Photo: twitter/@PDCMachines
Photo: twitter/@PDCMachines

केवल ग्रीन हाइड्रोजन है भविष्य का ईंधन, पेट्रोलियम लॉबी और तकनीक है राह के रोड़े

2030 तक सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है
Published on

साल 2012 के बाद जब आधिकारिक रूप से यह स्वीकार कर लिया गया कि धरती का बढ़ता तापमान अभूतपूर्व है और इसके लिए मुख्य रूप से मानव गतिविधियां जिम्मेदार हैं, तब से वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा के विकल्पों की खोज में तेजी आई।

खासतौर पर 2015 के पेरिस समझौते के बाद, जब 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया गया, अधिकांश देशों की नीतियाँ इसी उद्देश्य के इर्द-गिर्द बनने लगीं। जीवाश्म ईंधनों से हटकर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर झुकाव बढ़ने लगा। हाइड्रोजन, जो न केवल कारों, ट्रकों, जहाजों और विमानों को चला सकता है, बल्कि प्रदूषण रहित भी है। इसके उपयोग से केवल पानी ही बचता है, न कि प्रदूषण।

भारत ने अक्षय ऊर्जा, विशेषकर सौर ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन में अपने ऊर्जा भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए पिछले दो दशकों से निरंतर प्रयास किए हैं, और विशेष रूप से पिछले एक दशक में आशातीत प्रगति हासिल की है। पेरिस जलवायु समझौते के आलोक में, भारत ने दशकों से चले आ रहे अपने प्रयासों के आधार पर 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है। पिछले एक दशक में गैर-जीवाश्म ऊर्जा उत्पादन में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन और भी शानदार रहा है, इस दौरान 3000 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में हो रहे दूसरे अंतर्राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन सम्मेलन में अक्षय ऊर्जा में हो रही प्रगति को रेखांकित करते हुए ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन और इसके उपयोग के लिए समेकित प्रयास और सहयोग तंत्र विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। भारत में हाइड्रोजन ऊर्जा के प्रति झुकाव 2006 में शुरू किए गए नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी रोडमैप से देखा जा सकता है, लेकिन असली गति 2022 में शुरू हुए नेशनल हाइड्रोजन एनर्जी मिशन से आई है, जिसमें 2030 तक सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल, उर्जा के अन्य विकल्पों के मुकाबले हमेशा से आसान और सस्ता रहा है लेकिन उर्जा का मौजूदा परिदृश्य  बदलने लगा है। दुनिया जलवायु संकट को धीरे-धीरे समझने लगी है इसीलिए कंपनियां और सभी देश ना सिर्फ कार्बन उत्सर्जन में कटौती चाह रहे हैं बल्कि उनका लक्ष्य है शून्य उत्सर्जन यानी  नेट जीरो। जलवायु संकट के दौर में जीवश्म ईंधन से हट कर कुछ ना कुछ करना होगा, ऐसे में क्या हाइड्रोजन एक वैकल्पित इंधन हो सकता है ? 

आज जितना भी हाइड्रोजन हम पैदा करते हैं उसका अधिकांश हिस्सा फर्टिलाइजर और पेट्रोलियम उद्योग में खर्च हो जाता है, लेकिन इतने भर से हाइड्रोजन मौजूदा उर्जा संकट का विकल्प नहीं बन जाता है।  हाइड्रोजन एक बहुत ही सामान्य सा तत्व है जो मानव सभ्यता के अभी के निर्णायक जलवायु संकट के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्सर्जन करने वाले इंधन का समाधान बन सकता है। अगर इसे हम प्राकृतिक रूप में अलग कर पाए तो यह  हमारे सबसे प्रदूषणकारी सेक्टरों में उत्सर्जन को काफी हद तक घटा सकता है।  हाइड्रोजन के  उत्पादन की प्रक्रिया इसे जरा पेचीदा सी बना देती है क्योंकि तमाम हाइड्रोजन एक जैसा नहीं बनता बल्कि इसे बनाने के बहुत से अलग-अलग तरीके हैं। 

