भारत में कचरे के निपटान को लेकर कई तरह की समस्याएं सामने आती रही हैं, लेकिन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) अपनी रिपोर्ट के माध्यम से जैविक कचरे से निपटने का आसान तरीका सामने रखा है। जिसमें इस कचरे को बायोगैस में बदलकर स्वच्छ ऊर्जा हासिल करने का सुझाव दिया गया है। यह काम उत्तर प्रदेश में 12 से अधिक परियोजनाएं कर रही हैं।
क्या होती है कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी)?
बायोगैस का शुद्ध चरण जिसे कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) या बायो-सीएनजी कहा जाता है। इसमें 90 प्रतिशत से अधिक मीथेन होती है और इसे जैविक कचरे या बायोमास के द्वारा उत्पादित किया जाता है। अलग-अलग तरह के कचरे जैसे कि नगरपालिका ठोस अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, प्रेसमड और पशु अपशिष्ट आदि से सीबीजी का उत्पादन किया जाता है।
भारत में सीबीजी परियोजनाओं को लगाने से कई फायदे हो सकते हैं, जिसमें कचरे का बेहतर प्रबंधन, घरेलू स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना और प्राकृतिक गैस (सीएनजी) के आयात पर निर्भरता कम करना शामिल है। जो वर्तमान में भारत की गैस खपत का 47 प्रतिशत हिस्से को पूरा करती है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट जिसका शीर्षक "कंप्रेस्ड बायोगैस लैंडस्केप इन उत्तर प्रदेश" है, के मुताबिक भारतीय राज्यों में, उत्तर प्रदेश ने अपनी महत्वाकांक्षी जैव ऊर्जा नीति के साथ इस क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल किया है, जिसमें सीबीजी के लिए 2022 से 27 तक 750 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, साथ ही सब्सिडी, पट्टे के लिए भूमि और अन्य प्रोत्साहन भी दिए गए हैं।
स्वछ ऊर्जा के साथ कचरे का सही तरीके से निपटान
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पहल के तहत निवेशकों को प्रति टन सीबीजी पर 75 लाख रुपये की सब्सिडी दी जाती है। साथ ही कचरे से ऊर्जा (डब्ल्यूटीई) योजना के तहत नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) से वित्तीय सहायता भी दी जाती है। इसका मतलब है कि पांच टन प्रतिदिन सीबीजी उत्पादन संयंत्र के लिए 3.75 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाएगी, जिससे परियोजना लगाने वालों को शुरुआती जरूरी खर्चे का लगभग 15 से 20 प्रतिशत मिल जाएगा।
हालांकि जब उत्पाद के रूप में केवल गैस पर गौर किया जाता है, तो प्रेसमड या चीनी निर्माण के दौरान उत्पन्न होने वाला कचरा 43 प्रतिशत के शुद्ध मार्जिन के साथ एक अत्यधिक व्यावहारिक विकल्प के रूप में सामने आता है।
रिपोर्ट का उद्देश्य उत्तर प्रदेश में सीबीजी की संभावनाओं के बारे में व्यापक जानकारी को सामने रखना है, जिसमें अच्छे और बुरे दोनों पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। इससे नीति निर्माता इसमें आने वाली चुनौतियों की पहचान कर सकते हैं और इनसे निपटने के समाधान तैयार कर सकते हैं। जबकि सफलता से चल रही परियोजनाओं को देखते हुए इसे अन्य राज्यों में अपनाया जा सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में सालाना 1.55 करोड़ मीट्रिक टन सीबीजी उत्पादन की क्षमता है। यह क्षमता केंद्र सरकार की देश भर में किफायती यातायात के लिए सतत विकल्प (सतत) योजना द्वारा लक्षित सीबीजी की क्षमता के अनुरूप है, जिसका लक्ष्य 5,000 सीबीजी संयंत्र स्थापित करना है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश देश में कुल सीबीजी उत्पादन क्षमता का लगभग 24 प्रतिशत योगदान देता है।
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक सीबीजी क्षमता वाले जिले
रिपोर्ट में यूपी में सीबीजी की सबसे अधिक क्षमता वाले दस जिलों की पहचान की गई है, जिसमें लखीमपुर-खीरी, बिजनौर और बुलंदशहर ऐसे जिले हैं जहां जैविक कचरे का उत्पादन सबसे अधिक होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य देश भर में सतत योजना के तहत 5,000 संयंत्रों में से बायोमास अथवा कचरे के मात्र 20 फीसदी के उपयोग से ही 1,000 सीबीजी परियोजनाओं को लागू कर सकता है।
संभावनाओं के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं
सीएसई में रिन्यूएबल एनर्जी के शोधकर्ता डॉ राहुल कहते हैं कि “फरवरी 2024 तक, उत्तर प्रदेश में 12 सीबीजी प्लांट चालू अवस्था में थे जिनकी संख्या अब 15 हो गई है। इनमें से आठ प्रेसमड या चीनी उद्योग के कचरे पर अपने मुख्य कच्चे माल के रूप में निर्भर हैं, दस राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित हैं।“
उन्होंने आगे कहा “ये सभी सीबीजी प्लांट वर्तमान में अलग-अलग कारणों से अपनी पूरी क्षमता के मुताबिक काम नहीं कर रहे हैं, जिनमें अधूरे गैस उपयोग, जैविक खाद के निपटान में कठिनाइयां, जैविक कचरे की आपूर्ति में अक्षमताएं और परिचालन संबंधी चुनौतियां शामिल हैं”।
जरूर पढ़ें अगला भाग “कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) की पूरे देश में क्या है संभावनाएं और चुनौतियां”