कोविड-19 महामारी से आई भारत की जीवन प्रत्याशा में गिरावट, आंकड़ों ने दी गवाही

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और डाउन टू अर्थ के सालाना संस्करण स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट इन फिगर्स 2025 में देश में जीवन प्रत्याशा का विश्लेषण किया गया
फाइल फोटो: सीएसई
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हमारे देश ने जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (जन्म के समय औसतन कितने वर्ष जीने की संभावना) में सुधार करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। यह 1970 के दशक की शुरुआत में मात्र 49.7 वर्ष थी जो कि 2016-20 तक बढ़कर 70 वर्ष हो गई है।

लगभग पांच दशकों तक बनी रही यह स्थिर वृद्धि की प्रवृत्ति कोविड-19 महामारी के दौरान अचानक बाधित हो गई। 2017-21 के दौरान जन्म के समय जीवन प्रत्याशा घटकर 69.8 वर्ष हो गई। हालांकि 0.2 वर्ष की यह गिरावट मामूली प्रतीत होती है लेकिन यह एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय संकेतक है, खासकर हमारे देश के लिए जिसने पिछले कुछ वर्षों में लगातार विकास किया है।

यह गिरावट ग्रामीण और शहरी आबादी दोनों जगह दिखाई दे रही है। शहरी जीवन प्रत्याशा 2016-20 में 73.2 वर्ष थी जो 2017-21 में 72.9 वर्ष हो गई, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा इसी अवधि में 68.6 वर्ष से गिरकर 68.5 वर्ष हो गया। यह उलटफेर 2020 और 2021 में मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ मेल खाता है

कार्यप्रणाली

जन्म के समय जीवन प्रत्याशा हमें यह बताती है कि किसी व्यक्ति का औसत जीवनकाल कितने वर्षों का होगा। यहां यह माना जाता है कि वर्तमान मृत्यु दर उनके पूरे जीवनकाल में स्थिर रहेगी। जीवन प्रत्याशा अनुमानों के लिए प्राथमिक स्रोत नमूना पंजीकरण प्रणाली अथवा सैंपल रेजिस्ट्रेशन सर्विस (एसआरएस) है। यह एक व्यापक जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण है जो प्रजनन और मृत्यु दर संकेतकों का अनुमान प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। जीवन तालिकाओं का निर्माण करने के लिए भारत एमओआरटीपीएके 4 सॉफ्टवेयर का उपयोग करता है। यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा विकसित एक मृत्यु दर मापने वाला पैकेज है जो एसआरएस डेटा से प्राप्त आयु विशिष्ट मृत्यु दर (एज स्पेसिफिक डेथ रेट अथवा एएसडीआर) का उपयोग करके संक्षिप्त जीवन तालिकाएं बनाता है। नमूनों में परिवर्तनशीलता को कम करने और विश्वसनीयता में सुधार करने के लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए एएसडीआर के पंचवर्षीय औसत की अलग-अलग गणना की जाती है। इसे लिंग के आधार पर भी अलग किया जाता है

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