गूगल के विशाखापत्तनम एआइ प्रोजेक्ट की घोषणा और पर्यावरणीय प्रभाव

गूगल के विशाखापत्तनम एआइ प्रोजेक्ट की घोषणा और पर्यावरणीय प्रभाव

गूगल का भारत में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है, जिसमें अडाणी ग्रुप और भारती एयरटेल जैसे पार्टनर्स शामिल हैं
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गूगल ने अगले पांच सालों में भारत में 15 अरब डॉलर का निवेश कर विशाखापत्तनम में एक विशाल डेटा सेंटर और एआइ हब बनाने की घोषणा की है जो अमेरिका के बाहर सबसे बड़ा एआइ हब होगा।

गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने 14 अक्टूबर, 2025 को विशाखापत्तनम में घोषित किया कि कंपनी शहर में 1 गीगावाट क्षमता वाला डेटा सेंटर कैंपस बनाएगी  जिसमें एआइ इंफ्रास्ट्रक्चर, बड़े पैमाने पर एनर्जी सोर्स और एक्सपैंड फाइबर-ऑप्टिक नेटवर्क शामिल होगा। यह कैंपस एआइ सर्विसेस की तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए तैयार किया जा रहा है।

यह प्रोजेक्ट लगभग 15 अरब डॉलर (करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये) के निवेश पर आधारित है, जो 2026 से 2030 तक चलेगा। यह गूगल का भारत में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है, जिसमें अडाणी ग्रुप और भारती एयरटेल जैसे पार्टनर्स शामिल हैं। प्रोजेक्ट का मुख्य फोकस एआइ डेटा सेंटर विकसित करना है, जो क्लाउड कंप्यूटिंग और एआइ सेवाओं को बढ़ावा देगा।

हालांकि, ऐसे बड़े डेटा सेंटरों के पर्यावरणीय प्रभाव चिंता का विषय हैं, खासकर विशाखापत्तनम जैसे तटीय शहर में, जहाँ प्राकृतिक संसाधन पहले से ही शहरीकरण के दबाव में हैं।

विशाखापत्तनम एक तटीय शहर है, जो पूर्वी घाट (ईस्टर्न घाट्स) से घिरा हुआ है। यहां के प्रमुख प्राकृतिक संसाधन समुद्री तट, जंगल, पहाड़ियां और सीमित जल स्रोत हैं। शहर की कुल भूमि में जंगल और पहाड़ियों का हिस्सा लगभग 250 किमी तटीय लंबाई पर फैला है, लेकिन तेज शहरीकरण से भूमि कवर में बदलाव और प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो रही है। जल संसाधनों पर पहले से दबाव है, जहाँ शहरीकरण के कारण हरा बुनियादी ढाँचा क्षतिग्रस्त हो रहा है।

संभावित दुष्प्रभाव
एआइ डेटा सेंटर को उच्च ऊर्जा, जल और भूमि की जरूरत होती, जो स्थानीय संसाधनों पर बोझ डाल सकते हैं। हालांकि गूगल ने इसे 'ग्रीन डेटा सेंटर' के रूप में विकसित करने की मंशा जाहिर की है, जिसमें 2 अरब डॉलर नवीकरणीय ऊर्जा पर निवेश सहित कुल 6 अरब डॉलर का निवेश प्रस्तावित है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, निर्माण और संचालन चरण में निम्नलिखित प्रभाव पड़ सकते हैं।

जल संसाधनों पर प्रभाव
डेटा सेंटर कूलिंग के लिए भारी मात्रा में पानी का उपयोग होता है। अधिकांश सिस्टम वाष्पीकरण शीतलन पर निर्भर होते हैं, जहां पानी वाष्प के रूप में उड़ जाता है, जिससे स्थानीय जल स्रोतों पर दबाव पड़ता है। विशाखापत्तनम में पहले से जल संकट है, और शहरीकरण से जल संसाधनों की कमी बढ़ रही है।

दूसरे वैश्विक स्तर पर, डेटा सेंटर इंडस्ट्री के सबसे बड़े खिलाड़ी अमेजन वेब सर्विसेज, माइक्रोसॉफ्ट एज्योर और गूगल क्लाउड अपने डेटा सेंटरों को ठंडा रखने के लिए सालाना अरबों गैलन पानी खपत करते हैं, क्योंकि इन सेंटरों में ऊर्जा का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है जिससे जबरदस्त गर्मी उत्पन्न होती है।

उदाहरण के लिए, गूगल ने 2025 में 4.5 अरब गैलन पानी की पूर्ति का दावा किया, लेकिन भारत जैसे जल-तनाव वाले क्षेत्र में 1 गीगावाट डेटा सेंटर प्रतिदिन लाखों लीटर पानी की जरूरत पैदा कर सकता है। इससे स्थानीय भूजल स्तर गिर सकता है और कृषि तथा पेयजल पर असर पड़ सकता है। निर्माण चरण में जल प्रदूषण भी संभव है।

गूगल ने इसी प्रकार के बड़े-बड़े डेटा सेंटर स्पेन, नीदरलैंड्स, चिली और उरुग्वे जैसे देशों में भी बनाए, जहाँ इन्हें स्थानीय जल संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।

गूगल ने 2024 में उरुग्वे के कैनेलोनेस क्षेत्र में लगभग 850 मिलियन डॉलर के निवेश से एक नया डेटा सेंटर बनाने की घोषणा की, जो लैटिन अमेरिका में कंपनी का दूसरा प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है। यह प्रोजेक्ट एआइ और क्लाउड सेवाओं की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए था, लेकिन पर्यावरणीय चिंताओं के कारण भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

