कम दक्षता वाली ऑफ ग्रिड सौर परियोजनाओं को मंजूरी, जानिए क्या होगा असर?

एमएनआरई ने हाल ही में 200 वॉट पीक से कम क्षमता वाली सौर परियोजनाओं की न्यूनतम दक्षता सीमा को घटा दिया है
फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लगाया गया सोलर उपकरण। फोटो: वर्षा सिंह
फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लगाया गया सोलर उपकरण। फोटो: वर्षा सिंह
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देश के कई ऐसे गांव और कस्बे हैं जहां आज भी बिजली नहीं पहुंची है। ऐसे क्षेत्रों में ऑफ ग्रिड सौर परियोजनाएं एक बेहतर विकल्प की तरह दिखाई देती हैं। भारत सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने इन्हीं ऑफ-ग्रिड सौर परियोजनाओं के लिए सौर मॉड्यूल की न्यूनतम दक्षता (इफिसिएंसी) सीमा को कम कर दिया है। यानी अब कम दक्षता वाले सौर मॉड्यूल भी सरकारी अनुमोदन सूची (एप्रूव्ड मॉडल्स एंड मैनुफैक्चर्रस ऑफ फोटोवोलेटेइक मॉड्यूल्स - एएलएमएम) में शामिल हो सकेंगे।

इन सौर परियोजनाओं में प्रमुख रूप से सोलर लैंप, स्ट्रीट लाइट, फैन जैसे छोटे अनुप्रयोगों में इस्तेमाल होते हैं और जिनकी क्षमता 200 वॉट पीक से कम होती है। कयास है कि इससे छोटे विनिर्माताओं को राहत मिलेगी और ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों में सौर उपकरणों की आपूर्ति और लागत दोनों पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। हालांकि, इससे गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।

एमएनआरई ने 6 मई 2025 को यह अधिसूचना जारी की। इस अधिसूचना में कहा गया है "मंत्रालय ने 2 जनवरी 2019 को एएलएमएम नामक आदेश जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि किन मॉडलों और निर्माताओं को सौर मॉड्यूल के लिए अनिवार्य रूप से पंजीकृत किया जाएगा। इसके बाद समय-समय पर उसमें दिशा-निर्देश और संशोधन जारी किए जाएंगे।"

अधिसूचना के मुताबिक 10 मई 2023 और 22 मार्च 2024 को एएलएमएम में यह तय किया गया कि इसमें शामिल होने के लिए सौर मॉड्यूल की न्यूनतम दक्षता कितनी होनी चाहिए। इस अधिसूचना के मुताबिक एएलएमएम में शामिल होने के लिए सौर मॉड्यूल की न्यूनतम दक्षता तीन श्रेणियों के लिए अलग-अलग तय की गई थी। कैटेगरी-1 यानी यूटिलिटी या ग्रिड स्केल पावर प्लांट्स के लिए क्रिस्टलाइन सिलिकॉन तकनीक आधारित सौर मॉड्यूल की न्यूनतम दक्षता 20 फीसदी और कैडमियम टेल्यूराइड तकनीक के लिए 19 फीसदी रखी गई थी। कैटेगरी-2 यानी रूफटॉप सोलर और सोलर पंपिंग के लिए ये न्यूनतम दक्षता सीमा क्रमशः 19.5 फीसदी और 18.5 फीसदी निर्धारित की गई। वहीं, कैटेगरी-3 यानी सोलर लाइटिंग (जैसे सोलर लैंप, स्ट्रीट लाइट आदि) के लिए क्रिस्टलाइन तकनीक के लिए 19 फीसदी और कैडमियम टेल्यूराइड के लिए 18 फीसदी न्यूनतम दक्षता तय की गई थी।

वहीं, मंत्रालय ने ऑफ-ग्रिड सौर परियोजनाओं के लिए अब एएलएमएम में शामिल होने हेतु सौर मॉड्यूल की न्यूनतम दक्षता सीमा को घटाकर 18 फीसदी कर दिया है। यानी क्रिस्टलाइन सिलिकॉन और कैडमियम टेल्यूराइड दोनों तकनीकों के लिए न्यूनतम दक्षता अब 18 फीसदी निर्धारित की गई है।

