हर मिनट भूख के कारण औसतन 11 लोग दम तोड़ रहे हैं। जिसके लिए काफी हद तक कोविड-19, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है। यह जानकारी हाल ही में ऑक्सफेम द्वारा जारी नई रिपोर्ट द हंगर वायरस मल्टीप्लाइज में सामने आई है| अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 15.5 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं, जोकि पिछले साल की तुलना में 2 करोड़ ज्यादा है।
दुख की बात यह है कि इनमें से दो-तिहाई सिर्फ इसलिए भुखमरी का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनके देश सैन्य संघर्ष में लगे हुए हैं। हालांकि देखा जाए तो हम में से बहुत से लोगों के लिए यह महज यह कुछ आंकड़ें हैं पर इनका वो दर्द वही महसूस कर सकते हैं जिन्होंने इस स्थिति का सामना किया है। जब से यह महामारी शुरू हुई है, तब से अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करने वाले लोगों की संख्या में छह गुना इजाफा हुआ है, जो बढ़कर 5.2 लाख से ज्यादा हो गई है।
महामारी शुरु होने के बाद से संघर्ष, भुखमरी के लिए जिम्मेवार सबसे बड़ा कारण है। यदि 23 संघर्ष-ग्रस्त देशों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उनमें करीब 10 करोड़ लोग इसके चलते खाद्य संकट का सामना करने को मजबूर हैं। वहीं विडंबना देखिए वैश्विक स्तर पर पिछले साल सेना पर किए खर्च में करीब 2.7 फीसदी का इजाफा किया गया है, जो करीब 3.8 लाख करोड़ के बराबर है| यह रकम इतनी है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी को रोकने के लिए आवश्यक जरूरतों को छह बार से ज्यादा पूरा कर सकती है।
वहीं जून के मध्य तक के आंकड़ों को देखें तो इथियोपिया, मेडागास्कर, दक्षिण सूडान और यमन में भीषण अकाल की स्थिति का सामना करने वाले लोगों की संख्या 521,814 थी जोकि पिछले वर्ष कि तुलना में करीब 500 फीसदी ज्यादा है। गौरतलब है कि पिछले साल यह संख्या 84,500 दर्ज की गई थी। अनुमान है कि अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 2021 के अंत तक 74.5 करोड़ पर पहुंच जाएगी, जोकि महामारी के पहले की तुलना में करीब 10 करोड़ ज्यादा है।
एक तरफ महामारी के दौरान जहां अमीर और अमीर होते गए। अनुमान है कि दुनिया के 10 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति में पिछले वर्ष 30.7 लाख करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है, जोकि 2021 में संयुक्त राष्ट्र की मानवीय अपील को 11 बार पूरा करने के लिए काफी है। अनुमान है कि महामारी की शुरुवात से वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में में 3.5 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि गरीबी में 16 फीसदी की वृद्धि हुई है।
भारत की भी कोई अच्छी नहीं है स्थिति
वहीं यदि भारत की बात करें तो वहां लाखों लोग भोजन की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। यही वजह है कि इस रिपोर्ट में भारत को एक हंगर हॉटस्पॉट के रूप में प्रदर्शित किया गया है। यदि 2020 के आंकड़ों को देखें तो भारत में करीब 19 करोड़ लोगो कुपोषण का शिकार हैं। वहीं पांच वर्ष से कम उम्र के करीब एक तिहाई बच्चों का विकास ठीक से नहीं हो रहा है।
जहां इस वायरस की चपेट में आने के बाद भारत में लोगों की दाल जैसी आवश्यक खाद्य पदार्थों की खपत में 64 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं हरी सब्जियों की खपत में 73 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। देश में 70 फीसदी से अधिक लोगों ने माना है कि महामारी के पहले की तुलना में उनके भोजन की मात्रा में कमी आई है।
इसके लिए काफी हद तक आय में आई कमी जिम्मेवार है। देश में सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं का ठीक से क्रियान्वयन न होना भी इसके लिए काफी हद तक जिम्मेवार हैं। वहीं स्कूलों के बंद होने का भी कहीं न कहीं हाथ है। देश के 15 राज्यों में 47,000 परिवारों पर किए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि बड़े पैमाने पर नौकरी छूटने के कारण खासकर अनौपचारिक क्षेत्र में परिवार ने अपनी आय का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा खो दिया है। अकेले अप्रैल 2021 में करीब 80 लाख लोगों की नौकरियां छिन गई थी।
यही नहीं रिपोर्ट का मानना है कि देश की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली उन लोगों तक मदद पहुंचाने में विफल रही है जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता थी। सरकार अभी भी अपनी सार्वजनिक वितरण योजना के लिए 2011 की जनगणना से जुड़े आंकड़ों पर निर्भर करती है, जिसके चलते करीब 10 करोड़ लोग जो राशन प्राप्त करने के हकदार थे, उन्हें यह मदद नहीं मिल पाई थी। अनुमान है कि इस योजना के लिए हकदार केवल 57 फीसदी आबादी को ही इसका लाभ मिल पा रहा है।
यही नहीं देश में भुखमरी के लिए स्कूलों के बंद होने को भी एक कारण माना गया है। देश में कारबी 12 करोड़ बच्चे स्कूलों में मिलने वाले मिड-डे मील पर निर्भर थे, स्कूल और कई भोजन कार्यक्रमों के बंद होने के कारण बच्चों को पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाया था।
पूरी तरह टीकाकरण करने के लिए करना होगा 57 वर्षों का इन्तजार
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि और महामारी के कारण उपजे आर्थिक संकट का नतीजा है कि वैश्विक खाद्य कीमतों में 40 फीसदी का इजाफा हुआ है, जो पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार खाद्य कीमतों में आए इस उछाल ने भी लाखों लोगों को भी भुखमरी के दलदल में धकेलने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स का अनुमान है कि आज वैक्सीन के मामले में दुनिया में जो असमानता है उससे लगभग 684.8 लाख करोड़ का आर्थिक नुकसान हो सकता है। वहीं भारत जैसे उभरते हुए हंगरस्पॉट के लिए यह नुकसान उसकी जीडीपी के 27 फीसदी से अधिक का हो सकता है।
ऑक्सफैम की गणना के अनुसार वर्तमान में जिस दर से टीकाकरण किया जा रहा है यदि वैसा ही चलता रहा तो कम आय वाले देशों को अपनी पूरी आबादी का कोविड टीकाकरण करने के लिए करीब 57 साल का इन्तजार करना होगा। ऐसे में करीब नौकरी और आय के स्रोतों के खत्म होने और बीमारी के कारण ख़राब स्वास्थ्य के चलते और करीब 13.2 करोड़ लोग कुपोषित हो जाएंगें।