समता जजमेंट को लागू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं आदिवासी

तीन दशक पहले उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक समता जजमेंट से खनिज संसाधनों पर अधिकार हासिल करने वाले गांव की लड़ाई अब भी जारी है
विजयनगरम जिले के करकावालसा गांव के निवासी 1990 के दशक से खनन का विरोध कर रहे हैं। अब वे खुद खनन से लाभांवित होने की कोशिशों में हैं (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
विजयनगरम जिले के करकावालसा गांव के निवासी 1990 के दशक से खनन का विरोध कर रहे हैं। अब वे खुद खनन से लाभांवित होने की कोशिशों में हैं (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
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आंध्र प्रदेश के निमालापाडू गांव के निवासियों ने 1997 में एक ऐसी जीत हासिल की जो अकल्पनीय थी। दरअसल, उन्होंने अपने गांव को खनन से बचाने के लिए राज्य सरकार और एक निजी कंपनी के खिलाफ कानूनी लड़ाई जीती।

उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार के पक्ष में 1993 के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए आदेश दिया कि केवल कोंडा डोरा जनजाति और उनकी सहकारी समितियों से संबंधित लोग ही पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में खनिजों का दोहन कर सकते हैं। यहां निजी खनन अवैध है, भले ही वह सरकारी समर्थन प्राप्त हो।

उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को समता जजमेंट कहा गया, क्योंकि इस नाम के गैर लाभकारी संगठन ने मुकदमा लड़ने में लोगों की मदद की थी। यह आदेश कहता है कि अगर सरकार सीधे खनन का फैसला करती है, तब भी उसे पहली प्राथमिकता आदिवासियों के हितों को देनी होगी।

तब से अब तक दो दशक से अधिक समय हो चुका है। आंध्र प्रदेश-ओडिशा सीमा के बसे इस गांव के निवासी अब भी अपने कैल्साइट भंडार को लेकर राज्य से लड़ रहे हैं। कैल्साइट एक खनिज है जिसका उपयोग निर्माण सामग्री, घर्षण, मृदा उपचार आदि में किया जाता है।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि खनन लाइसेंस के लिए जिम्मेदार राज्य एजेंसी आंध्र प्रदेश खनिज विकास निगम (एपीएमडीसी) ने कोंडा डोरा समुदाय से संबंधित राज्य के सहकारी समितियों या व्यक्तियों को 1997 से अब तक पांच बार लाइसेंस जारी किए हैं।

हर बार इसने लोगों को इस प्रक्रिया से बाहर रखने के नए तरीके ढूंढे हैं। खनन के लिए 2006, 2012, 2018, 2019 और 2021 टेंडर जारी किए गए हैं। जिन लोगों टेंडर जारी किए गए हैं, उन्हें लोगों ने केवल एक बार 2012 में 4 हेक्टेयर जमीन पर खनन की अनुमति दी है, वह भी तब जब उन्होंने उचित मुआवजा दिया।

करकावालसा गांव के लाटचन्ना राव कहते हैं, “दुर्गा सैंडस्टोन मैक सोसायटी ने हर साल 2 लाख का मुआवजा उन ग्रामीणों को दिया, जिनकी जमीन पर खनन किया गया। भूमिहीनों को हर साल एक लाख रुपए दिया गया। इसने कुछ अन्य लोगों को भी सदस्य के रूप में नामांकित और उन्हें वेतन दिया।”

लगातार हमले

स्थानीय लोगों को कमजोर करने का सबसे हालिया प्रयास 16 मार्च 2021 में किया गया था, जब एपीएमडीसी ने 32.7 हेक्टेयर क्षेत्र में कैल्साइट के खनन के लिए निविदा जारी की। इसका असर पड़ोसी करकावालसा और रालारावु गांवों के साथ निमालापाडू पर भी पड़ेगा।

स्थानीय लोगों ने कुछ दिनों में ही इस पर उच्च न्यायालय का स्थगन आदेश इस आधार पर ले लिया कि वे निविदा प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाएंगे क्योंकि उसमें केवल ठेकेदारों द्वारा ही बोली लगाने की अनुमति है।

इन ठेकेदारों को भारी भरकम मशीनों से खनन का अनुभव है। न्यायालय में याचिका श्री अभय गिरिजन म्युचुअली एडेड लेबर कोऑपरेटिव सोसाइटी की ओर से दाखिल की गई थी। यह समूह दुर्गा सैंडस्टोन मैक सोसाइटी में काम करने वाले स्थानीय लोगों का है।