सौर मॉड्यूल मुख्य रूप से क्रिस्टलाइन सिलिकॉन और कैडमियम टेल्यूराइड पर आधारित होती है। क्रिस्टलाइन सिलिकॉन तकनीक सबसे ज्यादा प्रचलित है और इसमें सिलिकॉन का उपयोग होता है, जो या तो मोनोक्रिस्टलाइन (शुद्ध और काले रंग की, अधिक एफिशिएंसी वाली) या पॉलीक्रिस्टलाइन (नीले रंग की, थोड़ी कम एफिशिएंसी वाली लेकिन सस्ती) हो सकती है। यह तकनीक लंबे समय तक चलती है और भारत के मौसम के अनुकूल मानी जाती है।

दूसरी ओर, कैडमियम टेल्यूराइड तकनीक एक थिन-फिल्म तकनीक है, जो पतली परतों में लगाई जाती है और इसमें कैडमियम जैसे रासायनिक तत्वों का उपयोग होता है। यह कम रोशनी में भी अच्छा प्रदर्शन करती है और लागत में सस्ती होती है, लेकिन इसमें एफिशिएंसी थोड़ी कम होती है और कैडमियम जैसे जहरीले तत्वों के कारण इसके निस्तारण में सावधानी जरूरी होती है।

छोटी सौर परियोजनाओं में दक्षता कम करने की इस नई सूचना पर दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में नवीकरणीय ऊर्जा विभाग में प्रोग्राम मैनेजर बिनीत दास ने कहा" थ्रेशोल्ड को 18 फीसदी तक घटाकर और डिस्ट्रिब्यूटेड रिन्यूएबल एनर्जी (डीआरई) श्रेणी बनाकर, एमएनआरई का मकसद छोटे मॉड्यूल निर्माताओं को शामिल करना और ग्रामीण सौर किट्स की लागत को कम करना है। इससे स्ट्रीट लाइट और सोलर पंखों के इंस्टॉलेशन में वृद्धि हो सकती है, जिससे दूरदराज क्षेत्रों में ऊर्जा की पहुंच बेहतर हो सकती है, क्योंकि उपकरण अधिक किफायती होंगे।"

वहीं, दक्षता कम करने का क्या नुकसान हो सकता है? इस मामले पर दास कहते हैं "थोड़ी कम दक्षता वाले पैनलों को समान आउटपुट प्राप्त करने के लिए अधिक जगह की आवश्यकता हो सकती है। आलोचकों का कहना है कि कई घरेलू मॉड्यूल कम कुशल होते हैं और तेजी से खराब होते हैं, इसलिए मानकों को कम करना गुणवत्ता और उत्पादन के साथ समझौता कर सकता है। पहुंच और विश्वसनीयता के बीच संतुलन बनाने के लिए यह जरूरी है कि छोटे सौर उत्पादों का सख्त परीक्षण किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे भरोसेमंद तरीके से प्रदर्शन करें।"

मंत्रालय का यह नया संसोधन सिर्फ उन ऑफ-ग्रिड उपकरणों के लिए है जो 200 वॉट पीक से कम क्षमता वाले सौर मॉड्यूल का उपयोग करते हैं, यह सोलर पंप और सोलर रूफटॉप पर लागू नहीं होगा।

प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो के मुतबिक, 2024 में, ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं के तहत भारत में 17.23 लाख सोलर होम लाइट्स, 84.59 लाख सोलर लैंप्स, 9.44 लाख सोलर स्ट्रीट लाइट्स के साथ सोलर पावर प्लांट्स से 216.86 गीगावॉट की स्थापित क्षमता है। यह 2016 की तुलना में बढ़ोतरी दर्शाता है, जब 13.96 लाख सोलर होम लाइट्स, 4.42 लाख सोलर स्ट्रीट लाइट्स और सोलर पावर प्लांट्स से 172.45 गीगावॉट की स्थापित सौर क्षमता थी।

वहीं, एमएनआरई की वेबसाइट के मुताबिक, अप्रैल 2025 में कुल सौर परियोजनाओं से 107.95 गीगावॉट क्षमता स्थापित की गई। इसमें ऑफ ग्रिड सौर क्षमता 4.98 गीगावॉट रही।

ऑफ-ग्रिड सोलर पीवी अनुप्रयोग कार्यक्रम मंत्रालय के सबसे पुराने कार्यक्रमों में से एक है, जिसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में सोलर पीवी आधारित अनुप्रयोग उपलब्ध कराना है जहां ग्रिड बिजली या तो उपलब्ध नहीं है या फिर अस्थिर है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सोलर होम लाइटिंग सिस्टम, सोलर स्ट्रीट लाइटिंग सिस्टम, सोलर पावर प्लांट, सोलर पंप, सोलर लालटेन और सोलर स्टडी लैंप जैसी अनुप्रयोगों को शामिल किया गया है।

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