आज बनने वाले कुल हाइड्रोजन का नब्बे फीसद से ज्यादा हिस्सा ग्रे हाइड्रोजन कहलाता है यह जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल से स्टीम रिफार्मिंग प्रक्रिया द्वारा हाइड्रोजन को अलग करके बनाया जाता है जिसमे हाइड्रोजन के साथ साथ भारी मात्रा  में कार्बन डाइऑक्साइड भी निकलता है। भविष्य का ईंधन जिसे हम इतना ग्रीन मानते हैं उसे बनाना एक बहुत प्रदूषणकारी प्रकल्प है और हाइड्रोजन को एक साफ़ ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने से पहले उसके उत्पादन की मौजूदा प्रक्रिया को साफ सुथरा बनाना होगा, इसके दो मुख्य विकल्प हैं।

ब्लू हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन। ब्लू हाइड्रोजन भी ग्रे हाइड्रोजन ही है पर इस दौरान निकले कार्बन डाइऑक्साइड इसके पहले कि वायुमंडल में जाएं  इन्हें  रोक कर जमीन के अंदर स्टोर करते हैं या इससे अन्य उपयोगी दूसरी सामग्री बनाते हैं। यह पौधे द्वारा वायुमंडल से प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को फिक्स करने जैसा ही काम है। इस प्रकार यह ग्रे हाइड्रोजन के मुकाबले साफ ईंधन बन जाती है। 

ब्लू हाइड्रोजन बनाने की प्रक्रिया में निकले कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में जाने से रोक लेना सैद्धांतिक रूप से संभव है पर कुल उर्जा की  खपत और जटिलता के आधार पर आसान नहीं होता। ब्लू हाइड्रोजन का कार्बन फूटप्रिंट, इस्तेमाल हुए प्राकृतिक गैस के सीधे इस्तेमाल के कार्बन फूटप्रिंट से भी ज्यादा होता है। यानी  ब्लू हाइड्रोजन बनाने में जितना कार्बन उत्सर्जन होता है वो इस प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल प्राकृतिक गैस के सीधे जला देने से निकले कार्बन के उत्सर्जन से भी ज्यादा होता है। 

तेल और गैस उद्योग ब्लू हाइड्रोजन बनाने में निकले  करीब नब्बे फ़ीसदी कार्बन उत्सर्जन को हटाने या फिक्स करने का दावा करते हैं  लेकिन असलियत कुछ और है। ग्लोबल विटनेस के एक आकलन के मुताबिक कनाडा में शैल कंपनी का ब्लू हाइड्रोजन का प्लांट अपने करीब आधे कार्बन उत्सर्जन (48%) को ही रोक पाता है।

अगर इसमें हम ब्लू हाइड्रोजन को बनाने में इस्तेमाल हो रहे प्राकृतिक गैस की  ढुलाई  के दौरान मीथेन के रिसाव को भी जोड़ ले तो किसी भी लिहाज से ये साफ ईंधन के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। पर इसके बावजूद ब्लू हाइड्रोजन ब्रिटेन, अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की आधिकारिक उर्जा रणनीतियों के केंद्र  में है।

स्पष्ट है कि  ब्लू हाइड्रोजन उतना साफ ईंधन नहीं है जितना  तेल और गैस कंपनियों द्वारा दावा किया जाता है, यह  उर्जा सेक्टर में दबदबा बनाये रखने की मार्केटिंग भर हैं, जिसमें  हाइड्रोजन के नाम पर दुनिया को जीवाश्म ईंधन बेचते रहना है। स्पष्ट है कि ब्लू हाइड्रोजन एक जानबूझ कर की जा रही गलती है जो जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई की धार कुंद कर रही है। 

ऐसे में विकल्प है कि ग्रीन हाइड्रोजन, जिसका उत्पादन ग्रे और ब्लू हाइड्रोजन के इतर जीवाश्म ईंधन के बदले हरित उर्जा यानी  सौर और पवन उर्जा आधारित प्रक्रिया से होता है। इस प्रकार इससे कोई उत्सर्जन नहीं होता और आखिरकार वाकई साफ़ हाइड्रोजन मिलती है। अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके पानी को इलेक्ट्रोलाइज़ कर हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलगकर ग्रीन हाइड्रोजन बनता है।

