डाउन टू अर्थ, तहकीकात: कहीं जीएम फल तो नहीं खा रहा है इंडिया?

भारत की सर्वोच्च खाद्य नियामक संस्था के पास बीते पांच वर्ष में भारत में आयात होने वाले ताजा फलों और सब्जियों में जेनिटिकली मॉडिफाइड ऑर्गेनिज्म होने की कोई सूचना और आंकड़ा नहीं है
हालिया वर्षों में फलों की दुकानों में विदेशी फलों की आमद में काफी वृद्धि हुई है (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
हालिया वर्षों में फलों की दुकानों में विदेशी फलों की आमद में काफी वृद्धि हुई है (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
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अगर आप भी विदेशी यानी आयातित फल और सब्जियों के प्रति आकर्षित हैं और उसका उपभोग करते हैं तो सावधान होने की जरूरत है। भारत में सिर्फ आयातित प्रोसेस्ड फूड ही नहीं बल्कि आयात होने वाले ताजा फलों और सब्जियों में भी जेनिटिक मोडिफाई ऑर्गेनिज्म (जीएमओ) होने की आशंका है।

क्योंकि देश की सर्वोच्च खाद्य नियामक संस्था फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसआई) के पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि बीते पांच साल में जीएमओ कंटेंट वाला कोई ताजा फल या सब्जी भारत में आयात किया गया है या नहीं। एफएसएसएआई ने इसके लिए प्रयोगशाला में कोई जांच भी नहीं की है।

इतना ही नहीं आयात होने वाले इन ताजे फलों और सब्जियों में किसी खतरनाक रसायन के होने और उनकी गुणवत्ता के बारे में भी नियामक के पास कोई जानकारी उपबलब्ध नहीं है।

यह खुलासा डाउन टू अर्थ की ओर से सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत हासिल की गई जानकारी से हुआ है। इस जानकारी के लिए डाउन टू अर्थ ने फरवरी से सितंबर, 2023 के बीच चार आरटीआई आवेदन एफएसएसएआई को भेजे थे, जिसमें कुल 15 जवाब हासिल हुए। किसी भी पौधे, जीव या बैक्टीरिया के जीन को अन्य पौधों में डालकर पौधे की जब एक नई किस्म बनाई जाती है तो उसे जीएमओ कहते हैं।

अभी तक दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में वैज्ञानिक द्वारा कई जीएम किस्मों को उगाया जा चुका है। इनमें फल और सब्जियां भी शामिल हैं, जैसे- टमाटर, मकई, आलू, बैंगन, पपीता, सेब, खीरा, अल्फाअल्फा आदि। भारत में इन फल और सब्जियों को मिलाकर कुल 24 फसलें ऐसी हैं जिनमें जीएम की आशंका को देखते हुए आयात को प्रतिबंधित किया गया है। इनमें अल्फाअल्फा, सेब, अर्जेंटीना कैनोला, बैगन, फली, चिकरी, दाल, अलसी के बीज, मक्का, तरबूज, पपीता, अनानास, प्लम, पोलिश कैनोला, आलू, चावल, सेफ्लॉवर, सोयाबीन, स्कवाश, चुकंदर, गन्ना, शिमला मिर्च, टमाटर और गेहूं शामिल हैं।

लंदन स्थित दुनिया की सबसे पुरानी वैज्ञानिक अकादमी रॉयल सोसाइटी की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के करीब 28 देशों में 17.97 करोड़ हेक्टेयर जमीन (दुनिया की 10 फीसदी खेती योग्य जमीन) पर जीएम फसलें उगाई जा रही हैं। इनमें संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए), ब्राजील और अर्जेंटीना सबसे बड़े जीएम उत्पादक हैं। मौजूदा वक्त में जीएम फलों और सब्जियों की संख्या एक दर्जन से भी ज्यादा है। हालांकि भारत में सिर्फ जीएम कपास के ही उत्पादन और आयात को मंजूरी दी गई है जबकि जीएम सरसों का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

भारत में बिना एफएसएसएआई की अनुमति के फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट, 2006 किसी भी जीएम फूड के आयात, निर्माण, इस्तेमाल और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध है (देखें, जीएम भोजन की घुसपैठ, डाउन टू अर्थ, अगस्त 2018 अंक)। हालांकि, एक्सपर्ट यह मानते हैं कि भारत इस वक्त जिन फलों और सब्जियों को आयात करता है और जिन्हें नॉन जीएमओ बताया जा रहा है, उनमें भी जीएम कटेंट हो सकता है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, बीते एक दशक के दौरान भारत में ताजा फलों और सब्जियों का आयात 25 फीसदी बढ़ा है।

