
अब भारत में परमाणु खनिज (जैसे यूरेनियम, थोरियम), महत्त्वपूर्ण खनिज और रणनीतिक खनिज (जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्व) की नई खनन परियोजनाएं शुरू होंगी तो उनके लिए आम जनता से राय लेने या जनसुनवाई करने की जरूरत नहीं होगी। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा है कि यह परियोजनाएं “राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा जरूरतों तथा रणनीतिक विचारों” से जुड़ी हैं।
आठ सितंबर, 2025 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अपने नए कार्यालय ज्ञापन (ओएम) में यह बात कही है। ओएम में कहा गया, "मंत्रालय ने पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए), 2006 के प्रावधानों के अनुसार और राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा की आवश्यकता तथा रणनीतिक विचारों को देखते हुए निर्णय लिया है कि खनिज एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम की पहली अनुसूची के भाग बी में अधिसूचित परमाणु खनिजों और भाग डी में अधिसूचित महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों से जुड़ी सभी खनन परियोजनाओं को जनसुनवाई से छूट दी जाती है।"
खनिज एवं खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2023 में पहली अनुसूची के तहत परमाणु खनिज और महत्त्वपूर्ण व रणनीतिक खनिजों की नई परिभाषा तय की गई है। भाग-बी में यूरेनियम और थोरियम युक्त खनिज जैसे मोनाजाइट, पिचब्लेंड, रेर अर्थ वाले खनिज, फॉस्फोराइट, बीच सैंड से मिलने वाले इल्मेनाइट, रूटाइल, जिरकॉन और सिलिमेनाइट को रखा गया है।
वहीं, भाग-डी में 24 महत्त्वपूर्ण खनिज शामिल किए गए हैं, जिनमें लिथियम, कोबाल्ट, निकल, ग्रेफाइट, गैलियम, इंडियम, मोलिब्डेनम, नियोबियम, रेयर अर्थ (बिना यूरेनियम-थोरियम), टंग्स्टन, टैंटलम, टाइटेनियम, वैनाडियम, पोटाश, फॉस्फेट, सेलेनियम, टेल्यूरियम, रेनियम और प्लेटिनम समूह के तत्वों के साथ-साथ बेरिलियम, कैडमियम, टिन और जिरकोनियम जैसे खनिज शामिल हैं। यह संशोधन साफ करता है कि भविष्य की ऊर्जा, रक्षा और प्रौद्योगिकी जरूरतों को देखते हुए भारत इन खनिजों को रणनीतिक संसाधनों की श्रेणी में रख रहा है।
जनसुनवाई की छूट को लेकर मंत्रालय (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालयने यह तर्क दिया है कि, "13 मार्च, 2025 को एक कार्यालय ज्ञापन (ओएम) जारी किया था, जिसके तहत सभी महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की खनन परियोजनाओं पर "आउट ऑफ टर्न" विचार करने की व्यवस्था की गई, ताकि इन प्रस्तावों की मंजूरी (clearances) तेजी से दी जा सके। यह ओएम इसलिए जारी किया गया था क्योंकि ये महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिज देश के कई क्षेत्रों की प्रगति के लिए जरूरी हैं, जिनमें हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, परिवहन और रक्षा शामिल हैं। ये भारत की 2070 तक ‘नेट जीरो’ की प्रतिबद्धता पूरी करने के लिए भी अहम हैं।
क्या है ईआईए, 2006 कानून, क्यों है जनसुनवाई सबसे अहम
भारत में ईआईए, 2006 कानून विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन के लिए बनाया गया था। यह तय करता है कि किसी परियोजना से पर्यावरण और स्थानीय समुदायों को क्या असर होगा और परियोजना शुरू करने से पहले किन शर्तों का पालन करना होगा।
इस कानून के तहत बड़ी और राष्ट्रीय स्तर की परियोजनाएं (जैसे कोयला खदानें, बड़े उद्योग, बड़े बांध) आदि को ए श्रेणी परियोजनाओं में रखा जाता है और इनकी मंजूरी केंद्र सरकार देती है। वहीं, अपेक्षाकृत छोटे आकार की परियोजनाओं को बी श्रेणी में रखा जाता है, जिनका मूल्यांकन सामान्यतः राज्य स्तर पर होता है।
आईआइए कानून के तहत किसी भी परियोजना को स्क्रीनिंग यानी यह तय करना कि परियोजना को ईआईए की जरूरत है या नहीं, स्कोपिंग यानी किन-किन बिंदुओं पर पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन किया जाए और जनसुनवाई स्थानीय लोगों और हितधारकों की राय जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है।
