सोनिया (गांधी) जी, श्री (प्रणब) मुखर्जी, श्री (हामिद) अंसारी, डॉक्टर (मनमोहन सिंह) साब और हमारे सभी मित्र:
यह पुरस्कार पाने में हम वास्तव में खुद को सम्मानित महसूस कर रहे हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के काम को मान्यता देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरे सहयोगियों और मैं इस पुरस्कार को कृतज्ञता के साथ स्वीकार करते हैं, लेकिन यह भी जानते हैं कि अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
हमारे सभी काम, हमारे सभी प्रयासों को जोड़ना होगा। तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन केदौर में जोखिम बढ़ रहे हैं, उनमें बदलाव लाना होगा। आपने जिस तरह से हमारे काम को पहचान दी है, उससे हमारी हिम्मत बढ़ेगी, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कार्रवाई की अनिवार्यता को रेखांकित करता है, बल्कि त्वरित कार्रवाई।
यह सम्मान मेरे सहयोगियों और मेरे लिए बहुत मायने रखता है, क्योंकि हमारा मानना है कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1970 के दशक में पर्यावरण की चिंता को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। वह एकमात्र विश्व नेता थीं, जो 1972 में पर्यावरण और विकास पर पहले वैश्विक सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्टॉकहोम गई थी। उन्होंने जल अधिनियम और वायु अधिनियम बनाया और हमें बचाने के लिए सबसे अहम पर्यावरणीय कानून बनाएं।
उन्होंने हमारे अस्तित्व पर आने वाले संकट को पहले ही पहचान लिया थ और उन्हें दूर करने की आवश्यकता को महसूस किया। जबकि इससे पहले पर्यावरण पर चर्चा नहीं होती थी। यह वास्तविक था। यह जरूरी था। उनकी दूरदर्शिता, उनकी बुद्धिमत्ता की आज भी जरूरत है।
आज हम सभी इस संकट को समझते हैं। जब हम सांस लेते हैं तो हर चीज विषाक्त होती है, हम जानते हैं कि हमारे सामने एक संकट है, जिसे ठीक करने की जरूरत है। हम यह भी जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन अब खाली खतरा नहीं है। यह असली है। यह घटित हो रहा है।
मौसम की अजीब घटनाएं जो दुनिया को हिला रही हैं। भारत में मॉनसून बदल रहा है। मैं बार-बार कहती हूं कि भारत का असली वित्त मंत्री श्री मुखर्जी, डॉक्टर साब या निर्मला नहीं थे या नहीं हैं, यह मॉनसून हैं।
आज हम बहुत अधिक बारिश की घटनाएं देख रहे हैं, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। हम बाढ़ से सूखे की जा रहे हैं। चक्रवातों की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ी है। इसका खामियाजा वे गरीब भुगत रहे हैं, जो वातावरण में उत्सर्जन के लिए दोषी नहीं हैं।
और याद रखिएगा, यह सिर्फ शुरुआत है। साल 1880 में जितना तापमान होता है, उससे अब 1 डिग्री सेल्सियस अधिक हो चुका है और जिस गति से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को पहुंचाया जा रहा है, वह निश्चित रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस की रेलिंग को तोड़ देगा, जिसे वैज्ञानिकों ने कम से कम जोखिम भरा माना है। बेशक जलवायु परिवर्तन आज गरीबों को मार रहा है, लेकिन यह अमीरों को कल नहीं छोड़ेगा।
यह वह समय है, जहां हमें अपनी नीतियों को रोककरऔर पुनर्विचार करना चाहिए। जब श्रीमती जी ने कहा था, "गरीबी सबसे बड़ा प्रदूषक है" (1972 में उनके बयान की कई व्याख्याएं हैं), मेरा मानना है कि उन्होंने समावेशी विकास की आवश्यकता के बारे में बात की थी। आज हम जानते हैं, हमारे पास तब तक सतत विकास या शांति नहीं हो सकती, जब वह पहुंच में न हो और समावेशी न हो।
वायु प्रदूषण के बारे में हम जानते हैं, यह सब पर समान असर करता है। अमीर और गरीब एक ही हवा में सांस लेते हैं। हालांकि जल प्रदूषण में ऐसा नहीं है, क्योंकि अमीर बोतलबंद पानी पी सकते हैं, लेकिन शुद्ध हवा कैसे ले सकते हैं?
यदि हम अपनी स्वच्छ हवा का अधिकार चाहते हैं, तो हमें बाहर की हवा को साफ करना होगा। इसका मतलब है कि हमें यह पहचानना होगा कि एयरशेड एक ही है। बेशक बायोमास पर खाना बनाने वाली महिला हो या गरीब होने के कारण पराली जलाने वाला किसान हो, गंदा ईंधन इस्तेमाल करने वाले उद्योग या डीएसयू एसयूवी पर चलने वाले अमीर हों, सब एक ही हवा में सांस लेते हैं।
इसलिए, समाधानों को समावेशी होना चाहिए। आज, दिल्ली में लगभग 20 प्रतिशत लोगों के पास ही कार है, जबकि इसके अलावा बाकी लोग या तो दोपहिया पर चलते हैं या बस में चलते हैं और अगर उसे भी इस्तेमाल करने की स्थिति में नहीं हैं तो पैदल या साइकिल से चलते हैं।
बावजदू इसके, सड़क के 90 फीसदी हिस्से पर कारों का कब्जा है। शहर के भूमि क्षेत्र के लगभग 26 प्रतिशत हिस्से पर सड़कें हैं। हम पहले से ही प्रदूषित और जाम वाले इलाकों में है, ऐसे में अगर 80 फीसदी लोग भी कार लेने की सोचें तो जगह कहां से आएगी?
