खाने की कमी से जूझता हर दसवां इंसान, 310 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है पोषक आहार

दुनिया के सामने बढ़ती भूख ही इकलौती समस्या नहीं है। सेहतमंद आहार जो स्वस्थ आबादी के लिए जरूरी है वो भी लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है
2022 में खाली पेट सोने को मजबूर थे 73.5 करोड़ लोग; फोटो: आईस्टॉक
2022 में खाली पेट सोने को मजबूर थे 73.5 करोड़ लोग; फोटो: आईस्टॉक
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दुनिया का हर दसवां इंसान खाने की कमी से जूझ रहा है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो 2022 में दुनिया के करीब 73.5 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर थे। गौरतलब है कि 2019 के बाद से अब तक करीब और 12.2 करोड़ लोगों को भूख की मार झेलनी पड़ी है। इस बारे में संयुक्त राष्ट्र जारी नई रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में जहां दुनिया की 7.9 फीसदी आबादी आहार की कमी से त्रस्त थी वहीं 2022 यह आंकड़ा बढ़कर 9.2 फीसदी पर पहुंच गया है।

यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट "द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2023" में सामने आई है। इस रिपोर्ट को खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अन्तरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने संयुक्त रूप से जारी किया है।    

रिपोर्ट ने दुनिया भर में बढ़ती इस भुखमरी के लिए कोविड-19 महामारी  और बार-बार आने वाली मौसमी बाधाओं के साथ दुनिया भर में होते हिंसक टकरावों को माना है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस बढ़ती भूख के लिए काफी हद तक महामारी और यूक्रेन में जारी युद्ध जिम्मेवार है। अनुमान है कि यदि महामारी न आई होती और यह युद्ध न होता तो करीब 12 करोड़ लोग समस्या से ग्रस्त नहीं होते।

भूख की इस समस्या से पार पाने में कुछ हद तक एशिया और दक्षिण अमेरिका ने सफलता हासिल की है। मगर अफ्रीका, पश्चिम एशिया और  कैरीबियाई क्षेत्रों में यह समस्या अभी भी गंभीर चुनौती बनी हुई है।

रिपोर्ट की मानें तो अफ्रीका अब भी सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है, जहां हर पांचवा इंसान खाने की कमी से पीड़ित है। देखा जाए तो यह आंकड़ा वैश्विक औसत की तुलना में दोगुना है। आंकड़ों के अनुसार जहां अफ्रीका की 20 फीसदी आबादी खाने की समस्या से जूझ रही है। वहीं एशिया में 8.5 फीसदी, दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन में 6.5 फीसदी और ओशिनिया की सात फीसद आबादी इस समस्या से पीड़ित है।

गौरतलब है कि महामारी के समय जो आर्थिक मंदी के बादल छाए थे, वो 2021 में छंटना शुरू हुए थे, लेकिन 2022 में एक बार फिर आर्थिक सुधार की धुरी धीमी हो गई। यूक्रेन में जारी युद्ध के साथ-साथ भोजन, कृषि के लिए जरूरी इनपुट के साथ ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने हाशिए पर जीवन व्यतीत कर रही आबादी के रोजगार और आय पर बुरा असर डाला है, जिससे बढ़ती भुख की समस्या को कम करना मुश्किल हो गया है।

अनुमान है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो 2030 तक करीब 60 करोड़ लोग लम्बे समय से पोषण की कमी से जूझ रहे होंगें। ऐसे में सतत विकास से जुड़े लक्ष्यों के तहत जो भुखमरी को जड़ से दूर करने का लक्ष्य रखा गया है वो कैसे हासिल होगा यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

310 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है पोषक आहार

दुनिया के सामने बढ़ती भूख ही इकलौती समस्या नहीं है। सेहतमंद आहार जो स्वस्थ आबादी के लिए जरूरी है वो भी लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक पोषक आहार दुनिया भर में करीब 310 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है।

रिपोर्ट को जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने अपने वीडियो सन्देश में कहा है कि, “हमें सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को बचाने के लिए तत्काल ठोस वैश्विक पहल की जरूरत है।“ उनके मुताबिक इससे बचने के लिए हमें संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जैसे खाद्य असुरक्षा में योगदान देने वाले विभिन्न संकटों और व्यवधानों के खिलाफ अपनी सहनसक्षमता को विकसित करना होगा।

पोषक आहार की कमी बच्चों के विकास को भी प्रभावित कर रह है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर पांच वर्ष से कम आयु के करीब 14.8 करोड़ बच्चे स्टंटिंग यानी नाटेपन का शिकार हैं। वहीं साढ़े चार करोड़ बच्चों का वजन उनकी आयु के हिसाब से कम है। इसी तरह करीब 3.7 करोड़ बच्चों का वजन सामान्य से कहीं ज्यादा है।

इस बारे में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि “बच्चों के जीवित रहने के साथ उनके फलने-फूलने और विकास की राह में कुपोषण एक बड़ा खतरा है।”

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों में पोषण की स्थिति कहीं ज्यादा खराब है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 38.5 फीसदी बच्चे स्टंटिंग का शिकार थे वहीं शहरों में यह आंकड़ा 22.4 फीसदी दर्ज किया गया। वहीं इसके विपरीत पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बढ़ते वजन की समस्या शहरों में कहीं ज्यादा विकट है।

आंकड़ों के मुताबिक जहां शहरों में रहने वाले 5.4 फीसदी बच्चे बढ़ते वजन का शिकार हैं वहीं गांवों के लिए यह आंकड़ा 3.5 फीसदी दर्ज किया गया है। ऐसे में यह जरूरी है बच्चों को संतुलित आहार मिल सके इसपर ध्यान दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं रिपोर्ट के अनुसार बच्चों और किशोरों को कम पोषक और बहुत ज्यादा प्रोसेस किए खाद्य पदार्थों से बचाना जरूरी है।

भले ही 2022 में गंभीर रूप से खाद्य-असुरक्षा का सामना करने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आई है लेकिन इसके बावजूद अभी भी करीब 90 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं यह आंकड़ा 2019 की तुलना में 18 करोड़ ज्यादा है।

यदि महिलाओं और पुरुषों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो महिलाओं में के लिए यह समस्या कहीं ज्यादा विकट है। हालांकि खाद्य असुरक्षा के मामले में महिलाओं और पुरुषों के बीच जो लैंगिक अंतर महामारी के कारण बढ़ गया था वो 2021 में 3.8 फीसदी से घटकर 2022 में 2.4 फीसदी रह गया है।

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