अंतर्राष्ट्रीय संगठन ग्लोबल विटनेस द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट से पता चला है कि 2018 में अपनी जमीन और पर्यावरण को बचाने की जद्दोजेहद में 23 लोग अपनी जान गवां चुके हैं।
जहां एक ओर दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने के भरसक प्रयास किये जा रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर अपनी जमीन और पर्यावरण का बचाव करने वालों को चुप कराया जा रहा है। खनन, लकड़ी की तस्करी और एग्री-बिजनेस जैसे उद्योगों और वहां रहने वाले लोगों के बीच हिंसक झड़पें और उन पर होने वाले हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। यही वजह है कि महज वर्ष 2018 में इस तरह के खूनी संघर्षों में 164 लोग अपनी जान गवां चुके हैं, यानी हर हफ्ते औसतन तीन से अधिक लोगों की हत्या कर दी गयी थी। हालांकि वैश्विक स्तर पर हत्याओं की सही संख्या बहुत अधिक थी, क्योंकि अक्सर इन मामलों को रिकॉर्ड नहीं किया जाता है और शायद ही उनकी कभी जांच की जाती है।
जहां दुनिया भर में पर्यावरण प्रहरियों की मौतों की सबसे अधिक संख्या फिलीपींस (30), कोलंबिया (24), भारत (23) और ब्राजील (20) में दर्ज की गई। वहीं, ग्वाटेमाला में हुई हत्याओं में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, जहां मरने वालों के संख्या 2017 में तीन से बढ़कर 2018 में 16 तक पहुंच गयी। गौरतलब है कि वर्ष 2018 में आधे से अधिक हत्याएं लैटिन अमेरिका में हुईं, जो कि पहले से ही पर्यावरण और जमीन को बचाने के लिए हो रहे संघर्षों के लिए जाना जाता है |
खनन के कारण गयी सबसे अधिक जानें
आंकड़ों की मानें तो माइनिंग के कारण उपजे विवादों से सबसे अधिक हत्याएं की गई थी, जिसके कारण दुनिया भर में 43 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। वहीं, 2018 में वैश्विक स्तर पर जल स्रोतों की रक्षा को लेकर हुए संघर्षों से जुड़ी हत्याओं में भी बढ़ोतरी देखी गई, जो कि 2017 में चार से बढ़कर 17 तक पहुंच गई है। जिसमें ग्वाटेमाला में जलविद्युत को लेकर हुआ खूनी संघर्ष शामिल है |
ग्लोबल विटनेस के वरिष्ठ प्रचारक एलिस हैरिसन के अनुसार “दुनिया भर में जलवायु और पर्यावरण को बचाने के लिए बढ़ते दबाव के बावजूद, आज अपने जल, जमीन, जंगल और पर्यावरण को बचाने की जदोजहद में लगे लोगों पर खतरनाक हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।"
पर्यावरण कार्यकर्ताओं पर डाला जा रहा है चुप रहने के लिए दबाव
ग्लोबल विटनेस के वरिष्ठ प्रचारक एलिस हैरिसन के अनुसार "यह एक क्रूर विडंबना है कि जहां न्यायिक प्रणाली इन प्रहरियों के हत्यारों को आजादी से घूमने की अनुमति दे देती है। वहीं, साथ ही इन प्रहरियों की छवि को आतंकवादी, जासूस या अपराधियों के रूप में प्रस्तुत करने में भी गुरेज नहीं कर रही है। यह अन्य कार्यकर्ताओं को भी एक स्पष्ट संदेश देना चाहती है: कि अपने अधिकारों को बचाने के लिए किये उनके संघर्ष की उन्हें, उनके परिवार और उनके समुदाय को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी” |
“सारी दुनिया में अदालतों का उपयोग कार्यकर्ताओं को अपराधी बनाने, डराने और उत्पीड़न के एक हथियार के रूप में किया जा रहा है जो सरकार, नेताओं और बड़े पूंजीपतियों की शक्ति और मुनाफे के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।“