लेकिन यह हमारा अवसर भी है; यदि हम एक सुदृढ़ सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की योजना बना सकते हैं और उसे लागू कर सकते हैं जो गरीबों के लिए सस्ती हो और अमीरों के लिए सुविधाजनक, सुरक्षित और आधुनिक हो, तो हम हालात में परिवर्तन ला सकते हैं और प्रदूषण को कम कर सकते हैं। यह न केवल समावेशी होगा, बल्कि टिकाऊ होगा।
यही स्थिति जल प्रदूषण के साथ भी है। भारत का अधिकांश भाग अमीरों की भूमिगत पाइपलाइन ग्रिड से जुड़ा नहीं है। मेरे सहयोगियों ने शहरों के डायग्राम बनाए हैं, जो बताते हैं कि हमारे ज्यादातर शहर सेप्टिक सिस्टम पर निर्भर हैं।
अगर हम गरीबों के लिए सस्ती सफाई व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, तो हमारी नदियों को भी साफ नहीं किया जा सकता है और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में विश्व में गंदे पानी से जो नुकसान होगा, वह हम सहन नहीं कर पाएंगे। इस वजह से पानी भी असुरक्षित हो जाएगा।
तेजी से बिगड़ते मौसम की वजह से हमें अपनी शांति और सुरक्षा के बारे में सोचना चाहिए। हम जानते हैं कि हर सूखा, बाढ़, चक्रवात की वजह से हमारे विकास को नुकसान पहुंचाता है, जिसे बनाने के लिए सरकारें काफी मेहनत करती हैं। इससे हमारे घरों, सड़कों, जीवनयापन को नुकसान पहुंचता है और उसे दोबारा से बनाने और सब कुछ नए सिरे से शुरू करने के लिए काफी पैसे की जरूरत पड़ती है।
यह नुकसान करने वाला है। इसका मतलब है कि लोग हालांकि लचीले हैं, लेकिन अब और सामना नहीं कर सकते। उनके पास अपने घरों, अपने गांवों को छोड़कर और खोज में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्हें अब अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी नए घर व आजीविका चाहिए।
इससे वे नए शहरों और नए देश में बस रहे लाखों प्रवासियों में शामिल हो जाएंगे। अभी हमें यह पता ही नहीं है कि देश में कितने शहर बन चुके हैं, क्योंकि आधिकारिक जनगणना 10 साल पुरानी है।
लेकिन मैं आपको बता सकती हूं कि आज ज्यादातर भारतीय शहर अवैध रूप से बढ़ रहे हैं। यहां लोग बड़ी तादात में पहुंच रहे हैं, जो किसी नगरीय प्रशासन के लिए परेशानी बढ़ा देगा।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रवासियों की संख्या बढ़ने से उनके नाम पर होने वाली राजनीति और खराब होती है, जो न केवल गरीब बल्कि अमीरों को भी असुरक्षा को बढ़ावा देती है।
हमारी दुनिया में एक साथ दो खतरे हैं। एक है कि एक देश से विश्व भर में कार्बन डाइऑक्साइड को फैलाना और दूसरा है कि मोबाइल फोन की गति से विश्व भर में समाचार प्रसारित करना। इसे खींचने या दबाव देने से यह और फैलेगा।
यह वह दुनिया नहीं है, जिसे हम अपने बच्चों को विरासत में देना चाहते हैं। ऐसे ही समय में सीएसई के संस्थापक अनिल अग्रवाल कहते थे कि हमारी उम्मीद ही हमारा कर्तव्य है।
हमें अपने लोकतंत्रों पर काम करना होगा। बदलाव लाने के लिए जनता की राय बनानी होगी। संभावनाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा। समाधान के लिए साहसिक और निडर बनना होगा। और सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपनी आजादी और स्वतंत्रता बनाए रखेंगे।
यह वह जगह है जहां हम सीएसई में हैं - मेरे सहयोगी और समर्थकों और सहकर्मियों से जुड़े लोग खुद को जमीन से जोड़े रखेंगे। अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
जब हमने अपना काम शुरू किया, हम अनजान थे - यह बहुत आसान लग रहा था। लेकिनअब चुनौती बड़े पैमाने पर है और चुनौतीपूर्ण भी है। हर सर्दी हम (मैं) स्मॉग को हटाना चाहते हैं, लेकिन हम नहीं कर पाते। हम आप सभी से मिले भारी प्यार और सम्मान के लिए आभारी हैं। हम दृढ़ता के साथ जुटे हैं और हमें यह करना ही होगा।
तो, फिर से इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट के सम्मानित ट्रस्टी और हम पर विश्वास व्यक्त करने वाले निर्णायक मंडल का शुक्रिया। सीएसई में अपने सभी सहयोगियों की ओर से, मैं 2018 के इंदिरा गांधी पुरस्कार को बहुत विनम्रता और गर्व के साथ स्वीकार करती हूं।