सोलिगा महिलाएं फलियों, चने, लोबिया या अरहर के साथ साइड डिश के रूप में पल्या तैयार करती हैं (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
सोलिगा महिलाएं फलियों, चने, लोबिया या अरहर के साथ साइड डिश के रूप में पल्या तैयार करती हैं (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)

आहार संस्कृृति: किडनी का रक्षक है अन्ने सोप्पू

मॉनसून से पहले अन्ने सोप्पू का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है क्योंकि यह शरीर की गर्मी और पेट की जलन को कम करता है
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मैंने बचपन से देखा है कि अन्ने सोप्पू (सेलोसिया अर्जेंटिया) के छोटे-छोटे बीज जानवर की आंत से निकलने के बाद फिर से अंकुरित हो जाते हैं। यह आक्रामक प्रजाति नहीं है लेकिन तेजी से उगने वाली जंगली खरपतवार जरूर है। इस पौधे को परती और बंजर भूमि बहुत रास आती है और यह देखते ही देखते पूरे इलाके को अपनी जद में ले लेता है। अन्ने सोप्पू को चारे के रूप में जानवरों को खिलाया जाता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सूखे के हालात के अनुकूल है और इसके बीज मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।

यह पौधा ऐमारैंथेसी परिवार से ताल्लुक रखता है और इसे आमतौर पर “सिल्वर कॉक्स कॉम्ब” और “लागोस पालक” के रूप में जाना जाता है। यह पौधा छोटा होता है। इसकी टहनियों के चारों ओर सरल व सर्पिल पत्तियां, गुलाबी या रेशमी सफेद फूल और काले बीज होते हैं। यह पौधा अफ्रीकी मूल का है लेकिन दुनिया भर में पाया जाता है, खासकर ऐसे स्थानों पर जहां देसज समुदाय इसे जंगली सब्जी और दवा के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

भारत में यह आक्रामक खरपतवार है। कभी झूम खेती करने वाले और बाद में कर्नाटक के चामराजनगर जिले के पोडू (गांवों) में बसने वाले सोलिगा जनजाति के किसानों को अपने खेतों में इस खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए प्रति वर्ष लगभग 2,000 रुपए प्रति एकड़ खर्च करने पड़ते हैं। यदि पौधे को नजरअंदाज कर दिया जाए तो यह तेजी से फैल सकता है और फसल की वृद्धि के साथ उपज को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। यह कई कीड़ों, कैटरपिलर, कीड़ों और पतंगों को भी आकर्षित करता है जो फसल को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

अच्छी बात यह है कि आदिवासियों ने इस खरपतवार को उपयोग में लाने का तरीका निकाला है। वे स्वाद और पोषण के लिए इसका सेवन करने लगे हैं। एमएम हिल्स के अनहोला गांव की 58 वर्षीय बासम्मा के लिए अन्ने सोप्पू पसंदीदा भोजन है। वह इसका उपयोग तुअर दाल के साथ उलसोप्पू जैसे व्यंजनों को तैयार करने में करती हैं, जिसे वह रागी के साथ खाती हैं। वह बताती हैं, “इस सोप्पू को खाने के लिए बारिश का मौसम सबसे अच्छा है।” बारिश के दौरान यह सबसे पहले उगता है।

सोलिगा महिलाएं मॉनसून से ठीक पहले (अप्रैल से जून) मस्साने (यानी अन्ने सोप्पू स्मैश) नामक नुस्खा तैयार करने के लिए पत्तियों और नाजुक टहनियों को इकट्ठा करती हैं। इसी तरह बरसात के मौसम (जुलाई से सितंबर) के दौरान पत्तियों और नई टहनियों को एकत्र किया गया है और उल्सोप्पु सांभर (करी) के लिए पकाया जाता है। वे फलियों/चने/लोबिया/अरहर के साथ साइड डिश (पल्या) के लिए पत्तियों और टहनियों को भी पकाती हैं। सोलिगा लोगों के अनुसार, मॉनसून से पहले अन्ने सोप्पू का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है क्योंकि यह शरीर की गर्मी और पेट की जलन को कम करता है। भीषण गर्मी के बाद उपलब्ध होने वाली यह पहली हरी सब्जी है। यह एमएम हिल्स में सोलिगा तक ही सीमित नहीं है। दक्षिण भारत और मध्य भारत के किसानों के लिए यह एक आम हरी सब्जी है। सब्जी के रूप इसका उल्लेख देशभर में मिलता है।