यह समूह खनन की प्रत्यक्ष अनुमति चाहता है। समूह के एक सदस्य चौंपी बालाराजू कहते हैं, “हमारे पूर्वज कभी खनन नहीं चाहते थे, लेकिन सरकार की हठधर्मिता को देखते हुए हमने इसे करने का फैसला किया।”

एपीएमडीसी ने पिछले साल अप्रैल में विवादास्पद नियम को हटाकर कोंडा डोरा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले दो ठेकेदारों को पांच साल का खनन लाइसेंस दिया, लेकिन ये ठेकेदार संबंधित तीनों गांवों से नहीं हैं।

गैर-लाभकारी समता के कार्यकारी निदेशक रवि रेब्बा प्रगाडा कहते हैं, “ठेकेदारों को खनन का कोई अनुभव नहीं है और वे केवल कागजों पर ही खनन के जिम्मेदार रहेंगे। इनके पीछे असली खिलाड़ी वे हैं जिनसे लोग लंबे समय से लड़ रहे हैं। ये लोग ठेकेदारों के माध्यम से भूमि का दोहन करना शुरू कर देंगे।”

वह आगे कहते हैं कि अगर सरकार गंभीर होती तो वह लोगों के समूह को ठेका देती। ठेकेदार हर महीने 4,000 मिलियन टन कैल्साइट निकाल सकते हैं और एपीएमडीसी को 448 रुपए प्रति टन शुल्क का भुगतान करना होगा। स्थानीय लोगों का आरोप है कि सरकारी एजेंसी ने भी लाइसेंस देने से पहले तीनों ग्राम सभाओं से अनुमति नहीं ली। यह 1996 के पेसा (पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) कानून के तहत अनिवार्य भी है।

रेब्बा प्रगाडा कहते हैं, “प्रस्तावित खनन क्षेत्र में 18 परिवारों की जमीन है। कम से 130 परिवार ऐसे हैं जो या तो खेतिहर मजदूर हैं या बिना कानूनी अधिकारों के पीढ़ियों से सरकारी जमीन पर खेती करते आ रहे हैं। इन सभी को मुआवजा देने की जरूरत है।”

स्थानीय लोग 2012 में अपनी कमाई के आधार पर परियोजना के चलने तक अपनी भूमि के लिए रॉयल्टी की मांग कर रहे हैं। वे कंपनी के चले जाने के बाद पुनर्वास के लिए फंड भी चाहते हैं। उनकी अन्य मांगों में रोजगार, भूमि के बदले भूमि, एक सेलुलर टावर, 24 घंटे डॉक्टर और परिवहन सुविधाएं शामिल हैं।

इस संघर्ष में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले 60 वर्षीय पंडाना कहते हैं, “हमारी ज्यादातर मांगें विकास को लेकर हैं जो आदर्श रूप में सरकार का काम है। राज्य ने हमें निजी खनन की अनुमति नहीं देने के लिए दंडित किया है। सरकार ने इस क्षेत्र में कैल्साइट पाए जाने के बाद 1970 के दशक के बाद से कोई विकास परियोजना नहीं चलाई है।” निकटतम अस्पताल बोबिली नगर में है जो करीब 40 किलोमीटर दूर है।

बालाराजू कहते हैं, “गंदगी के कारण मलेरिया और टाइफाइड के मामलों में वृद्धि हुई है। हमारे पास अच्छी सड़कें या विश्वसनीय मोबाइल कनेक्टिविटी भी नहीं है।”

शिक्षा दूसरी बड़ी चुनौती है। अच्छे स्कूल दूर हैं और ज्यादातर बच्चे बेहतर शिक्षा के लिए अन्य गांवों या शहरों की यात्रा करने को विवश हैं। दिसंबर 2021 में ठेकेदारों और एपीएमडीसी ने प्रस्ताव रखा कि वे केवल सरकारी भूमि पर खनन करेंगे। इसके लिए उन्होंने ग्रामीणों से अनुमति मांगी।

ग्रामीणों ने इसके जवाब में सरकारी जमीन पर खेती करने वाले परिवारों के लिए 1.50 लाख रुपए प्रति एकड़ (0.4 हेक्टेयर) की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर खदानों से सटी जमीन को नुकसान पहुंचाया जाता है तो ठेकेदार को इसका मुआवजा देना होगा।

बालाराजू कहते हैं, “मंडल परिषद के पूर्व अध्यक्ष और नए ठेकेदारों में से एक दुर्या रुक्मणी हमें अनौपचारिक रूप से प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं। उसके लोग सांस्कृतिक कार्यक्रम और उत्सव का आयोजन कर रहे हैं। लेकिन हम तब तक नहीं मानेंगे जब तक वे हमारी सभी मांगों पर सहमत नहीं हो जाते और कानूनी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करते।”

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