हाथ से चलने वाली चक्की अब प्रचलन से बाहर होती जा रही है। ग्रामीण घरों में इस चक्की से अनाज पीसा और दालों को दला जाता रहा है
हाथ से चलने वाली चक्की अब प्रचलन से बाहर होती जा रही है। ग्रामीण घरों में इस चक्की से अनाज पीसा और दालों को दला जाता रहा है

आहार संस्कृति: चलेगी चक्की, बनेगी सेहत

घर में तैयार किए गए आटे, दाल और दलिए से स्वास्थ्य और स्वाद दोनों मिलते हैं। इनके साइड प्रोडक्ट भी प्रयोग में आ जाते हैंं
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ये बात उस समय की है जब हमारे देश में गेहूं घर पर ही पीसा जाता था। उत्तर प्रदेश में मेरी दादी और नानी दोनों के ही घरों में एक नहीं बल्कि दो-दो चक्की थी। बड़ी चक्की से अनाज पीसा जाता था जबकि छोटी चक्की (चकुला) से दलिया और दाल दली जाती थी। रोज गेहूं, बाजरा, ज्वार, मक्की आदि को पीसकर आटा तैयार किया जाता था।

देश के अलग-अलग प्रांतों में चक्कियों का डिजाइन अलग-अलग होता है, पर उत्तर प्रदेश में चक्की दो चपटे पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर बनाई जाती है। नीचे वाले पत्थर में एक लोहे का सरिया लगा होता है और ऊपर वाले पत्थर के बीच में एक गोल छेद होता है। इस छेद में एक लकड़ी का टुकड़ा (गलुआ) फंसाया जाता है। इसमें नीचे के पत्थर से निकली छड़ को अटकाया जाता है जिससे पत्थर एक-दूसरे पर गोल-गोल घूम सकें। इस काम के लिए ऊपर वाले पत्थर पर एक हैंडल भी होता है। बीच के छेद से अन्न डाला जाता है और हैंडल से पत्थर को घुमाया जाता है। इसके बाद आटा पिसकर किनारों से निकलता है।

अनाज पीसने वाली चक्की एक जगह स्थिर रहती है पर चकुला जहां दिल चाहे वहां रख सकते हैं। इसकी मदद से कहीं भी एक चद्दर बिछाकर दाल या दलिया दलना शुरू कर सकते हैं। चकुले के दोनों पाटों के बीच में इतनी ही जगह होती है कि दाना टूट जाए पर पिसे नहीं। यह चक्की सेट करने वाले की कुशलता पर निर्भर होता है कि न ज्यादा दाने बिना टूटे निकलें और न ही दाने चकनाचूर हों।

वैसे तो चकनाचूर दानों का प्रयोग भी निश्चित है। दाल से निकले चूरे को चुनी कहा जाता है और इसके बहुत ही स्वादिष्ट परांठे बनाए जाते हैं। चुनी का परांठा बनाना सरल है। कल्पना कीजिए कि सर्दियों की धूप में बैठकर नए बने आम के आचार के साथ खूब घी वाला परतदार चुनी का परांठा खाने को मिल रहा हो। चुनी के टुकड़ों पर चिपके छिलके खाने को पोषक बनाते हैं। दाल ही की तरह चुनी को भी महीनों स्टोर किया जा सकता है। सर्दियों की शुरुआत में दाल की नई फसल कटकर बाजार में आती है। इसी मौसम में दाल दलना भी घर का एक महत्वपूर्ण काम होता है।



चक्की पर दली हुई दाल को घिसकर सुंदर नहीं बनाया जाता, इसलिए यह ज्यादा पौष्टिक होती हैं। ऐसी अनपॉलिश्ड दालें आजकल फैशन में हैं और काफी महंगी मिलती हैं पर बाजार में मिल रही अनपॉलिश्ड दाल को मशीन से ही प्रोसेस किया जाता है। मशीन से प्रोसेस की गई दाल में चुनी नहीं निकलती। अगर निकलती भी है तो उसका इस्तेमाल नहीं होता।