फलों में पपीता के बाद 2015 में यूएसए और 2017 में कनाडा में जीएम सेब आर्कटिक एपल को भी व्यावसायिक मंजूरी दी गई है। बीते एक दशक में विदेशों से खासतौर से जीएम उत्पादक देशों से भी भारत में फल और सब्जियों के आयात में काफी बढ़ोतरी हुई है। मिसाल के तौर पर प्रमुख जीएम उत्पादक देश अमेरिका से बीते पांच साल (2018-2022) में 1,81,102.49 लाख रुपए का सेब आयात किया गया।

यह इसी अवधि में भारत में कुल सेब आयात 1,08,7107.29 लाख रुपए का 17 फीसदी है। 2018-19 में अमेरिका से सेब आयात की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी थी। अमेरिका से सेब आयात में आई गिरावट की एक बड़ी वजह 70 फीसदी आयात टैरिफ, कोविड और नॉन जीएमओ सर्टिफिकेट है।

हालांकि, हाल ही में जी-20 की बैठक में अमेरिका के आयात शुल्क को कम करने का फैसला किया गया है। इससे सेब आयात एक बार फिर बढ़ सकता है। इसके अलावा भारत, ब्राजील और अर्जेंटीना से सबसे अधिक सोयाबीन तेल का आयात करता है। एफएसएसआई को नहीं पता

इन फलों और सब्जियों में जीएम कंटेंट है या नहीं इस बारे में खाद्य उत्पादों के मानक और गुणवत्ता को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च संस्था एफएसएसएआई को किसी तरह की स्पष्ट जानकारी नहीं है। एफएसएसआई ने डाउन टू अर्थ की ओर से सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए एक सवाल का 3 अक्टूबर, 2023 में दिए गए एक जवाब में कहा है कि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में स्थित राष्ट्रीय खाद्य प्रयोगशाला (एनएफएल) ने बीते पांच साल में किसी भी फल या सब्जी में जीएम कंटेंट की जांच नहीं की है।

इसके अलावा एफएसएसएआई के इंपोर्ट डिवीजन ने 15 फरवरी, 2023 को दिए गए आरटीआई के एक जवाब में कहा कि फलों और सब्जियों की गुणवत्ता से जुड़ी कोई जानकारी उनके पास नहीं है।

आयातित फलों और सब्जियों की गुणवत्ता को लेकर एफएसएसआई के इंपोर्ट डिवीजन ने 15 फरवरी, 2023 को दिए गए अपने एक जवाब में कहा, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (एफएसएस) इंपोर्ट रेग्यूलेशन 2017 के तहत कस्टम अथॉरिटी के जरिए हर वह खाद्य उत्पाद को क्लियरेंस के लिए जब एफएसएसआई को भेजा जाता है, तब वह डॉक्युमेंट्स की स्क्रूटनी, विजुअल इंस्पेक्शन, सैंपलिंग और टेस्टिंग का विषय होता है।

हालांकि इसी जवाब में वह आगे लिखते हैं कि इसके बावजूद उनके पास 2017 से लेकर 2022 तक भारत में आयात किए गए फलों और सब्जियों के गुणवत्ता संबंधी कोई जानकारी नहीं है। यहां तक कि बीते दस वर्षों में किसी भी आयातित फल और सब्जी में क्या अत्यधिक रसायन मिला है, इसकी भी जानकारी एफएसएसएआई डिवीजन के पास नहीं है।

जीएम जैसे संवेदनशील विषय पर नियामक के पास ही जानकारी का न होना सेहत और पर्यावरण दोनों को खतरे में डाल रहा है। फलों और सब्जियों का उपभोग करने वाले उपभोक्ताओं को यह जानकारी नहीं है कि वह असल में कैसा खाद्य खा रहे हैं। भारत में जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमेटी (जीईएसी) से स्वीकृत जीएम (बीटी कॉटन) छोड़कर अभी तक जीएम के आयात, निर्यात, बिक्री परिवहन और इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने वाले कई कानून मौजूद हैं।

मसलन एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट (ईपीए),1989 और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट, 2006 जीएम को प्रतिबंधित करते हैं। इसके अलावा द लीगल मेट्रोलॉजी (पैकेज्ड कमोडिटीज) रूल्स, 2011 यह कहता है कि फूड पैकेज पर जीएम की घोषणा की जाए। फॉरेन ट्रेड (डेवलपमेंट एंड रेग्युलेशन) एक्ट, 1992 कहता है कि बिना जीईएसी के जीएम खाद्य उत्पाद को नहीं आयात किया जा सकता है।