अभी इस्तेमाल हो रहे कुल हाइड्रोजन का एक छोटा सा हिस्सा ही ग्रीन हाइड्रोजन है, साथ ही साथ यह दूसरी किसी भी उर्जा स्रोतों  के मुकाबले अभी अच्छा खासा महंगा है। निकट भविष्य में बेहतर इलेक्ट्रोलाइजर के उत्पादन और सस्ते हो रहे अक्षय उर्जा के कारण ग्रीन हाइड्रोजन सस्ता और सुलभ होगा। ब्लूमबर्गएनइएफ के आकलन के मुताबिक ग्रीन हाइड्रोजन साल 2030 तक ब्लू हाइड्रोजन और साल 2050 तक ग्रे हाइड्रोजन से सस्ता हो जायेगा।

सैद्धांतिक रूप से ग्रीन हाइड्रोजन एक जादुई ईंधन का एहसास देता है, जहाँ इस्तेमाल के बाद वेस्ट या प्रदूषण के नाम पर सिर्फ पानी बनता है, पर इसका बनना  इतना भी आसान नहीं है। हाइड्रोजन अपेक्षाकृत कम उर्जा घनत्व वाला ईंधन है, इसका अर्थ हुआ कि इसके संग्रह के लिए प्राकृतिक गैस के मुकाबले तीन गुणा ज्यादा बड़ा जगह चाहिए। आप कल्पना कर सकते हैं  कि हाइड्रोजन पर चलने वाली कार में कम से कम सीएनजी वाले कार के मुकाबले तीन गुणा बड़ा सिलेंडर की दरकार होगी। एक आकलन बताता  है कि हाइड्रोजन से चलने वाली समुद्री मालवाहक जहाज में पांच फीसद हिस्सा केवल हाइड्रोजन सिलेंडर के लिए चाहिए होगा।

ऐसे में हाइड्रोजन आधारित अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर भंडारण की जरुरत होगी। वैश्विक स्तर पर के एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक कुल उर्जा उत्पादन में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी 12% तक हो जाएगी। ग्रीन हाइड्रोजन एक साफ ईंधन हैं, पर इसके व्यापक इस्तेमाल के बदले इसका उपयोग उर्जा के अन्य अक्षय स्रोतों के साथ में और संतुलन के साथ किया जाना चाहिए।

मिसाल के तौर पर पैसेंजर कारें  ग्रीन हाइड्रोजन से चल सकती है लेकिन पहले अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल से हाइड्रोजन में बदलना उसे रिफ्यूलिंग स्टेशनों तक लाना उसे वापस बिजली में बदलने के लिए कार के फ्यूल सेल को चार्ज करना यह बहुत कारगर नहीं हो सकता, इसमें करीब 60% ऊर्जा तक नष्ट हो जाती है। बेहतर है विकल्प के तौर पर उसी ऊर्जा का इस्तेमाल एक लीथियम-आयन या अन्य किफायती बैटरी को सीधा चार्ज करने में कर सकते हैं जो कार की मोटर को चलाती है और इसमें जिससे सिर्फ 20 फीसदी तक ही ऊर्जा खर्च होती है।

पर हाइड्रोजन कई मामलो में उर्जा का सबसे बेहतर विकल्प भी है, खास कर वैसे सेक्टर में जहाँ ग्रिड आधारित बिजली काम नहीं आ सकती, जिसमें समुद्री माल ढूलाई और हवाई यातायात महत्वपूर्ण है। ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन बनाने के लिए इन चुनौतियों को पार करना ज़रूरी है, ताकि दुनिया एक स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में आगे बढ़ सके। आज जरुरत है कि भारत के मौजूदा ग्रीड का एनर्जी मिक्स, जिसका दो-तिहाई से अधिक हिस्सा जीवाश्म ईंधन आधारित है, में अक्षय उर्जा के योगदान को बढ़ाया जाये  और इसमें अक्षय उर्जा के अन्य स्रोतों के साथ ग्रीन हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण विकल्प बन सकता है।

Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in