पालक से बेहतर

अन्ने सोप्पू की पत्तियों में बीटा-कैरोटीन और फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं जबकि विटामिन ई, कैल्शियम और आयरन भी इनमें रहता है। पालक के पत्तों के विपरीत अन्ने सोप्पू की पत्तियों में ऑक्सालिक एसिड (0.2%) और फाइटिक एसिड (0.12%) का स्तर कम होता है और गुर्दे की पथरी के जोखिम को नहीं बढ़ाता। इसकी तुलना में पालक में विटामिन के और पोटैशियम की उच्च मात्रा होती है, जो कमजोर किडनी वाले लोगों पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं।

कर्नाटक के बेल्लारी स्थिति विजयनगर श्री कृष्ण देवराय विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में अन्ने सोप्पू की जीवाणुरोधी गतिविधि का अध्ययन किया और पाया कि तना और जड़ का अर्क माइक्रोबियल रोगजनकों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। यह निष्कर्ष 2018 में जर्नल ऑफ फार्माकोग्नॉसी एंड फाइटोकेमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ था। आंखों की बीमारियों और अल्सर के इलाज के लिए पारंपरिक चीनी और भारतीय दवाओं में पौधे का अक्सर उपयोग किया जाता है। चीन के शोधकर्ताओं ने पौधे पर उपलब्ध शोध की समीक्षा की और पाया कि इसके बीज से खाने योग्य तेल निकलता है और आमतौर पर इसका इस्तेमाल आंखों में खून आना और मोतियाबिंद जैसी आंखों की बीमारी में किया जाता है। यह अध्ययन 2016 में रेविस्टा ब्रासीलेरा डे फार्माकोग्नोसिया जर्नल में प्रकाशित हुआ था।

शहरों में यह पौधा टेरेस गार्डन के लिए मुफीद है और इसे तुलसी के पौधे की तरह छोटे गमलों में आसानी से उगाया जा सकता है। पूरे साल 20-20 दिनों के अंतराल पर इसकी पत्तियों और नई टहनियों की कटाई की जा सकती है। अन्ने सोप्पू का पौधा हल्की (रेतीली), मध्यम (दोमट) और भारी (मिट्टी) मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ता है। अच्छी जल निकासी वाली और भारी मिट्टी इसके लिए सबसे बेहतर है। यह कम छाया या बिना छाया वाली जगह में भी आसानी से बढ़ सकता है। यह पालक से एक बेहतर विकल्प है। पालक उगाने के लिए अतिरिक्त प्रयास और संसाधन की आवश्यकता होती है।

शहरी क्षेत्रों में अभी इसकी सीमित पहुंच है। सब्जी विक्रेता अन्ने सोप्पू को बरसात के मौसम में उपभोक्ता की मांग के अनुसार रखते हैं। इसे आम लोगों तक पहुंचाने के लिए बेहतर विपणन और तकनीकी हस्तक्षेप की आवश्यकता है। अगर किसान इस सब्जी की अच्छी मार्केटिंग करते हैं तो वे इससे आय सृजित कर सकते हैं। साथ ही किडनी की पथरी से पीड़ित और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे उपभोक्ता भी स्वास्थ्य लाभ ले सकते हैं। इसमें पालक के मुकाबले कम कैल्शियम ऑक्सलेट होता है।

व्यंजन : पल्या

सामग्री
  • साफ की गई अन्ने सोप्पू की ताजी पत्तियां
  • और टहनियां : 2 कटोरी
  • फील्ड बीन/चना/लाेबिया/अरहर : 40 ग्राम
  • लहसुन : 2-3 कली
  • प्याज : 1 छोटी
  • लाल मिर्च : 1-2 स्वादानुसार
  • तेल : 2 चम्मच
  • इमली : छोटे नीबू के आकार की
  • नमक : स्वादानुसार
  • सरसों के दाने : आधा चम्मच
विधि : अन्ने सोप्पू की कोमल टहनियां व पत्तियां लें और चुिनंदा बींस/चना/लोबिया/अरहर के साथ पानी में पकाएं। पानी में थोड़ा सा नमक भी मिला लें। पकने के बाद पानी निकाल दें। अब एक पैन में तेल लें और उसमें राई तड़काएं। इसमें लाल मिर्च, प्याज और लहसुन डालें। अंत में पकी पत्तियां, फली व इमली का पानी डालें और कुछ मिनट तक पकाएं। पल्या को किसी भी भोजन के साथ साइड डिश के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।


इस किताब में पारंपरिक और वैश्विक व्यंजनों का समावेश किया गया है जो सब्जियों, फलियां और स्वस्थ वसा जैसे संपूर्ण खाद्य पदार्थों से भरपूर होती हैं।

यह शाकाहारियों और सर्वाहारी लोगों को पोषणयुक्त भोजन से परिचित करवाती है ताकि यह शरीर को रीसेट करने में सहायक हो सके।
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