देश के 77 जिलों में नालों से भूमि कटाव: झारखंड और छत्तीसगढ़ सबसे अधिक प्रभावित

नेचर पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को एक समग्र भूमि प्रबंधन नीति की जरूरत है
तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक किया गया ह। चंडीगढ़, पंजाब के पास गहरी खाइयां। अनिल अग्रवाल/सीएसई द्वारा 1989 में ली गई तस्वीर
तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक किया गया ह। चंडीगढ़, पंजाब के पास गहरी खाइयां। अनिल अग्रवाल/सीएसई द्वारा 1989 में ली गई तस्वीर
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देश के 77 जिलों के नालों में कटाव के कारण जमीनें खराब हो रही हैं। ऐसे में इसे न केवल रोकने की जरूरत है बल्कि इसके लिए एक समग्र नीति की जरूरत है।

देश में सबसे अधिक नालों से जमीनों का कटाव झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों में होता है। उसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान का नंबर आता है।

यह जानकारी नेचर पत्रिका में प्रकाशित 2025 की एक वैज्ञानिक रिपोर्ट में कहा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नाले के कटाव से सबसे अधिक खतरा झारखंड को है। ऐसे में इसे सुधारने की प्रक्रिया में सबसे अधिक प्राथमिकता झारखंड को मिलनी चाहिए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को एक ऐसी भूमि प्रबंधन नीति की जरूरत है जो स्पष्ट रूप से खराब भूमि और नाले को स्पष्ट रूप से अलग-अलग न केवल दिखाए बल्कि इसका समाज और पर्यावरण पर उनके प्रभावों को भी स्पष्ट करे।

अध्ययन में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण वर्षा की तीव्रता में वृद्धि हो रही है और इसके कारण आने वाले सालों में नाले के कटाव की दर में और अधिक वृद्धि की संभवाना से इंकार नहीं किया जा सकता।

रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भूमि क्षरण के संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे को पूरा करने के लिए भारत को 77 जिलों (जिनमें से 70 प्रतिशत पूर्वी और दक्षिणी भारत में ही स्थित हैं) के नालों के कटाव पर काम करने की जरूरत होगी।

विश्व भर में तेजी से भूमि का क्षरण हो रहा है। दुनिया के कुल क्षेत्रफल का लगभग 20 से 40 प्रतिशत भूमि क्षरण से प्रभावित है। इसके चलते खेतीहर भूमि, शुष्क भूमि, आर्द्रभूमि, वन और घास के मैदानों से जुड़ी लगभग आधी आबादी प्रभावित होगी।

रिपोर्ट के के अनुसार, “भारत के भूमि क्षरण मिशन में नाले का कटाव एक गंभीर बाधा है।” यह वैश्विक भूमि क्षरण का एक प्रमुख कारण है। भारत में नाले का कटाव वास्तव में तीन अलग-अलग जमीनों के आकार प्रकार को शामिल किया गया है। इसमें नाले की प्रणाली, खराब भूमि और सीधी पहाड़ी ढलान।

रिपोर्ट के अनुसार लंबे समय तक नाले के कटाव के कारण समतल जमीन का कटाव आड़ा-तिरछा और गहराई लिए हुए कटाव बन जाते हैं और इसे खराब भूमि की श्रेणी में रखा जाता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय बंजर भूमि कृषि की उत्पादकता, पानी की कमी और सूखे को प्रभावित करती है, जिससे गांवों में पलायन होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नालों के कटाव से जो जमीन का खबरा होती है, इसका प्रभाव अधिक दूरगामी होता है।

रिपोर्ट में बताया गया कि पश्चिमी भारत में बंजर जमीनों की अधिकता है जबकि पूर्वी भारत में नाले अधिक हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि नालों से जो कटाव होता है उसका विस्तृत मानचित्र बनाकर उन नालों की एक सूची बनाने की जरूरत है।

इसके बाद इन आंकड़ों का उपयोग नाली प्रबंधन की वर्तमान स्थिति का मूल्यांन करने में किया जाएगा। इस मूल्यांकन से उन राज्यों की पहचान की जाएगी जिन्हें नालों के कटाव से बचने की सबसे अधिक जरूरत है। 

रिपोर्ट के अध्ययनकर्ता अनिंद्य माझी ने कहा कि इस लोकप्रिय धारणा के विपरीत कि भारत की खराब भूमि के लिए नाली कटाव सबसे अधिक जिम्मेदार है, लेकिन हमने पाया है कि पूर्वी भारत में नाली कटाव भारत में भूमि क्षरण के लिए मध्य और पश्चिमी भारत की खराब भूमि की तुलना में अधिक बाधा उत्पन्न करता है।

 रिपोर्ट में कहा गया है कि नाले के कटाव के कारण होने वाले भूमि क्षरण को उलटना बहुत चुनौतीपूर्ण है। नाले के कटाव से संबंधित 77 जिलों की पहचान की गई है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक नाले का कटाव झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों में होता है, उसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान आता है।

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