नहीं मिला भोजन, भूख से आदिवासी चाय बागान मजदूर की मौत

स्वतंत्र मजदूर संगठनों की तरफ से गठित फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने अपनी जांच में पाया कि उक्त आदिवासी चाय बागान मजदूर और उनकी पत्नी को जन वितरण प्रणाली से खाद्यान नहीं मिलता था
फोटो: आईस्टॉक
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उत्तर बंगाल के एक चाय बागान में काम करने वाले एक आदिवासी मजदूर की कथित तौर पर भूख से मृत्यु हो गई। मृत मजदूर की पहचान धनी ओरांव (58 वर्ष) के रूप में हुई है और वह पश्चिम बंगाल के अलीपुरदुआर जिलांतर्गत कालचीनी प्रखंड के रहने वाले थे। वह जिले के मधु चाय बागान में (पीएफ नं. डब्ल्यूबी/889/2514) काम करते थे। 

धनी ओरांव की मृत्यु की जांच के लिए मजदूरों के स्वतंत्र संगठनों की ओर से गठित फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने कहा है कि सरकार की तरफ से जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सरकारी दर पर मिलने वाला अनाज उन्हें नहीं मिला और जिस चाय बागान में काम करते थे, वहां से भी उन्हें भत्ता नहीं दिया गया, जिससे उन्हें लगातार भूखे रहना पड़ा और 2 फरवरी को उनकी मौत हो गई। 

फैक्ट-फाइंटिंग टीम में पश्चिम बंग चाय मजदूर समिति (चाय बागान मजदूरों का स्वतंत्र संगठन) के सदस्य, राइट टू फूड एंड वर्क कैम्पेन के प्रतिनिधि और दो वकील शामिल थे। मृत्यु के कारणों की पड़ताल करने के लिए टीम के सदस्य 3 फरवरी को मृतक के घर पहुंचे और सभी बिंदुओं पर जांच की। 

टीम की तरफ से तैयार की गई विस्तृत जांच रिपोर्ट डाउन टू अर्थ ने हासिल की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि धनी ओरांव की पत्नी असरानी ओरांव का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 12किलो/वर्ग मीटर है। उनकी लम्बाई 4 फीट 10 इंच है, जबकि उनका वजन 26 किलोग्राम पाया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, 16.0 से कम बीएमआई हो तो, स्वास्थ्य पर बुरा असर, खराब शारीरिक गतिविधियां, थकान व मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है। 

पड़ोसियों ने टीम को बताया कि धनी ओरांव का भी वजन काफी कम था, उनके शरीप पर मांस नहीं था और शरीर अस्थिपंजर नजर आता था। 

जांच टीम की तरफ से जारी प्रेस विज्ञप्ति में पश्चिम बंग चाय मजदूर समिति के सचिव बीरबल ओरांव ने कहा, “उनकी पत्नी असरानी का स्वास्थ्य इस बात का संकेत है कि दंपति भयावह भुखमरी से गुजर रहा था।” 

जांच में यह भी पता चला है कि उनके घर में हर महीने सिर्फ तीन से चार दिन का राशन ही रहता था। 

जांच रिपोर्ट आगे बताती है कि जिस मधु चाय बागान में धनी ओरांव काम किया करते थे, वह बागान 23 सितंबर 2014 को बंद हो गया था और 7 साल बाद 27 दिसंबर, 2021 को खुला था। लेकिन, बंदी के इन सात वर्षों के दौरान चाय बागान प्रबंधन ने अपने वर्करों को स्वास्थ्य, आवास, समय पर मजदूरी का भुगतान, ग्रेच्युटी जैसे लाभ नहीं दिये, जबकि पेमेंट्स ऑफ वेजेज एक्ट, 1936 के अंतर्गत ये लाभ पाना मजदूरों का अधिकार है। 

जांच दल को यह भी पता चला कि उक्त चाय बागान के कर्मचारियों को आखिरी बार तनख्वाह पिछले दो महीने के दौरान सिर्फ एक पखवाड़े में ही मिली थी। मधु चाय बागान में कुल 951 स्टाफ हैं, जिनमें से रोल में 300-400 हैं। 

फैक्ट फाइंटिंग टीम ने अपनी पड़ताल में पाया कि धनी और असरानी को पिछले दो-तीन वर्षों से जन वितरण प्रणाली से राशन नहीं मिल रहा था, क्योंकि उनका आधार कार्ड, राशन कार्ड से लिंक्ड नहीं था, जिस वजह से मशीन उनका फिंगरप्रिंट पहचान नहीं पाती थी। 

दंपति के पास अंत्योदय अन्न योजना कार्ड भी था। इस कार्ड के धारकों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत 35 किलो तक अनाज दिया जाता है और इसके साथ ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत अतिरिक्त 5 किलोग्राम अनाज नि:शुल्क मिलता है। 

ओरांव कहते हैं कि समय के साथ धनी के स्वास्थ्य में गिरावट आती गई। “भोजन के लिए दंपति पूरी तरह से ग्रामीणों पर निर्भर था और हर दिन मुश्किल से एक या दो बार ही खा पाता था, लेकिन इसमें भी कोई तय अंतराल नहीं था। दोनों प्रायः भूखा रहते थे या फिर बासी खाना खाते थे,” बीरबल ने कहा। 

उन्होंने आगे बताया कि ग्रामीण भी हमेशा मदद नहीं कर पाते थे, क्योंकि मधु चाय बागान से अनियमित भुगतान होने के कारण उनकी खुद की आर्थिक स्थिति ही डांवाडोल थी।

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