राजस्थान : आठ महीनों में बना 435 मेगावाट का सौर संयंत्र, कम होगा 7.05 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन

भारत ने 2030 की समय सीमा से पांच साल पहले अपनी कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50 प्रतिशत हिस्सा अब गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त कर लिया है
सौर ऊर्जा से बिजली की बचत पर जोर।
सौर ऊर्जा से बिजली की बचत पर जोर।
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भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता को लेकर राजस्थान में लगातार काम जारी है। केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 19 जुलाई, 2025 को बीकानेर जिले के नोखा में जेलेस्ट्रा इंडिया द्वारा विकसित 435 मेगावाट की गोरबिया सोलर पावर परियोजना का उद्घाटन किया है। यह परियोजना आठ महीनों में ही तैयार कर दी गई।

गोरबिया सोलर पावर परियोजना, जो आठ महीनों से भी कम समय में पूरी की गई, 1250 एकड़ में फैली है और इसके लिए सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ 25 साल का विद्युत खरीद समझौता किया गया है। जोशी ने बताया कि राजस्थान की कुल विद्युत क्षमता का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अब नवीकरणीय ऊर्जा से आ रहा है, जिसमें 35.4 गीगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता शामिल है। इसमें 29.5 गीगावाट सौर ऊर्जा से और 5.2 गीगावाट पवन ऊर्जा से मिल रही है।

जोशी ने इस गोरबिया परियोजना को दूरदर्शी नेतृत्व और ईमानदार नीयत से संभव होने वाले कार्यों का एक चमकदार उदाहरण बताया है। उन्होंने कहा, “हर मेगावाट के साथ हम सिर्फ बिजली नहीं, बल्कि नए भारत का निर्माण कर रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा कि यह परियोजना बदलाव की गति और पैमाने को दर्शाती है।

परियोजना को किसानों की आय, स्थानीय रोजगार, और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए अहम बताया जा रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, गोरबिया परियोजना से सालाना 755 गीगावाट-घंटा स्वच्छ बिजली का उत्पादन होगा, जिससे लगभग 1.28 लाख घरों की जरूरतें पूरी होंगी। इसके साथ ही हर साल करीब 7.05 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को रोका जा सकेगा।

इस सौर परियोजना में आधुनिकतम टॉपकॉन बाइफेशियल मोनो पीईआरसी सोलर पैनल लगाए गए हैं, जो दोनों ओर से प्रकाश लेकर बिजली उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा, सफाई और रखरखाव के लिए 1300 से अधिक रोबोटिक यूनिट्स का उपयोग किया गया है, जिससे मॉड्यूल की दक्षता बनी रहती है।

जोशी ने इसे "विश्वस्तरीय सुविधा" बताया है और भारत के अन्य हिस्सों में भी इस तकनीक को अपनाने का आह्वान किया।

मंत्री ने आईआईटी बॉम्बे की अपनी हालिया यात्रा का जिक्र किया, जहां पेरोव्स्काइट टैंडम सोलर सेल्स पर काम चल रहा है। यह तकनीक पारंपरिक मॉड्यूल की तुलना में कहीं अधिक ऊर्जा क्षमता दे सकती है। उन्होंने जेलेस्ट्रा और राजस्थान सरकार को इस उभरती तकनीक पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने की सलाह दी, ताकि राजस्थान जैसी उच्च विकिरण क्षमता वाली जगहों में बिजली उत्पादन की नई संभावनाएं खुल सकें।

राजस्थान ने इंटीग्रेटेड क्लीन एनर्जी पॉलिसी 2024 लागू की है और साथ ही राज्य की ग्रीन हाइड्रोजन नीति भी संचालन में आ चुकी है। बीते वर्ष राज्य में 6.57 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश प्रस्तावों पर हस्ताक्षर हुए, जिनमें अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन केंद्र में रहे।

वहीं, प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत राजस्थान में अब तक 49,000 से अधिक रूफटॉप सोलर सिस्टम लगाए जा चुके हैं, जिनपर 325 करोड़ रुपये से ज्यादा की सब्सिडी वितरित की गई है। हालांकि 2.7 लाख से अधिक आवेदन अभी लंबित हैं।

इसी प्रकार, पीएम-कुसुम योजना के तहत 1.45 लाख से अधिक सोलर पंप्स लगाए जा चुके हैं, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए नवीकरणीय और सस्ती ऊर्जा मिल रही है।

प्रह्लाद जोशी ने कहा, भारत ने अपनी कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50 प्रतिशत हिस्सा अब गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त कर लिया है, वह भी 2030 की समय-सीमा से पांच साल पहले। यह उपलब्धि जलवायु प्रतिबद्धताओं और वैश्विक स्थिरता में भारत की भूमिका को और मजबूत बनाती है।

मंत्री ने यह भी कहा कि अब समय है कि पवन-सौर हाइब्रिड परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाए। राजस्थान में 284 गीगावाट की अछूती पवन ऊर्जा क्षमता मौजूद है, जिसका समुचित उपयोग भारत की ऊर्जा सुरक्षा को और सुदृढ़ बना सकता है।

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