

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्रियों के खिलाफ किसान विरोध अब केवल एक स्थानीय आपत्ति नहीं बल्कि खेती, पर्यावरण और ग्रामीण भविष्य को लेकर गहरी चिंता का स्वर बनता जा रहा है। संगरिया तहसील की ग्राम पंचायत सिंहपुरा के चक 27 एएमपी में प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्री के विरोध में खैरूवाला टोल नाके के समीप आज आयोजित किसान पंचायत ने यह साफ कर दिया कि किसान इस मुद्दे पर आंदोलन जारी रखेंगे।
आज सुबह से ही आसपास के गांवों से किसानों का पहुंचना शुरू हो गया था। दोपहर होते-होते यह स्थान एक बड़े जन समूह में तब्दील हो गया। सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने एथेनॉल फैक्ट्रियों के उन अनुभवों की ओर इशारा किया, जो देश के दूसरे हिस्सों में पहले ही सामने आ चुके हैं। किसानों का कहना था कि ऐसे कारखानों के कारण मिट्टी की उर्वरता घटती है, भूजल प्रदूषित होता है और हवा में जहरीले तत्व बढ़ते हैं। इसका असर केवल फसलों तक सीमित नहीं रहता बल्कि मानव स्वास्थ्य, पशु-पक्षियों और पूरे पर्यावरण तंत्र पर पड़ता है।
वक्ताओं ने सवाल उठाया कि अगर कोई उद्योग ऐसा होता जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचता हो तो किसान कभी विरोध नहीं करते लेकिन जो कारखाना खेती, पानी और जीवन को खतरे में डाले उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है?
शाम तक चली किसान पंचायत में आंदोलन को और तेज करने का ऐलान किया गया। संघर्ष समिति के नेता प्रमेन्द्र खीचड़ ने बताया कि प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और प्रतिनिधियों से बातचीत की। किसानों की ओर से साफ मांग रखी गई कि जिस कंपनी से गांव में एथेनॉल फैक्ट्री लगाने का एमओयू किया गया है, उसे तुरंत निरस्त किया जाए।
अधिकारियों ने इसे राज्य सरकार के स्तर का निर्णय बताते हुए कहा कि किसानों की आपत्ति और मांगों को जिला कलक्टर के माध्यम से सरकार तक पहुंचाया जाएगा। साथ ही यह आश्वासन भी दिया गया कि किसानों की सहमति के बिना किसी भी तरह का निर्माण कार्य शुरू नहीं किया जाएगा।
इस पंचायत में किसानों ने टिब्बी में प्रस्तावित एथेनॉल कारखाने के विरोध में 7 जनवरी को संगरिया में आयोजित होने वाली किसान पंचायत में बड़ी संख्या में पहुंचने का संकल्प किया। खीचड़ ने कहा कि यह आंदोलन केवल एक गांव या एक फैक्ट्री तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि ऐसे कारखानों के खिलाफ साझा संघर्ष का रूप लेगा। हम सब टिब्बी के किसानों के साथ हैं।
सभा में संघर्ष समिति के नेता प्रमेन्द्र खीचड़, अशोक चौधरी, ओम जांगू, कुलविन्द्र ढिल्लो, संजय खीचड़, विजय सिंह बिश्नोई और पालाराम एवं अन्य वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए। वक्ता बोले, ‘ऐसे उद्योगों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए जिनकी कीमत खेती, पानी और पर्यावरण को चुकानी पड़े। उद्योग स्थापना में किसानों की सहमति और पर्यावरण की सुरक्षा प्राथमिक शर्त होनी चाहिए।’’