इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए 40 लाख चार्जिंग स्टेशन की जरूरत

यह बात गेमचेंजर लॉ एडवाइजर्स और वेंचर कैपिटल फर्म स्पेशल इन्वेस्ट की रिपोर्ट कहा गया है
Electric Vehicle
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प्रदूषण को कम करने के लिए पिछले एक देशक से विश्व भर में इलेक्ट्रिक वीकल (ईवी) को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। ध्यान रहे कि ईवी को चलाने के लिए चर्जिंग स्टेशन एक महत्वपूर्ण कारक है।

यदि यह स्टेशन ही नहीं होंगे तो ईवी होने के बावजूद वह काम की नहीं रहेगी। हालांकि इस दिशा में भारत में भी सरकार बड़े पैमाने पर इस क्षेत्र में निवेश की योजना बना रही है।

ध्यान रहे इस समय भारत का ईवी चार्जिंग बाजार एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ है, जहां बैटरी-स्वैपिंग मॉडल संचालित करने वाले स्टार्ट अप पर बड़े पैमाने पर निवेश किया गया है। चार्जिंग नेटवर्क और बैटरी-स्वैपिंग मॉडल संचालित करने वाले स्टार्ट-अप में पहले से ही लगभग 30,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया जा चुका है।

इसके बावजूद भारत में वर्तमान में प्रति 135 ईवी पर केवल एक सार्वजनिक चार्जर स्थित है। हालांकि वैश्विक स्तर यदि इसकी तुलना की जाए तो यह बहुत ही कम है। क्योंकि वैश्विक स्तर पर प्रति 6 से 20 ईवी पर एक चार्जिंग स्टेशन स्थित है।

ऐसे में भारत को यदि ईवी क्षेत्र में क्रांति करनी है तो उसे आगामी 2030 तक लगभग 40 लाख चार्जिंग स्टेशनों की जरूरत पड़ेगी। यह बात गेमचेंजर लॉ एडवाइजर्स और वेंचर कैपिटल फर्म स्पेशल इन्वेस्ट की एक नई रिपोर्ट “चार्जिंग एहेड सैकंड” में कहा गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार ने ईवी के लिए एक लक्ष्य भी निर्धारित किया है कि नए निजी वाहन पंजीकरण का 30 प्रतिशत हिस्सा ईवी का होगा ऐसे में वर्ष 2030 तक भारत में कुल आठ करोड़ ईवी होंगे। ईवी को अपनाने के लिए भारत को लगभग 40 लाख सार्वजनिक और अर्ध-सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता होगी।

रिपोर्ट कहती है कि पिछले कुछ सालों में भारत के ईवी चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर ने निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे हैं। इस बात का सबूत है कि पिछले पांच सालों (2020-24) में लगभग 50 भारतीय स्टार्ट-अप ने इस काम के लिए लगभग 511 मिलियन अमरीकी डॉलर की पूंजी जुटाई है।

यही नहीं रिपोर्ट में इस बात की ओर भी इशारा किया गया है कि इस क्षेत्र में नवीन व्यवसायिक मॉडल में वृद्धि हुई है। इसमें प्रति इवी उपयोग के बाद भुगतान करने के लिए सार्वजनिक चार्जिंग और बेड़े के लिए सदस्यता-आधारित सेवाएं शामिल की गईं हैं। यह देखा गया है कि बैटरी-स्वैपिंग नेटवर्क दो और तीन पहिओं वाले वाहनों के क्षेत्र में तेजी आई है।

केंद्रीय विद्युत मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार गत 21 मार्च 2023 से फरवरी 2024 के बीच पूरे देश में चालू सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशनों की संख्या 6,586 से लगभग दोगुनी (12,146) हो गई है। इस मामले में महाराष्ट्र राज्य सबसे आगे है। यहां राज्य भर में लगभग 3,079 स्टेशन स्थित हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर कर्नाटक का नंबर आता है। यहां लगभग 1,041 चार्जिंग स्टेशन स्थापित किए गए हैं।

रिपोर्ट कहती है कि हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाए जाने के कारण ने निवेशकों को इस क्षेत्र में अपनी ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे विभिन्न राज्य सरकारों ने विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशनों के लिए सब्सिडी और चार्जिंग स्टेशनों के लिए जगह उपलब्ध कराने की पेशकश करते हुए ईवी आधारित नीतियां अपने-अपने राज्यों में शुरू की हैं।

हालांकि दूसरी ओर रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चार्जिंग स्टेशनों के निर्माण के लिए पूंजी, इसके लिए भूमि अधिग्रहण की तमाम प्रकार की सरकारी बाधाएं, ग्रिड की विश्वसनीयता और सबसे ऊपर ग्रामीण क्षेत्रों में ईवी की कम पहुंच जैसी कई ऐसी समस्याएं भी विद्यमान हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की ईवी महत्वाकांक्षाएं सही दिशा की ओर अग्रसर हैं लेकिन एक अच्छी तरह से बना हुआ चार्जिंग स्टेशन के बिना ईवी के क्षेत्र में सफलता पाना दूर की कौड़ी होगी। इस क्षेत्र में सफलता की कुंजी के रूप में जहां सरकारी समर्थन एक जरूरी चीज है, वहीं दूसरी ओर निजी निवेश भविष्य के लिए तैयार चार्जिंग नेटवर्क बनाना भी जरूरी काम है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत कैलिफोर्निया, यूके और सिंगापुर जैसे वैश्विक ईवी के सबसे बड़े बाजारों से काफी कुछ सीख सकता है। रिपोर्ट कहती है कि इसके लिए इस क्षेत्रों ने नीतिगत प्रोत्साहन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) और नियामक स्पष्टता के सहयेाग से ईवी अपनाने में इस क्षेत्र में सफलता पाई जा सकती है। रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि भारत को समान प्रोत्साहन-संचालित मॉडल अपनाने चाहिए और अधिक मजबूत चार्जिंग नेटवर्क बनाने के लिए परमिट, भूमि अधिग्रहण और इसके संचालन मानकों को सुव्यवस्थित करने पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अलावा प्रभावी ढंग से विस्तार करने के लिए हमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी और नए वित्तपोषण मॉडल की भी आवश्यकता होगी।

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