आहार संस्कृति: ऐसा साग, जिसे खाकर गर्भावस्था के दौरान भी खेतों में काम करती थी महिलाएं

कर्नाटक के सोलिगा जनजाति के पुराने समय के लोग एनागोन सोप्पू के फायदों को गिनाते नहीं थकते
आहार संस्कृति: ऐसा साग, जिसे खाकर गर्भावस्था के दौरान भी खेतों में काम करती थी महिलाएं
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पचहत्तर वर्षीय पुट्टम्मा अपनी बहू से नाराज हैं। वह शिकायती लहजे में कहती हैं, “वह सात महीने की गर्भवती है और देखो कितनी कमजोर है। मैं उसे एनागोन सोप्पू (अल्टरनथेरा सेसिलिस) खाने की सलाह देती हूं, लेकिन वह सुनती ही नहीं।”

दरअसल, उनकी बहू को प्रतिदिन आयरन सप्लीमेंट लेना पड़ता है क्योंकि वह गंभीर रूप से एनीमिक है। वह याद करती हैं, “एनागोन सोप्पू हमारे आहार का एक नियमित हिस्सा था और हमें कभी भी ऐसी समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा। यह पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसे खाकर हमने गर्भावस्था के दौरान भी खेतों में काम किया था।”

पुट्टम्मा कर्नाटक के सोलिगा समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और चामराजनगर जिले के गोरासाने गांव में रहती हैं। यह गांव पश्चिमी घाट के माले महादेश्वर पहाड़ियों के करीब है, जहां नवंबर से अप्रैल तक यह जलीय पौधा बहुतायत में पाया जाता है। उसके गांव के लोग एनीमिया, पीलिया, रतौंधी, बवासीर, बांझपन से लड़ने, तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने और बालों के विकास को बढ़ावा देने के लिए पौधे की पत्तियों का उपयोग करते हैं। स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए भी इसकी सिफारिश की जाती है क्योंकि यह मां के दूध को बढ़ाने वाला माना जाता है। दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में पड़ोसियों और गर्भवती महिलाओं को इसके पत्ते उपहार में देना काफी आम बात है।

सोलिगा सदियों से जंगलों में रह रहे हैं और अपने पारंपरिक ज्ञान और खाद्य संस्कृति के लिए जाने जाते हैं। हालांकि सरकार सोलिगा परिवारों के लिए विशेष पोषक खाद्य योजनाएं चलाती है और उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज प्रदान करती है, लेकिन सोलिगा अभी भी कुपोषण से पीड़ित हैं। अपनी जनजाति की स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे पुट्टम्मा का अपना सिद्धांत है।

पुट्टम्मा का कहना है कि उन्होंने युवा पीढ़ी की जीवनशैली और भोजन प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। उनका कहना है, “जब हम छोटे थे तो हमने जंगल में और हमारे खेत में कम से कम 50 किस्मों की साग, 40 से अधिक किस्मों के जंगली फलों और 30 से अधिक सब्जियों और फसलों का सेवन किया था। मैं और मेरे माता-पिता 15 प्रकार की मिश्रित हरी पत्तियों को इकट्ठा करते थे और शाम को उन्हें नमक, मिर्च, इमली और लहसुन के साथ पकाते थे।” वह कहती हैं कि पकवान को सप्ताह में कम से कम तीन बार रागी के साथ खाया जाता था।

हमारे पास शायद ही कभी चावल या सेब और संतरे थे। लेकिन गांव के लोग आज जंगल या यहां तक कि अपने पड़ोस से जंगली साग, फल, कंद और सब्जियां इकट्ठा करने की इच्छा नहीं रखते। वे चावल और चावल आधारित खाद्य पदार्थ, काली चाय और पैक्ड स्नैक्स का सेवन करते हैं। पुट्टम्मा की सलाह है कि मेहनती लोगों को ढेर सारे हरे पत्ते खाने चाहिए। उनका मानना है कि ये भगवान का उपहार हैं।

