आहार संस्कृति: सेहत के लिए आम से भी बेहतर है बबूल

अप्रैल-मई के महीने में जब बबूल के पेड़ पर खूब फलियां होती हैं, तब इन्हें खाकर स्वास्थ्य लाभ लें
आहार संस्कृति: सेहत के लिए आम से भी बेहतर है बबूल
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अगर आपको “जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए” सुनकर पुराने कर्मों पर दुख होता है तो शायद इसकी जरूरत नहीं है। भले ही यह सच हो कि बबूल के पेड़ पर आम नहीं मिल सकते पर यह भी सच है कि बबूल की फलियां भी बहुत स्वादिष्ट होती हैं। और तो और, ये फलियां सेहत के लिए आम से भी बेहतर हैं और इस पेड़ को उगाने के लिए आम के जितनी जद्दोजहद भी नहीं करनी होती।

ये पेड़ मझोले से लंबे कद का होता है और अपनी स्वादिष्ट, पौष्टिक और बहुत ही खूबसूरत फलियों से आसानी से पहचाना जा सकता है। इसकी फलियां मोतियों के माला जैसी होती हैं। ये फलियां चपटी, पतली और लंबी होती हैं और उसमें 15 बीज तक हो सकते हैं। ये बीज पतली-सी डंडी से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। पेड़ पर अप्रैल-मई के महीने में ढेरों फलियां लगती हैं। अनुमान है कि भारत में हर साल 6 लाख टन फलियां उगती हैं जिनसे 60 हजार टन बीज निकलते हैं।

पर यह बहुउपयोगी पेड़ अपनी फलियों की सुंदरता के लिए तो बिल्कुल नहीं जाना जाता। बबूल या अकेसिया निलोटिका खाने के अलावा लकड़ी, ईंधन, गोंद, डाई, जानवरों के लिए चारा और छाया प्रदान करता है। इसकी दातून तो दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखने के लिए प्रसिद्ध है ही, साथ ही इसके छाल के अर्क का इस्तेमाल टूथपेस्ट बनाने में भी किया जाता है। छाल से त्वचा की बीमारियों का इलाज भी किया जाता है और जले हुए जख्म भी ठीक होते हैं। चलते फिरते हुए लोग इसकी मुलायम पत्तियां भी तोड़कर चबा लेते हैं क्योंकि इससे हाजमा ठीक रहता है।

फली सबसे भली

इंसानों के खाने की तरह फली का कोई मुकाबला नहीं है। इसके बीज बहुत पोषक होते हैं। एक अध्ययन बताता है कि इसके एक किलो बीज में 234 ग्राम क्रूड प्रोटीन, 126 ग्राम क्रूड फाइबर, 66.6 ग्राम क्रूड वसा और 534 ग्राम कार्बोहाइड्रेट है। इन बीजों में पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, आयरन और मैगनीज जैसे मिनरल भी होते हैं। ये अध्ययन नवंबर 1996 में फूड केमिस्ट्री नामक जर्नल में छपा था। इन बीजों को अकाल के समय इस्तेमाल किया जाता था। बीजों को भूनकर या इन्हें ऐसे ही खा सकते हैं। यहां तक कि जरूरत पड़ने पर इसकी गोंद और छाल से भी पेट भरा जाता था। फलियों की स्वादिष्ट सब्जी तो अच्छे समय में भी बनाई जाती है।

कुछ अध्ययन जो 2016 में अकेसिया नामक जर्नल में छपे थे, ये भी बताते हैं कि फलियों में एंटी बैक्टीरियल कंपाउंड है जो बेसिलस सेरियस और स्टेफाइलोकोकस औरियस जैसे ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया को खत्म कर सकते हैं। शायद यही कारण है कि सउदी अरब के शोधकर्ताओं ने अप्रैल 2020 में बताया कि फलियों के अर्क को अगर बीफ की बर्गर पेटी में मिलाया जाए तो कोल्ड स्टोरेज के दौरान इसे माइक्रोब्स खराब नहीं कर पाते। फलियों के अर्क से इसके स्वाद और पोषक तत्वों पर कोई बुरा असर भी नहीं पड़ता। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे प्राकृतिक उत्पाद को इस्तेमाल करने से सिंथेटिक प्रिजरवेटिव का इस्तेमाल कम किया जा सकता है। ये शोध जर्नल ऑफ फूड प्रोसेसिंग एंड प्रिजरवेशन में छपा था।