इन नियमों का उल्लंघन करने पर कानून सम्मत कार्रवाई का भी प्रावधान है। हालांकि, इसके बावजूद इनका प्रभावी नियमन और क्रियान्वयन नहीं है। दशकों बीतने के बाद भी अवैध तरीके से खाद्य जीएम की मौजूदगी भारत में पाई गई है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) ने जुलाई, 2018 में जेनेटेकली मोडिफाइड प्रोसेस्ड फूड्स इन इंडिया नाम से प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में यह पाया था कि भारत में अधिकांश आयात होने वाले प्रोसेस्ड फूड में जीएम है। इस रिपोर्ट के बाद ही एफएसएसएआई ने 2020 में जीएम को रोकने के लिए तीन आदेश पास किए। डाउन टू अर्थ ने एफएसएसएआई से अक्टूबर, 2023 में प्राप्त आरटीआई जवाब में पाया कि पहला आदेश 21 अगस्त, 2020 को जारी किया गया।

इस आदेश में 24 फसलों के लिए यह अनिवार्य किया गया कि भारत में आयात के लिए चयनित 24 खाद्य उत्पादों के कंसाइनमेंट में नॉन जीएम कम जीएम फ्री सर्टिफिकेट भी जरूरी होगा। हालांकि, यह लागू नहीं हो सका। 3 दिसंबर, 2020 को एफएसएसएआई ने कहा कि यह नियम 1 मार्च, 2021 से लागू होगा।



इसके बाद 8 फरवरी, 2021 को एक आदेश जारी कर एफएसएसआई ने कहा कि इंपोर्टेड चयनित 24 फूड क्रॉप में एक फीसदी तक जीएम मान्य होगा। एफएसएसएआई ने इसी मामले पर 24 फरवरी, 2021 को फिर आदेश जारी किया और कहा कि 24 चयनित क्रॉप के लिए आयात का हर वह कंसाइनमेंट जिसमें फाइटोसैनेटरी या हेल्थ सर्टिफिकेट इस बात की तस्दीक करता हो कि अमुक कंसाइनमेंट नॉन जीएम ओरिजिन है या फिर वह जीएम मुक्त है।

साथ ही एफएसएसएआई के जरिए तैयार घोषणापत्र में सारी जानकारी भी दी गई हो। इसके अलावा इस ऑर्डर में कहा गया कि आधिकारिक सरकारी क्षेत्रीय प्राधिकरण के जरिए नॉन जीएम ओरिजिन या जीएम मुक्त का सत्यापन और एफएसएसएआई की ओर से मांगी गई सभी घोषणाएं यदि पूरी हो तो वह कंसाइनमेंट स्वीकार किया जाएगा।

इन आदेशों के बाद अमेरिका के वाशिंगटन डीसी और चिली में भारत में आयात करने वाले सेब किसानों ने काफी विरोध किया। अमेरिकी किसानों ने विश्व व्यापार संगठन की समिति के पास जीएम सर्टिफिकेट की बाध्यता पर अपनी शिकायत भी दर्ज की। हालांकि, यूएस के कृषि प्राधिकरण बाद में अपने किसानों को नॉन जीएमओ सर्टिफिकेट जारी करने के लिए राजी हो गए।

हालांकि, आयातकों के जरिए खुद से की गई घोषणाएं और स्थानीय प्राधिकरणों की ओर से जारी नॉन जीएमओ सर्टिफिकेट किस हद तक सही हैं, यह जानकारों के बीच एक संदेह का विषय बना हुआ है।

जीएम कैंपेन की संस्थापक सुमन सहाय डाउन टू अर्थ से कहती हैं कि भारत के पास कोई निगरानी और सर्विलांस या तंत्र नहीं है जो यह सुनिश्चित करता हो कि भारत में जीएम संबंधी क्रॉप नहीं आयात किए जा रहे हैं। भारत में यह नहीं जांचा जा रहा है कि आयात किया गया खाद्य उत्पाद वास्तविकता में जीएम है या नहीं क्योंकि न ही कुशल श्रमशक्ति है जो आयात किए जाने वाले इंट्री प्वाइंट पर जीएम उत्पादों की सैंपलिंग और जांच कर सके।

क्या वास्तव में जीएम जांच नहीं हो रही है? अक्टूबर, 2023 में आरटीआई से मिले एक जवाब में पता जला कि जीएम को रेग्यूलेट करने वाला मसौदा अभी साइंटिफिक पैनल के पास है। शायद इसलिए जीएम फूड का रेग्युलेशन को लेकर प्राधिकरणों के पास कोई स्पष्टता नहीं है।

प्रयोगशाला है लेकिन जांच नहीं

एफएसएसआई के पूर्व चेयरमैन पवन अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ से कहा कि हमारी प्रयोगशालाएं सभी तरह के खाद्य उत्पादों में जीएम खोजने में अभी समर्थ नहीं हैं। उनके कार्यकाल में मसौदा विकसित किया जा रहा था। हालांकि अभी तक वह पास नहीं हो सका है।

