शाकसामग्री:
पुस्तक बंगाली कुकिंग : |
लेखक: चित्रिता बनर्जी प्रकाशक: अलेफ बुक कंपनी मूल्य: Rs 299/- यह किताब पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में मनाए जाने वाले त्योहारों और उन अवसरों पर खाए जाने वाले व्यंजनों के बारे में बताती है। साथ ही इन व्यंजनों को पकाने की विधियों का भी समावेश इस किताब में किया गया है। |