विरोध के मुख्य कारण
पानी की भारी खपत : जैसा कि यूनिवर्सिडाड दे ला रिपब्लिका के डेनियल पेन्या का कहना था कि शुरुआती योजना में डेटा सेंटर को प्रतिदिन 7.6 मिलियन लीटर पानी की जरूरत थी, जो 55,000 लोगों के दैनिक उपयोग के बराबर था। उरुग्वे 1950 के बाद के सबसे बुरे सूखे से जूझ रहा था, जिससे मोंटेवीडियो में पानी की कमी हो रही थी। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसे 'प्राकृतिक संसाधनों का शोषण' बताया।

कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा दबाव: प्रोजेक्ट से सालाना 25,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जित होने का अनुमान था, जो उरुग्वे की कुल ऊर्जा-सम्बंधी उत्सर्जन में 2.7% की वृद्धि कर सकता था। ऊर्जा माँग 2,22,898 घरों के बराबर होने से ग्रिड पर दबाव पड़ता और सूखे के दौरान जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ जाती।

विषाक्त कचरा और टैक्स छूट: सालाना 86 टन खतरनाक कचरा (इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट, तेल आदि) उत्पन्न होता, जिसके निपटान पर सवाल उठे। साथ ही, साइंस पार्क में टैक्स-फ्री स्टेटस को "स्थानीय लाभ के बिना शोषण" कहा गया। फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ और मूवमेंट फॉर ए सस्टेनेबल ऊरुग्वे आदि संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए।

इसके बावजूद भी पर्यावरण संरक्षण समूहों तथा विरोध प्रदर्शन करने वालों को सूचना दिए बिना ही प्रोजेक्ट का पर्यावरणीय मूल्याँकन तेजी से एक महीने में ही पर्यावरणीय प्राधिकरणों से चुपचाप मंजूर हो गया। इससे अपील की 30 दिन की अवधि समाप्त हो गई। इस तरह विरोध के बावजूद प्रोजेक्ट पर सितंबर 2024 में निर्माण कार्य शुरू हो गया।

हालांकि विरोध के दबाव में गूगल ने पानी-आधारित कूलिंग को एयर कंडीशनिंग से बदल दिया, जिसे सरकार ने कम महत्वपूर्ण प्रभाव वाला माना। गूगल ने दावा किया कि डेटा सेंटर 90% से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा पर चलेगा और सामान्य डेटा सेंटरों से 1.8 गुना अधिक ऊर्जा-कुशल होगा। प्रोजेक्ट स्थानीय डिजिटल स्किलिंग और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा।

कुलमिलाकर कैनेलोनेस में प्रोजेक्ट पर अक्टूबर 2025 तक काम  जारी है। हालाँकि, आलोचक अभी भी पारदर्शिता और दीर्घकालिक प्रभावों पर निगरानी की माँग कर रहे हैं।

उरुग्वे का यह प्रोजेक्ट लैटिन अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में डेटा सेंटरों के बढ़ते विरोध का उदाहरण है, जहाँ पर्यावरणीय लागत आर्थिक लाभ से अधिक चिंता का विषय बन रही है।

ऊर्जा संसाधनों पर प्रभाव
एआइ ट्रेनिंग और संचालन से ऊर्जा की मांग बढ़ती है, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भर ग्रिड को प्रभावित कर सकती है। हालांकि गूगल 8 गीगावाट से अधिक स्वच्छ ऊर्जा खरीद रहा है, लेकिन प्रारंभिक चरण में कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता बढ़ सकती है।

2023 में 56% डेटा सेंटर जीवाश्म ईंधन पर चलते थे, और एआइ वृद्धि से यह बढ़ सकता है। इस प्रोजेक्ट से भारत की कुल ऊर्जा माँग में 1-2% की वृद्धि हो सकती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन 12% तक कम होने के दावे के बावजूद, स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण बढ़ सकता है।

भूमि और जैव विविधता पर प्रभाव
डेटा सेंटर के लिए बड़ी भूमि अधिग्रहण से जंगल, पहाड़ियां और तटीय क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं। निर्माण से शोर प्रदूषण, मिट्टी क्षरण और जल प्रवाह में बाधा आ सकती है। विशाखापत्तनम के पूर्वी घाट क्षेत्र में जैव विविधता के अतिरिक्त समुद्री गुफाओं तथा समुद्र तट को खतरा हो सकता है।

प्रोजेक्ट 1 गीगावाट क्षमता का है, जो सैकड़ों बीघा भूमि ले सकता है। शहरीकरण से पहले ही भूमि उपयोग में बदलाव हो रहा है और यह प्रोजेक्ट इसमें 10-20% अतिरिक्त दबाव डाल सकता है, जिससे हरित क्षेत्र कम हो सकता है।

गूगल के उपाय और समग्र मूल्यांकन
गूगल दावा करता है कि उसके डेटा सेंटर दुनिया के सबसे कुशल हैं, जो बिजली, पानी और सामग्री का अनुकूलन करते हैं। वे 100 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य रखते हैं और जल आपूर्ति पर ध्यान देते हैं।

हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि एआई की तेज वृद्धि से पर्यावरणीय लागत बढ़ सकती है, खासकर विकासशील क्षेत्रों में। स्थानीय स्तर पर, प्रभाव मध्यम से उच्च हो सकता है, यदि मॉनिटरिंग न हो, जैसे जल उपयोग 20-30% बढ़ना या भूमि पर 5-10 प्रतिशत ददबाव।

सरकार और स्थानीय समुदाय को पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन सुनिश्चित करना चाहिए। कुल मिलाकर, रोजगार, विकास तथा आर्थिक लाभ के साथ-साथ पर्यावरणीय जोखिम संतुलित करने की जरूरत है।

लेख में व्यक्त लेखक के निजी विचार हैं

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