जानवरों के लिए उपयोगी

वैसे बबूल की फलियों और पत्तियों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जानवर के चारे के रूप में होता है। इसके बीज से बनाई खली कपास के बीजों से बनाई गई खली के मुकाबले की है और दूधारू गायों के लिए बहुत फायदेमंद है। क्योंकि इन बीजों में कुछ अलग सुगंध होती है तो इन्हें ज्यादा स्वादिष्ट और पारंपरिक चारे में मिलाकर ही दिया जाता है। बबूल की फलियों और बीज को पीसकर अगर दूधारू गाय के खाने में 15 प्रतिशत के अनुपात में मिलाया जाए तो ये गाय के लिए अच्छा है। यहां पर फलियों को पीसना जरूरी है अन्यथा बीज बिना पचे ही गोबर में निकल जाते हैं। इस खली को खाने से जानवर के रक्त सीरम में क्रेटेनाइन कम हो जाता है और साथ में उनमें नेमोटोड के अंडे अथवा प्रोटजोन भी कम हो जाते हैं। इससे उनके समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।

बीजों से खली बनाने का एक फायदा यह भी है कि इनका तेल एक सह उत्पाद की तरह मिल जाता है। अप्रैल 2023 में हेलियोन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस तेल में इन्सेक्टीसाइडल गुण हैं। शोधकर्ता कहते हैं कि इस तेल को कृषि में कीटनाशकों को नियंत्रित करने में उपयोग किया जा सकता है। यह इंसेक्टीसाइड पर्यावरण हितैषी विकल्प है।

बबूल का पेड़ सूखे प्रदेशों जैसे हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में आसानी से उगता है। ये पेड़ लेगुमिनेसी परिवार का है और यह हवा की नाइट्रोजन को प्रोसेस करके जमीन में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता है। इसकी खूबियों के कारण इसे खनन क्षेत्रों में सुधारने के लिए लगाया जाता है। बंजर जमीन पर भी यह उगाने योग्य है। ये चंबल की घाटियों को हरा भरा बनाने में काफी कारगर रहा है। यह न सिर्फ जमीन को ठीक करता है बल्कि तेज हवा से होने वाले क्षरण को नियंत्रित करता है।

यह भी पाया गया है कि इससे स्थानीय जैव विविधता भी बढ़ जाती है। यह सूखे व बाढ़ दोनों हालात में जीवित रहता है और कृषि वानिकी में भी बहुत उपयोगी है। इन खूबियों के कारण इसे पुराने समय में ऑस्ट्रेलिया और गालापागोस द्वीप जैसी जगह पर भी ले जाया गया पर यह बेकाबू होकर फैल गया। यहां इसे एक आक्रामक प्रजाति माना जाता है। वैसे ये पेड़ अफ्रीका, अरब प्रायद्वीप और भारतीय उपमहाद्वीप में उपजा है। इसकी नौ प्रजातियां हैं जिसमें से छह अफ्रीका में पाई जाती हैं और तीन भारतीय उपमहाद्वीप में। ये उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आराम से उगता है।

व्यंजन : फली की सब्जी

  • बबूल की फलियां : 50 ग्राम
  • प्याज : 1 बड़ी
  • टमाटर : 1 बड़ा
  • हरी मिर्च : 2
  • कच्चा आम : 1 छोटा
  • लहसुन : 5 कली
  • मिर्च पाउडर : 1 छोटी चम्मच
  • धनिया पाउडर : 1 छोटी चम्मच
  • हल्दी : 1/2 चम्मच
  • आमचूर : 1 चम्मच (वैकल्पिक)
  • जीरा : एक छोटी चम्मच
  • हींग : ¼ चम्मच या चुटकी भर
  • गरम मसाला : 1 छोटी चम्मच
  • सरसों का तेल : 2 बड़ी चम्मच
  • नमक : स्वादानुसार
  • चूना : एक चम्मच
विधि : बबूल की नाजुक और कच्ची फलियां लें और ऐसे तोड़ें कि हर पीस में एक ही बीज हो। इन्हें धोकर नमक और चूने के साथ पानी में तब तक उबालें जब तक मुलायम न हो जाएं और कसेलापन कम न हो जाए। पानी निचोड़कर फली अलग रख दें। प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, अाम और टमाटर को बारीक काटें। एक कड़ाही में तेल गर्म करें और उसमें जीरा और हींग डालकर चटकने दें। अब प्याज और लहसुन डालकर पकाएं। इसके बाद टमाटर, हरी मिर्च, कच्ची अमिया के साथ पिसा धनिया, हल्दी, मिर्च, नमक और आमचूर डालें। इन्हें अच्छे से मिलाएं और उबली फली डाल दें। इसमें थोड़ा सा पानी डालें और कुछ देर पकाएं जिससे मसाला फली में चला जाए। गैस बंद करें और ऊपर से गरम मसाला छिड़ककर मिलाएं। चटपटी सब्जी तैयार है। इसे ज्वार या बाजरे की रोटी के साथ खा सकते हैं।

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