सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है कि वह बताए कि आखिर भारतीय बाजारों में शहद उत्पादों की वैधता क्या है?
कोरोनाकाल में जिस शहद को लोग अमृत समझकर खा रहे थे उसमें चीन के शुगर सीरप की मिलावट की जा रही थी। जो बड़ी जांच में पकड़ में नहीं आते हैं। इसका सीधा नुकसान उन लोगों पर था जो पहले से ही डायबिटीज और मोटापे जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं और विश्वास के आधार पर शहद का सेवन कर रहे थे। यह बड़ा खुलासा सेंटर फार साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) ने किया था। सीएसई की उच्च वैज्ञानिक पड़ताल में शहद उत्पाद बेचने वाली कई बड़ी नामी-गिरामी कंपनियों के नमूने फेल पाए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट में एंटी करप्शन काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट की ओर से याचिका दाखिल की गई है। ट्रस्ट की ओर से अधिवक्ता वीके शुक्ला पेश हुए। उन्होंने अपनी याचिका का आधार सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट के शहद मिलावट खुलासे को ही बनाया है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह कंपनियों को विभिन्न शहद उत्पादों की टेस्ट रिपोर्ट अदालत के सामने पेश करने का आदेश दे।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना व वी रामसुब्रमण्यम वाली पीठ ने याचिका पर विचार के बाद केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
याचिका में सीएसई की बड़ी वैज्ञानिक खोजबीन को आधार बनाते हुए कहा गया है कि भारतीय बाजार में बिक्री किए जाने वाले अधिकांश शहद उत्पादों में शुगर सीरप की मिलावट है। लोग शहद खाने के बजाए अंजाने में चीनी का सेवन कर रहे हैं जो कि कोविड-19 के वक्त में लोगों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
डाबर, पंतजलि और झंडु जैसी बड़ी कंपनियों के नमूने विफल पाए गए थे। इन कंपनियों के प्रतिनिधियों ने बाद में यह दावा किया था कि उनके ब्रांड फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसआई) की रेग्यूलेटरी मानकों को पूरा करते हैं। उनके शहद में कोई मिलावट नहीं हैं।
जबकि सीएसई ने अपनी जांच रिपोर्ट में पाया था कि इन कंपनियों के शहद उत्पादों में चीन का एक ऐसा शुगर सीरप मिलाया जा रहा है जो भारतीय मानकों पर किए जाने वाले परीक्षण से गुजरने के बाद भी पकड़ में नहीं आता।