संयुक्त राष्ट्र एनवायरमेंट असेंबली की शुरुआत 11 मार्च को केन्या के नैरोबी में एक वेकअप कॉल के साथ हुई। इसमें कहा गया है कि 2020 तक रसायनों और कचरे के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के वैश्विक लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएंगे।
हालांकि इसी सम्मलेन में जारी की गई सेकंड ग्लोबल केमिकल्स आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में रासायनिक उत्पादन 2030 तक दोगुना हो जाएगा। रासायनिक उद्योग दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा विनिर्माण क्षेत्र है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक जॉयस मसूया कहते हैं, “जो बात सबसे अधिक स्पष्ट है, वह यह है कि हमें साथ मिलकर बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।”
वर्तमान में हमारी कुल वैश्विक रासायनिक उत्पादन क्षमता 2.3 अरब टन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 2016 में रसायनों से संबंधित बीमारियों के कारण 16 लाख जानें गईं थीं।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, यह समस्या को कम कर आंकना होगा।
पहला ग्लोबल केमिकल्स आउटलुक (जीसीओ-1) 2013 में जारी किया गया था। तब से अब तक रासायनिक उपयोग में वृद्धि ही हुई है जबकि आवश्यकता इसमें कटौती किए जाने की थी।
2015 में दुनिया ने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को अपनाया। इसके 17 विकास लक्ष्य रसायनों और उनके अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित हैं।
एसडीजी लक्ष्य 12.4 के अनुसार, “2020 तक रसायनों एवं अन्य अपशिष्टों का प्रबंधन उनके पूरे जीवनचक्र के दौरान पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए वैश्विक समझौतों के अनुरूप किया जाएगा। इसके अलावा हवा, पानी एवं मिट्टी में रासायनिक उत्सर्जन कम से कम हो ताकि मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर कम से कम प्रतिकूल प्रभाव पड़े।
यूएनईपी और इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ केमिकल एसोसिएशन द्वारा 2018 में एक आकलन से पता चला है कि पूरी दुनिया में व्यावसायिक रूप से उपयोग किए जा रहे रसायनों की संख्या 40,000 से 60,000 है। इसके अलावा कुल रासायनिक घनत्व का 99 प्रतिशत केवल 6,000 रसायनों से मिलकर आता है।
नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों में हुए समझौतों और पहले से ही की गई महत्वपूर्ण कार्रवाई के बावजूद वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है कि रसायनों और कचरे के सही प्रबंधन की दिशा में कुछ ख़ास प्रगति नहीं हो पाई है। उदाहरण के लिए 2018 तक 120 से अधिक देशों ने “ग्लोबली हॉर्मोनाइज्ड सिस्टम ऑफ क्लासिफिकेशन ऐंड लेबलिंग ऑफ केमिकल्स” को नहीं अपनाया था।
यह रिपोर्ट रसायन के उपयोग से पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उपजे सामान्य खतरों को सामने लाती है, लेकिन यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि विकासशील राष्ट्रों में रसायनों का उपयोग अब बढ़ रहा है। इन राष्ट्रों में विनियमन और निगरानी के मानक पहले से ही काफी कमजोर हैं। ये विकासशील देश रसायनों के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं के रूप में उभर रहे हैं।
रिपोर्ट कहती है, रासायनिक उत्पादन और खपत उभरती अर्थव्यवस्थाएं विशेष रूप से चीन में स्थानांतरित हो रही हैं। अनुमानों के अनुसार, 2030 तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक बिक्री के दो-तिहाई से अधिक हिस्से के लिए जिम्मेदार होगा। क्रॉस-बॉर्डर ई-कॉमर्स सालाना 25 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। अनुमानों के अनुसार यह वृद्धि एशिया में सबसे अधिक होगी। 2030 तक वैश्विक बिक्री का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा चीन के जिम्मे होगा।