अनाज से दलिया भी चुकले पर बनाया जाता है। ज्यादातर लोगों को केवल गेहूं के दलिए के बारे में पता होता है क्योंकि बाजार में वही मिलता है। दलिया बाजरा, ज्वार और मक्की जैसे मोटे अनाज का भी होता है। चकुले पर अन्न को अधपिसा छोड़कर दलिया बनाया जाता था। यह साबुत अनाज से ज्यादा जल्दी पकता है। दलिए को बनाने से पहले भूना जाता है और फिर इसको उबाला जाता है, क्योंकि इसके टुकड़े छोटे होते हैं। यह प्रक्रिया ज्यादा समय नहीं लेती। दलिया मीठा भी हो सकता है और नमकीन भी। मीठा दलिया बनाने के लिए इसे दूध में पकाया जाता है।

नमकीन दलिए में सब्जियां भी डाली जा सकती हैं। पोहे की तरह इसे सूखा भी बनाया जा सकता है। बाजार में चक्की से बने दलिए के बजाय मशीन से कटे हुए अन्न को बेचा जाता है। इससे यह बराबर टुकड़ों में कटता है जो ग्राहक तो ज्यादा पसंद आता है।

पुराने घरों में चक्की और चकुले का बहुत महत्व होता था। कहते हैं कि इस चक्की में पिसे गेहूं की गरमा-गरम रोटियों का स्वाद कुछ और ही होता है। साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी होती है।

हल्दी जैसे कई मसालों को पीसने का काम भी चक्की पर ही किया जाता था। मोहल्ले में अगर एक घर में हल्दी पीसना शुरू किया जाता तो बाकी घरों की औरतें भी वहीं जाकर हल्दी पीस कर ले आती थीं क्योंकि इसके बाद चक्की साफ करना मुश्किल होता था। कुछ समय तक तो इस घर के लोगों को पीली रोटी ही खानी पड़ती थी। इसी तरह चकुले को व्रत के समय कुट्टू, सिंघाड़े और समां के चावल का आटा बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है और सेंधा नमक भी इसी पर पीसा जाता है, क्योंकि यह छोटी होती है और कहीं फिक्स्ड नहीं होती। व्रत का सामान तैयार करने से पहले इसे अच्छी तरह से धोया जा सकता है।

चक्की चलाने से अच्छे खाने के साथ कसरत भी हो जाती है। पुराने जमाने में गर्भवती महिलाओं से चक्की इसलिए चलवाई जाती थी कि बच्चा आराम से हो जाए। वैसे भी चक्कीचलनासन योग का एक महत्वपूर्ण आसन है जिससे कमर और रीढ़ की हड्डी सृदढ़ बनती है। आजकल की डेस्क जॉब्स से जुड़े लोगों को यह आसन नियमित करना चाहिए। इसके साथ ही चक्की चलने से पेट की चर्बी भी कम होती है और जिम जाने के झंझट से बचाती है। समय आ गया है कि चक्की तो वापस में लाया लाए। आजकल चक्की सजावटी सामान की तरह बेची जाती हैं। लोग इसको घर पर लगाकर इसका फायदा उठा सकते हैं।

मूंग की चुनी का परांठा सामग्री:

चुनी : एक कटोरी गेहूं का आटा : दो कटोरी देसी घी : एक टेबल स्पून (प्रति परांठा) हरी मिर्च (बारीक कटी) : दो नमक : स्वादानुसार हींग, धनिया आदि मसाले : पसंद के अनुसार)

विधि: चुनी को थोड़े से पानी में एक घंटे के लिए भिगोएं। फिर इसमें आटा और बाकी मसाले मिलाएं और मांड लें। अब थोड़ा सा आटा लें और उसे बेलें। उस पर थोड़ा घी लगाएं और उसे कई बार तह करें। इसे फिर बेलें और गरम तवे पर डालें। धीमी आग पर इसमें घी लगाकर सेकें। जब दोनों तरफ सिंक जाएं तो उसे तवे से उतारें और हलके से मसल दें जिस से इसकी तहें दिखें। अब यह दही और अचार के साथ खाने के लिए तैयार है।

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