परंपरागत भोजन के रहस्य खोलती एक किताब

यह किताब आपको जीविकोपार्जन से जुड़े परंपरागत भोजन के बारे में बताएगी। यह किताब उस व्यापार के बारे में है, जो अदृश्य है और उस व्यापार के बारे में है जो उदीयमान है
परंपरागत भोजन के रहस्य खोलती एक किताब
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अच्छा भोजन परंपरागत भोजन है न कि जंक फूड। अच्छा भोजन प्रकृति और पोषण को जीविका से जोड़ता है। यह भोजन हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, हमारी वासस्थान की समृद्ध जैवविविधता से आता है और लोगों को रोजगार देता है। सबसे जरूरी बात यह कि परंपरागत भोजन पकाना व खाना दोनों हमें उल्लास से भर देता है। साथ ही साथ इससे स्वास्थ्य भी बढ़िया रहता है।

वर्ष 2013 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने फर्स्ट फूड श्रृंखला की पहली किताब प्रकाशित की थी। नाम था फर्स्ट फूड: ए टेस्ट ऑफ इंडियाज बायोडायवर्सिटी। मैंने उस वक्त लिखा था कि भोजन का ताल्लुक संस्कृति और जैवविविधता से है। हम अक्सर भूल जाते हैं कि भोजन में विविधता या यो कहें कि संस्कृति में विविधता सीधे तौर पर जैविक दुनिया से जुड़ी हुई है। हमने उस वक्त तर्क दिया था कि हमें पौधों व उसकी विशेषताओं का सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शन करना चाहिए और यह भी जानना चाहिए कि उन्हें कैसे पकाया जाए कि असली स्वाद और सुगंध आए।

वर्ष 2017 में फर्स्ट फूड: कल्चर ऑफ टेस्ट का प्रकाशन हुआ था। इस किताब में हमने भोजन पकाने की उन विधियों को शामिल किया, जिनसे हमें पौधों की विविधता का पता चल सके। हमने ऐसा इसलिए किया क्योंकि तब तक यह शीशे की तरह साफ हो गया था कि पूरी दुनिया मोटापे की महामारी झेल रही है।

हालांकि, दुनिया अब भी इस बीमारी को झेल रही है। अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि जिस भोजन का सेवन हम कर रहे हैं, वह हमारी सेहत के लिए खराब है। इसमें पौष्टिकता नहीं है और न इसके गुण अच्छे हैं। सबसे अहम बात कि अब ये भी स्पष्ट होता जा रहा है कि हमारे भोजन में ये बदलाव यानी घर में बने पौष्टिक आहार, रसोई की परम्परा और सदियों पुरानी पद्धति से मुंह मोड़ लेना आकस्मिक या अप्रत्याशित बिल्कुल भी नहीं है।

हम प्रसंस्कृत और फैक्ट्री में बने भोजन के युग के बच्चे हैं। मार्केटिंग ने हमारी आदतें और सच कहें तो हमारी भोजन संस्कृति को बदल दिया है, जिससे हमारी रुचि में तब्दीली आ गई है। मगर, ये सवाल हमेशा बना हुआ है कि हम बुरे भोजन की संस्कृति को बदलेंगे कैसे? क्या यह संभव है भी? प्रसंस्कृत फूड इंडस्ट्री के पास अकूत शक्ति है, भोजन को लेकर प्रोपेगेंडा के जरिए लोगों तक खास कर युवा वर्ग तक उनकी व्यापक पहुंच है। उन्होंने रंग, स्वाद और गंधों के जरिए लोगों को लुभाने की कला को मांज लिया है। उन्हें पता है कि सेहत के लिए बुरा जानते हुए भी किस तरह हम ऐसे भोजन की तरफ आकर्षित हो जाएंगे। सबसे जरूरी बात कि प्रसंस्कृत फूड इंडस्ट्री ने हमारी व्यस्त जीवनशैली के खांचे में सबसे माकूल ओहदा पा लिया है। यह भोजन बहुत सुविधानजक है क्योंकि यह सर्वथा हमारे साथ है और इससे पकाने में कोई झंझट नहीं है। बहुत आसानी से इसे बनाया जा सकता है।