जनसुनवाई सबसे अहम हिस्सा है, जिसमें प्रभावित क्षेत्र की जनता से राय ली जाती है और जनसुनवाई के मिनट्स (रिपोर्ट) को परियोजना प्रस्ताव में शामिल करना अनिवार्य होता है। हालांकि, राष्ट्रीय रक्षा, सुरक्षा से जुड़ी परियोजनाएं या रणनीतिक रूप से अहम परियोजनाओं को इन दायरे से बाहर रखा गया है।
अब केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने यही छूट परमाणु, महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों की खनन परियोजनाओं को दे दिया है और कहा है कि ये परियोजनाएं “राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा जरूरतों तथा रणनीतिक विचारों” से जुड़ी हैं।
दो मंत्रालयों ने मांगी थी छूट
पर्यावरण मंत्रालय ने जारी अपने ताजा ओएम में बताया है कि यह छूट हाल ही में रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) द्वारा किए गए अनुरोध के बाद दी गई है।
जारी ओएम में मंत्रालय ने कहा है कि उसे 4 अगस्त, 2025 को उन्हें रक्षा मंत्रालय से एक प्रस्ताव मिला था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि दुर्लभ पृथ्वी तत्व (आरईईईएस) का इस्तेमाल रक्षा क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है। इनका उपयोग निगरानी और नेविगेशन सिस्टम जैसे रडार और सोनार, संचार और डिस्प्ले उपकरणों जैसे लेजर और एवियोनिक्स, हथियारबंद वाहनों में माउंटिंग सिस्टम, प्रिसीजन गाइडेड गोला-बारूद और मिसाइल गाइडेंस तकनीक में किया जाता है। मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आरईईएस स्थायी चुंबकों के निर्माण के लिए जरूरी हैं, जो रक्षा उपकरणों की रीढ़ माने जाते हैं। लेकिन भारत में इन खनिजों का भंडार बेहद सीमित है और दुनिया के कुछ ही देशों में इसका उत्पादन होता है, जिससे आपूर्ति पर बड़ा जोखिम है। इस चुनौती को देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने मांग की है कि महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों से जुड़ी खनन परियोजनाओं को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट मानते हुए इन्हें पर्यावरण मंजूरी के दौरान जनसुनवाई की प्रक्रिया से छूट दी जाए।
वहीं, परमाणु ऊर्जा विभाग ने भी 29 अगस्त 2025 को पर्यावरण मंत्रालय को भेजे गए पत्र में बताया कि बीच सैंड खनिज मोनाजाइट से प्राप्त थोरियम परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के तीसरे चरण के लिए संभावित ईंधन है, जबकि पहले चरण के लिए यूरेनियम खनन अनिवार्य है। विभाग ने जोर दिया कि इसके लिए देश में नए यूरेनियम और बीच सैंड खनिज भंडारों का तेजी से दोहन जरूरी है। इसी कारण विभाग ने मांग की है कि खनिज एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 की पहली अनुसूची के भाग-बी में सूचीबद्ध परमाणु खनिजों की खनन परियोजनाओं को शीघ्र ऑपरेशनलाइज करने के लिए 14 सितंबर 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना के तहत जनसुनवाई से छूट दी जाए।
केंद्रीय स्तर पर होगी समीक्षा, परियोजना के आकार से नहीं मतलब
हालांकि, आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि "इन परियोजनाओं की समीक्षा केंद्रीय स्तर पर की जाएगी, चाहे खनन पट्टा क्षेत्र कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो।"
जारी ओएम में कहा गया है, इन खनन परियोजनाओं की ईआईए या ईएमपी रिपोर्ट में अन्य पहलुओं के साथ-साथ स्थानीय बस्तियों/जनसंख्या पर प्रभाव, सामाजिक ढांचा (जैसे चिकित्सा सुविधाएं, पेयजल सुविधाएं), कौशल विकास और रोजगार अवसर, लोक शिकायत निवारण प्रणाली आदि का विवरण शामिल होना जरूरी होगा। ताकि संबंधित क्षेत्रीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति प्रस्ताव की व्यापक समीक्षा कर सके और उपयुक्त पर्यावरण प्रबंधन योजना बनाई जा सके।
ओएम में कहा गया है, "इस योजना को लागू करने के लिए परियोजना प्रस्तावक पर्याप्त वित्तीय और अन्य संसाधन उपलब्ध कराएंगे और उन्हें पर्यावरण प्रबंधन योजना में शामिल किया जाएगा।"