वैश्विक स्तर पर ऊर्जा उत्पादन में विंड और सोलर की हिस्सेदारी अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, जोकि 2021 में 10.3 फीसदी दर्ज की गई थी। वहीं 2020 में विंड और सोलर की मदद से 9.3 फीसदी बिजली पैदा की गई थी। अच्छी खबर यह है कि साफ-सुथरे स्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़कर कोयले से ज्यादा हो गई है।
गौरतलब है कि 2021 में ऊर्जा उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी 36.5 फीसदी थी जबकि साफ-सुथरे ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़कर 38.3 फीसदी पर पहुंच गई है। यह जानकारी हाल ही में क्लाइमेट थिंक टैंक एम्बर द्वारा जारी रिपोर्ट "ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यु 2022" में सामने आई है।
रिपोर्ट की मानें तो 2015 में जिस साल पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे उससे करीब दोगुनी हो गई है। तब इन दोनों स्रोतों से करीब 4.6 फीसदी ऊर्जा पैदा की गई थी। यदि इन दोनों ऊर्जा स्रोतों में होती वृद्धि को अलग-अलग देखें तो जहां पवन ऊर्जा के उत्पादन में 14 फीसदी की वृद्धि आई है वहीं सौर ऊर्जा में भी 23 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि 2018 के बाद से उच्चतम है।
हालांकि इसके बावजूद पवन और सौर ऊर्जा का उत्पादन 2021 में पिछले एक दशक की औसत वृद्धि से धीमा था। गौरतलब है कि इनकी सालाना औसत वृद्धि करीब 20 फीसदी है जबकि 2021 में इनमें संयुक्त रूप 17 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
देखा जाए तो दुनिया में 50 देश ऐसे हैं जहां ऊर्जा उत्पादन में पवन और सोलर की हिस्सेदारी 10 फीसदी से ज्यादा हैं, जबकि 2020 में इन देशों की संख्या 43 और 2019 में सिर्फ 36 थी। गौरतलब है कि जिन सात देशों ने 2021 में इस मुकाम को हासिल किया है उनमें चीन (11.2 फीसदी), जापान (10.2 फीसदी), मंगोलिया (10.6 फीसदी), वियतनाम (10.7 फीसदी), अर्जेंटीना (10.4 फीसदी), हंगरी (11.1 फीसदी) और अल सल्वाडोर (12 फीसदी) शामिल थे।
गौरतलब है कि दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं (संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम) पहले ही इस मुकाम तक पहुंच गई हैं। वहीं दुनिया में तीन देश डेनमार्क, लक्ज़मबर्ग और उरुग्वे ऐसे हैं जहां ऊर्जा उत्पादन में विंड और सोलर की हिस्सेदारी 40 फीसदी से भी ज्यादा है। इनमें डेनमार्क में 52 फीसदी, लक्ज़मबर्ग की 43 फीसदी, और उरुग्वे में 47 फीसदी बिजली सौर और पवन ऊर्जा पर निर्भर है।
आज भी 62 फीसदी ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन पर हैं निर्भर
वहीं इसके विपरीत अफ्रीका और मध्य पूर्व के कुछ गिने चुने देश ही ऐसे हैं जहां सोलर और विंड की ऊर्जा उत्पादन में हिस्सेदारी 10 फीसदी या उससे ज्यादा है। हालात यह है कि सऊदी अरब में तो एक फीसदी से भी कम ऊर्जा सोलर और विंड की मदद से पैदा की जा रही है जबकि संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के अगले दो मेजबान देशों मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात में तो यह 3 फीसदी ही है। यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश के ऊर्जा उत्पादन में इन दो स्रोतों की हिस्सेदारी करीब 8 फीसदी है।
2020 की तुलना में 2021 के दौरान बिजली की मांग में भी 5 फीसदी यानी 1,414 टेरावत घंटे की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि इसका करीब 29 फीसदी हिस्सा सोलर और विंड की मदद से पूरा किया गया है। 2021 में कोयले आधारित बिजली में भी 9 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है। देखा जाए तो 1985 के बाद से यह कोयला आधारित बिजली उत्पादन में होने वाली सबसे बड़ी वृद्धि है।
रिपोर्ट के मुताबिक ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 2021 में 62 फीसदी थी जिसमें कोयले से करीब 36 फीसदी और गैस से 22 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन किया गया है। जिसका नतीजा है कि ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में करीब 7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। इतना तो स्पष्ट है कि यदि जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना है तो वैश्विक स्तर पर ऊर्जा उत्पादन में सोलर और विंड जैसे साफ सुथरे स्रोतों की हिस्सेदारी को बढ़ाना होगा।