दुनिया की जटिल होती जियोपालिटिकल स्थितियों और देशों के बीच बढ़ता तनाव पूरी पृथ्वी के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। इस कारण जलवायु परिवर्तन से जंग भी धीमी पड़ने की आशंका तेज हो रही है। दुनिया में जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देना आवश्यक है।
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2024 के अनुसार इन वैश्विक परिस्थितियों और बाजार के बदलते परिदृश्य के कारण ऊर्जा संरक्षण के कदम धीमे हो रहे हैं। यह दिखाता है कि सरकारों और उपभोक्ताओं के सामने महत्वपूर्ण विकल्प हैं क्योंकि अधिक पर्याप्त आपूर्ति का समय निकट है और बढ़ती बिजली की मांग ऊर्जा सुरक्षा को बदल रही है।
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2024 बता रहा है कि कैसे बदलती बाजार व्यवस्था, बढ़ती जियोपालिटिकल अनिश्चितताएं, उभरती प्रौद्योगिकियां, स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की आगे बढ़ती राह और बढ़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली के लिए किए जाने वाले प्रयासों के अर्थ बदल रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 1.5°C की सीमा अभी भी हासिल की जा सकती है, परंतु इसके लिए समय और अवसर सीमित होते जा रहे हैं। जबकि दुनिया के पास जीवाश्म ईंधनों की पर्याप्त आपूर्ति है, 2020 के दशक के अंत में तेल और गैस की अधिकता की संभावना है। इस अधिकता के कारण गैस की मांग अनावश्यक रूप से बढ़ सकती है और नवीकरणीय ऊर्जा के विकास में बाधा आ सकती है।
भारत के संदर्भ में, देश आने वाले वर्षों में दुनिया में सबसे तेज़ ऊर्जा मांग वृद्धि का अनुभव करने वाला है। "स्टेटेड पॉलिसी सीनारियो" के तहत, 2035 तक भारत हर दिन 12,000 से अधिक कारें सड़कों पर जोड़ेगा, और इसके निर्माण क्षेत्र में हर साल 1 अरब वर्ग मीटर की वृद्धि होगी। इसके साथ ही, लोहे और स्टील का उत्पादन 70% बढ़ने की उम्मीद है, जबकि सीमेंट उत्पादन में लगभग 55% की वृद्धि होगी।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल ऊर्जा मांग में 35% की वृद्धि होगी और इसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 2035 तक तीन गुना बढ़कर 1400 गीगावाट हो जाएगी। भारत में कोयला ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहेगा, और 2030 तक लगभग 60 गीगावाट अतिरिक्त कोयला ऊर्जा क्षमता जुड़ने की संभावना है। हालाँकि, इसी अवधि में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश के साथ, भारत का बैटरी स्टोरेज क्षमता दुनिया में तीसरे स्थान पर होगा।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फतिह बीरोल का कहना है कि, ‘इस दशक के दूसरे भाग में जियोपालिटिकल तनाव के परिदृश्य के बीच तेल और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की संभावना हमें एक बहुत अलग ऊर्जा संसार में ले जाएगी, जो हाल के वर्षों के वैश्विक ऊर्जा संकट वाले अनुभव से बिल्कुल अलग होगा। इसका मतलब कीमतों में कमी होगी, जो उपभोक्ताओं को राहत प्रदान करेगी जो अभी तक ऊर्जा कीमतों से प्रभावित रहे हैं। ईंधन की कीमतों के दबाव से मिली राहत नीति निर्माताओं को स्वच्छ ऊर्जा की तरफ बढ़ने के लिए निवेश बढ़ाने और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी हटाने पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर प्रदान कर सकती है।’
मतलब साफ है कि ऊर्जा क्षेत्र के भविष्य और जलवायु परिवर्तन से निपटने में सरकारी नीतियों और उपभोक्ता के पास उपलब्ध विकल्पों का गहरा प्रभाव होगा।
रिपोर्ट के अनुसार, कम कार्बन उत्सर्जन वाले स्रोत 2030 से पहले दुनिया की आधी से अधिक बिजली उत्पन्न करने के लिए तैयार हैं, और कोयला, तेल व गैस की मांग दशक के अंत तक चरम पर पहुंचने का अनुमान है। ऊर्जा प्रणाली में स्वच्छ ऊर्जा अभूतपूर्व तेजी से प्रवेश कर रही है, लेकिन प्रौद्योगिकियों और बाजारों में इसका उपयोग अभी एकसमान रूप से होने से बहुत दूर है।
पिछले दशक में बिजली का उपयोग कुल ऊर्जा मांग की तुलना में दोगुनी गति से बढ़ा है। पिछले दस वर्षों में बिजली की मांग में वैश्विक वृद्धि का दो-तिहाई हिस्सा चीन से आया है। डा. बीरोल के अनुसार, ‘चीन का सौर विस्तार इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है कि 2030 के दशक की शुरुआत में यानी अब से दस साल से भी कम समय में चीन की सौर ऊर्जा उत्पादन अकेले आज अमेरिका की कुल बिजली मांग से अधिक हो सकती है।’
स्वच्छ ऊर्जा के तेजी से बढ़ते रहने के लिए नई ऊर्जा प्रणालियों, विशेष रूप से विद्युत ग्रिड और ऊर्जा भंडारण में बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता है। आज नवीकरणीय ऊर्जा पर खर्च होने वाले हर डॉलर में 60 सेंट ग्रिड और भंडारण पर खर्च किए जाते हैं, जो इस बात को स्पष्ट करते हैं कि कैसे बुनियादी ढांचा स्वच्छ ऊर्जा में बदलाव के अभियान के साथ कदमताल नहीं कर पा रहा है।
कई बिजली प्रणालियां वर्तमान में चरम मौसमी घटनाओं के लिहाज से संवेदनशील हैं जिससे उनकी सुरक्षा बढ़ाने के प्रयासों पर अधिक निवेश की जरूरत बढ़ती है। स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के लिए गति के बावजूद दुनिया अभी अपने नेट जीरो लक्ष्य से बहुत दूर है। वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन जल्द चरम पर पहुंचने की आशंका है, लेकिन इसके बाद इसमें तेजी से गिरावट नहीं होने का मतलब है कि दुनिया सदी के अंत तक वैश्विक औसत तापमान में 2.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के लिए तैयार है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्य से काफी अधिक है।
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य है। दुनिया भर के देशों के सामने मौजूद ऊर्जा चुनौतियों का समाधान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी 2025 की दूसरी तिमाही में ऊर्जा सुरक्षा के भविष्य पर एक अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन आयोजित कर रही है। लंदन में यूके सरकार द्वारा आयोजित यह शिखर सम्मेलन मौजूदा और उभरते जोखिम, समाधान और अवसरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक ऊर्जा प्रणाली का आकलन करेगा।