पीडीएस की मजबूती के लिए सभी राज्यों को डीसीपी से जोड़े केंद्र सरकार: स्थायी समिति

अभी चावल के लिए 15 और गेहूं के आठ राज्य ही विकेंद्रीकृत वितरण योजना (डीसीपी) से जुड़े हुए हैं
स्थायी समिति ने कहा है कि पीडीएस को मजबूती प्रदान करने के लिए राज्यों को डीपीसी में शामिल किया जाए।
स्थायी समिति ने कहा है कि पीडीएस को मजबूती प्रदान करने के लिए राज्यों को डीपीसी में शामिल किया जाए।
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खाद्य, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण की संसदीय स्थायी समिति (स्टेडिंग कमेटी) ने सवाल उठाया कि खाद्य वितरण प्रणाली के तहत विक्रेंदीकृत खरीद योजना (डीसीपी) योजना को शुरु हुए 23 साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक चावल के लिए 15 राज्य और गेहूं के लिए आठ राज्य ही इस योजना से जुड़े हैं? केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को इस योजना से जोड़ने का प्रयास क्यों नहीं किए?

स्टेडिंग कमेटी का मानना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को मजबूती प्रदान में डीसीपी योजना की बड़ी भूमिका हो सकती है, क्योंकि इससे राज्य सरकारें अपने राज्य की उपज स्थानीय लोगों को वितरित करेंगे। इसके चलते लोगों को उनके स्वाद के मुताबिक अनाज उपलब्ध होगा।

हालांकि डीसीपी योजना अभी राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं है, लेकिन मंत्रालय को चाहिए कि वह इस योजना के फायदे गिनाते हुए दूसरे राज्यों को डीसीपी योजना में शामिल होने के प्रेरित करें। यदि केंद्र सरकार ऐसा करती है तो इसे जहां वितरण पर होने वाले खर्च में खासी कमी आएगी, वहीं एमएसपी का लाभ भी हर घर तक पहुंच पाएगा। इसलिए केंद्र को एक तय समय के भीतर राज्यों आधारभूत सुविधाएं प्रदान करते हुए इस योजना में शामिल करने का प्रयास करना चाहिए।

विक्रेंदीकृत खरीद योजना (डीसीपी) की शुरुआत 1997-98 में हुई थी। इसका मकसद राज्य सरकारों द्वारा स्वयं खाद्यान्न की खरीद, संग्रह और वितरण करना था। राज्य सरकारें अपनी लक्षित योजनाओं के लिए खाद्यान्न का वितरण करती हैं।

इसका दूसरा मकसद यह था कि राज्य सरकारें अपने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत खरीददारी करें। इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की परिवहन लागत की भी बचत होती है। राज्य सरकारों के पास जो अनाज बच जाता है, उसे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) सेंट्रल पूल के लिए खरीद लेता है।

डीसीपी योजना के तहत राज्य सरकारें अनाज की खरीद, संग्रहण और वितरण पर जितना पैसा खर्च करती हैं, भारत सरकार उतना पैसा राज्य सरकारों को भेज देता है। जो सरप्लस स्टॉक एफसीआई को दिया जाता है, उसकी कीमत राज्यों के खाते में समायोजित हो जाते हैं।

अभी डीसीपी मोड के तहत 15 राज्य चावल की खरीद व वितरण करते हैं, जबकि आठ राज्य गेहूं की खरीद व वितरण करते हैं। उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, अंडमान निकोबार और त्रिपुरा चावल की खरीद व वितरण करते हैं, जबकि पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र गेहूं की खरीद व वितरण करते हैं।

ज्यादातर राज्य डीसीपी मोड के तहत गेहूं और धान की खरीद ही करते हैं। केवल पंजाब आढ़तियों के माध्यम से भुगतान करता है, शेष राज्य ऑनलाइन भुगतान करते हैं।

एमएसपी के तहत एमएसपी का भुगतान, संग्रहण के लिए जगह का इंतजाम करना, बारदाना और मजदूरों के इंतजाम से बचने के लिए राज्य सरकारें डीसीपी मोड में शामिल नहीं होते।

कमेटी ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह राज्य सरकारों से बात करे और डीसीपी मोड के तहत राज्यों के समक्ष आ रही समस्याओं को समझे और उनका निवारण करने का प्रयास करे।

कमेटी ने सरकार से जानना चाहा कि क्या डीसीपी स्कीम की कोई समीक्षा भी की जाती है। मंत्रालय ने बताया कि नीति आयोग ने डीसीपी स्कीम के कामकाज की समीक्षा के लिए एक इवेल्यूएशन एडवाइजरी कमेटी का गठन किया, जो अभी अध्ययन कर ही रही है।

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