अनुसंधान से पता चलता है कि सोलिगा सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हैं और ऐसा लगता है कि एनागोन सोप्पू और अन्य जंगली खाद्य पदार्थों में उन्होंने अपनी आनुवंशिक कमियों को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका खोज लिया था। लेकिन खान-पान में बदलाव ने उन्हें कुपोषित बना दिया।

जांचा परखा

एनागोन सोप्पू का उपयोग पारंपरिक दवाओं में काफी आम है। सिद्ध चिकित्सा पद्धति में इस पौधे को आहार औषधि कहा जाता है और इसके पत्तों को घी में भूनकर खाने से आंखों को लाभ मिलता है। हाल के अध्ययनों ने भी पौधे के स्वास्थ्य लाभों की पुष्टि की है। 2014 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्माकोग्नॉसी एंड फाइटोकेमिकल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि इसकी पत्तियों में एंटी-माइक्रोबियल गुण होते हैं और घावों और अल्सर को ठीक करने में मदद करते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि पूरे पौधे में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं।

हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान एनीमिया को दूर करने के लिए गर्भावस्था के दौरान इसके उपयोग की सिफारिश करता है क्योंकि यह आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन सी और बी कॉम्प्लेक्स में समृद्ध है। हालांकि पौधे की खपत कम हो गई है, लेकिन दक्षिण भारत के ग्रामीण इलाकों में एनागोन सोप्पू व्यंजन अभी भी महीने में कम से कम दो बार खाए जाते हैं। शहरी घरों में लोग इसे महीने में औसतन एक बार खाते हैं।

बरसात के मौसम में जब यह बहुतायत में होता है तो पत्ते 20 रुपए प्रति किलो बिकते हैं और गर्मियों में कीमत बढ़कर 40 रुपए हो जाती है। बेंगलुरु और मैसूर जैसे बड़े शहरों में सब्जी विक्रेता इसे 30-60 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं और 15-20 किलो प्रतिदिन बेचते हैं। इससे वे 600-1,000 रुपए प्रतिदिन कमाते हैं। हालांकि, जो लोग पत्ते इकट्ठा करते हैं, उन्हें केवल 10 रुपए प्रति किलो मिलता है।

हमारे जैसे देश में जहां कुपोषण और एनीमिया व्यापक है, एनागोन सोप्पू पोषण का एक अच्छा स्रोत हो सकता है, खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए। समय आ गया है कि हम इसके उपयोग को प्रोत्साहित करें।

व्यंजन
सोपिना पाल्य
  • एनागोन सोप्पू के साफ, कटे हुए ताजे पत्ते: 2 कटोरी
  • मूंग दाल (उबली) : 40 ग्राम
  • लहसुन: 2-3 कलियां
  • प्याज: 1 (कटा हुआ)
  • तेल: 2 चम्मच
  • सरसों के बीज: 1/2 बड़ा चम्मच
  • हरी मिर्च : स्वादानुसार
  • नमक : स्वादानुसार
बनाने की विधि : एनागोन सोप्पू की ताजी पत्तियों को काट लें। एक मोटे तल वाले पैन में तेल गर्म करें और उसमें राई डालें। जब ये चटकने लगे तो इसमें प्याज और लहसुन डालें। फिर पत्ते और दाल डालें। अब नमक डालकर पकाएं।

पुस्तक
यह पुस्तक एक खाद्य मार्गदर्शिका है जिसमें बिना किसी दवा के पौधों पर आधारित भोजन से शरीर को ठीक करने का कालातीत ज्ञान को समाविष्ट किया गया है। इस पुस्तक में लेखिका सुबह सराफ द्वारा तैयार किए गए 45 से अधिक पौधे आधारित सात्विक उपचार व्यंजन हैं। सभी व्यंजन रिफाइंड तेल, चीनी, तीखे मसालों, दूध और दूध उत्पादों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों से मुक्त हैं।

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