उन्होंने कहा कि आयात होने वाले कंसाइनमेंट में सैंपल में जीएम कंटेंट की जांच होनी चाहिए। डाउन टू अर्थ ने यह जानने के लिए कई डॉक्यूमेंट्स को खंगाला कि क्या प्रयोगशालाएं जीएम जांच के लिए बाध्य हैं? इसका स्पष्ट जवाब नहीं मिला। जीएम जांच के लिए देश में निजी प्रयोगशालाएं भी मौजूद हैं, जो किसी खाद्य उत्पाद में 0.01 फीसद जीएम कंटेंट तक की जांच कर सकती हैं।

देश में पीपीपी मोड में मौजूद पांच राष्ट्रीय खाद्य प्रयोगशालाएं इस तरह का जांच करने के लिए बाध्य और समर्थ नहीं है। 2020 में नेशनल फूड लैबोरेटरी (एनएफएल) के संबंध में निकाले गए टेंडर में स्पष्ट लिखा था कि जल्द ही जीएम रेग्युलेशन के मसौदे को मंजूरी मिल जाएगी। इसके बाद लैब को जीएम जांच भी करना होगी। हालांकि अभी तक जीएम रेग्युलेशन के मसौदे को मंजूरी नहीं मिली है। इससे स्पष्ट होता है कि लैब अभी तक जीएम जांच के लिए समर्थ ही नहीं हैं।

18 फरवरी, 2019 को फूड एंड एग्रीबिजनेस स्ट्रैटजिक एडवाइजरी एंड रिसर्च (एफएएसएआर) ने मेटास्टडी ऑन फूड टेस्टिंग लैब्रोटरीज इन इंडिया नाम से एक अध्ययन जारी किया। इसमें बताया गया कि देश में खाद्य उत्पादों की जांच करने वाली सिर्फ 32 फीसदी प्रयोगशालाएं ही खाद्य उत्पादों में रसायन अवशेषों का की जांच कर सकती हैं।

जबकि 16 फीसदी मरीन उत्पादों और महज 2 फीसदी प्रयोगशालाएं जीएम उत्पादों की जांच कर सकती हैं। ऐसे ही एक जीएमओ जांच करने वाली निजी प्रयोगशाला के वैज्ञानिक से बात की गई। उनका कहना था कि उनके पास अधिकतम कॉटन के सैंपल भेजे जाते हैं जो अधिकांशतः जीएमओ ही होते हैं।

खेती-किसानी से जुड़ी आजीविका को बेहतर करने की दिशा में काम करने वाले संगठन अलायंस फॉर सस्टेनबल एंड होलिस्टिक एग्रीकल्चर (आशा) से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता कविता कुरुगंती ने डाउन टू अर्थ से कहा कि सीएसई की जांच में पहले ही यह स्पष्ट हो चुका है कि आयातित प्रोसेस्ड फूड में जीएमओ है। सबसे पहले आयात में तरजीह नॉन जीएमओ देशों को देना चाहिए।

इसके अलावा आयातकों के जरिए या क्षेत्रीय प्राधिकरणों के जरिए कंसाइनमेंट पर की गई नॉन जीएमओ की घोषणा को प्रयोगशाला में जांचा जाना चाहिए। हमारे देश में इसका अब तक कोई फुलप्रूफ सिस्टम नहीं बन पाया है। सीएसई ने 2018 में 30 भारत में निर्मित और 35 विदेशों से आयातित उत्पादों की जांच की थी। इसमें पाया था कि करीब 32 फीसदी उत्पादों में जीएम मौजूद है। तबसे अब तक कोई सिस्टम मौजूद नहीं है।

कई देशों में फलों और सब्जियों में जीएम प्रयोग जारी है। मिसाल के तौर पर ऑस्ट्रेलिया में केले की जीएमओ वैराइटी बनाई जा चुकी है। हालांकि, इसे अभी तक व्यवसायिक मंजूरी नहीं मिली है। जीएम फलों और सब्जियों की सूची आने वाले वर्षों में और लंबी हो सकती है। और यह बहस अब भी जारी है कि जीएम फूड स्वास्थ्य के लिए बेहतर है या नहीं। हालांकि, भारत में इसकी जांच के लिए अब तक कोई फूलप्रूफ सिस्टम नहीं बन पाया है।

यह स्टोरी मासिक पत्रिका डाउन टू अर्थ, हिंदी के दिसंबर 2023 के अंक में प्रकाशित हुई थी। अगर आप पत्रिका सबसक्राइब करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें 

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