लेकिन, अहम बात यह है कि भोजन की दुनिया उनका कारोबार है। यह उद्योग इसलिए काम कर रहा है क्योंकि उन्हें कमाई करनी है। यही वजह है कि कंपनियां सप्लाई चेन बनाती हैं ताकि भोजन हम तक पहुंच सकें। ऐसे में सवाल है कि अच्छे भोजन की सप्लाई कैसे की जाए? क्या जीविकोपार्जन का यह कारोबार मुख्यधारा की फूड इंडस्ट्री का हिस्सा हो सकता है या फिर इसे समानांतर बाजार की दरकार है? इनके लिए क्या कारगर होगा?

इसे जेहन में रखते हुए हम इस साल फर्स्ट फूड: बिजनेस ऑफ टेस्ट लेकर आए हैं। यह किताब आपको जीविकोपार्जन से जुड़े परंपरागत भोजन के बारे में बताएगी। यह किताब उस व्यापार के बारे में है, जो अदृश्य है और उस व्यापार के बारे में है जो उदीयमान है। लेकिन, उस व्यापार के बारे में भी है, जिसे फूलना-फलना चाहिए और जो हमारे जीवन को संभाल सके। हम जानते हैं कि ऐसा संभव है। टेफ यूथोपिया का एक मोटा अनाज है। टेफ छोटे-छोटे बीज (सिकिया जैसे, इसका जिक्र इस किताब में भी हुआ है) होते हैं, जिसमें लसलसापन नहीं होता है। टेफ की इस विशेषता को वहां भुनाया गया है। यूथोपिया में 63 लाख किसान देश की कुल कृषि भूमि के 20 फीसदी हिस्से में टेफ की खेती करते हैं। इस बीज को यूथोपिया की तरफ से कॉफी के बाद दुनिया को मिला दूसरा तोहफा कहा जाता है। लंदन में एक किलोग्राम टेफ का आटा 7 यूरो में मिलता है। वहीं, यूथोपिया में एक किलोग्राम टेफ का आटा हाफ पाउंड से भी कम कीमत पर मिल जाता है।

भारत में भी ऐसी मिसालें हैं। रागी जैसा मोटा अनाज और ब्राउनटॉप हमारे फूड मार्केट में दिखने लगे हैं। हम इसका सेवन कर रहे हैं क्योंकि ये बाजार में उपलब्ध है। अच्छे भोजन को लेकर बढ़ रही इस लोकप्रियता को बचाकर रखना होगा ताकि यह हमारी जिंदगी का जायका बन जाए। हमने इस भोजन के व्यापार को भी खोज निकाला है। जिस तरह चाय उद्योग गुड़हल के फूल (हिबिस्कस सब्दरिफा) के लिए छोटे किसानों को जोड़ रहा है या किस तरह कटहल की खेती बढ़ गई है ताकि साल भर उसकी उपलब्धता बनी रहे। ये कहानियां बेहद अहम हैं। शायद यह हमारे खराब भोजन की बुरी आदतों को समाप्त करने के लिए काफी नहीं हैं। लेकिन ये कहानियां हमें भविष्य के समाधान बताती हैं।

भोजन के इस नए कारोबार के बदलाव के वाहक हैं शेफ। वे हमें खुशी देते हैं और अच्छे भोजन को लेकर समाज को नया रास्ता दिखाते हैं। इसलिए शेफ ही वे लोग हैं, जो भोजन, पौष्टिकता, प्रकृति व आजीविका के साथ इस नए संपर्क को आकार देने में मदद करेंगे। यही वजह है कि फर्स्ट फूड के इस विशेष संस्करण में पाक शैली के इन नामचीन पुरुषों व महिलाओं को आमंत्रित किया कि वे अपने व्यंजन हमारे साथ साझा करें। भोजन का यह फैशन हमारे लिए हितकर होगा।

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