सीएसई ने जारी की भारत के उर्वरक उद्योग की पर्यावरणीय रेटिंग

सीएसई और ग्रीन रेटिंग प्रोजेक्ट की ग्रेडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि उर्वरक उद्योग ऊर्जा इस्तेमाल और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के मामले में अच्छा काम कर रहे हैं
Credit: CSE
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केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावेडकर ने कहा कि भारत का उर्वरक उद्योग देश के औद्योगिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और उसके अपने प्रोजेक्ट ग्रीन रेटिंग प्रोजेक्ट (जीआरपी) द्वारा जारी इस स्टडी रिपोर्ट के माध्यम से हम उर्वरक उद्योग के बारे में विस्तृत जानकारी ले सकते हैं, बल्कि इस उद्योग के पर्यावरण संबंधी परफॉरमेंस की समीक्षा भी कर सकते हैं।

जावेडकर ने सोमवार को देश के उर्वरक उद्योगों की पर्यावरणीय परफॉरमेंस पर आधारित रेटिंग रिपोर्ट जारी की। “ग्रेन-बाई-ग्रेन” नामक इस रिपोर्ट में भारत के उर्वरक उद्योग के पर्यावरण संबंधी परफॉरमेंस का व्यापक आकलन किया गया है। जीआरपी का यह सातवां रेटिंग प्रोजेक्ट है। इससे पहले पल्प एवं पेपर, ऑटोमोबाइल, क्लोरिक क्षार, सीमेंट, आयरन एवं स्टील एवं थर्मल पावर सेक्टर को ग्रीन रेटिंग जारी की गई है।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने इस मौके पर कहा कि सबसे पहले 1997 में ग्रीन रेटिंग जारी की गई थी, जिसका मकसद भारतीय कंपनियों द्वारा पर्यावरण के प्रति निभाई जा रही जिम्मेवारियों का स्वतंत्र एजेंसी के तौर पर आकलन करना था। दुनिया के कुछ देशों में भी ऐसा होता है। रेटिंग की प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होती है। और जो भी परिणाम आते हैं, उसे सार्वजनिक किया जाता है। इस रेटिंग का इस्तेमाल नीति निर्धारक अपनी नीतियों को मजबूत करने और कंपनियां अपने कामकाज में सुधार करने के लिए करती हैं।

इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 18 माह का समय लगा। सीएसई ने अपने अध्ययन में देशी उद्योगों को शामिल किया है। इनकी संख्या लगभग 28 है, जो अभी चालू हालत में हैं। इन्हें छह श्रेणियों में बांटा गया और इनके लिए 50 पैरामीटर तय किए गए।

कंपनियों से खुद ही इस अध्ययन में शामिल होने की अपील की गई, लेकिन जो कंपनी इसमें शामिल नहीं हुई, उन्हें स्थानीय लोगों, मीडिया, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सीएसई की टीम द्वारा एकत्र गई सूचना के आधार पर रेटिंग दी गई।

उत्पादन की प्रक्रिया में ऊर्जा की बहुत जरूरत पड़ती है और कुल उत्पादन लागत में 70-80 फीसदी खर्च ऊर्जा की खपत पर होता है। इसलिए इस सेक्टर में ऊर्जा खपत और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को सबसे अधिक वेटेज (30 फीसदी) दिया गया। वायु और जल प्रदूषण और ठोस एवं खतरनाक कचरे के उत्पादन को दूसरे नंबर पर रखा गया। इसे 20 फीसदी वेटेज दी गई। इसके बाद पानी के इस्तेमाल में दक्षता को 15 फीसदी वेटेज दी गई।

सीएसई के उप महानिदेशक एवं ग्रीन रेटिंग प्रोजेक्ट के हेड चंद्र भूषण ने कहा कि जीआरपी में अब तक जितने उद्योगों के लिए रेटिंग की गई, उनमें से उर्वरक उद्योग की रेटिंग बेहतर रही। पूरे उर्वरक सेक्टर को 42 फीसदी अंक दिए गए, जो सम्मानजनक हैं, इसलिए उर्वरक सेक्टर को तीन पत्ती पुरस्कार दिया गया है। हालांकि दुखद बात यह है कि सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियों और असफल रहने वाली कंपनियों के प्रदर्शन में काफी अंतर है।

ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड की जगदीशपुर स्थित इंडो गोल्फ फर्टिलाइजर्स यूनिट को टॉप रेटेड प्लांट घोषित किया गया। इस प्लांट ने 61 अंक हासिल किए। कंपनी को ऊर्जा इस्तेमाल और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के मामले में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने पर फोर-लीफ अवार्ड प्रदान किया गया। कंपनी में पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा से संबंधित सभी नियमों का पालन किया जा रहा है। साथ ही, सूचना के अदान-प्रदान में पारदर्शिता और सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने में भी कंपनी का प्रदर्शन बेहतर रहा।

इसके बाद कृषक भारतीय कोऑपरेटिव लिमिटेड (कृभको) की गुजरात स्थित हजरिया प्लांट, मंगलुरु केमिकल एवं फर्टिलाइजर लिमिटेड की कर्नाटक पनामबुर यूनिट और यारा फर्टिलाइजर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की बबराला स्थित यूनिट को थ्री लीफ पुरस्कार दिया गया। चंद्र भूषण ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि ऊर्जा इस्तेमाल और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के मामले में भारतीय उर्वरक क्षेत्र बेहतर, लेकिन पानी के इस्तेमाल, जल प्रदूषण और प्लांट की सुरक्षा की दृष्टि से ठीक उर्वरक उद्योगों में कई खामियां हैं, जिनमें सुधार की सख्त जरूरत है।

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