क्या कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट कभी उत्सर्जन मानदंडों को पूरा कर पाएंगे? यह एक बड़ा सवाल है। क्योंकि वर्तमान में देशभर के थर्मल पावर प्लांट केवल पांच फीसदी ही सल्फर डाईआक्साइड (एसओटू) उत्सर्जन के लिए बनाए गए मापदंडों का पालन कर पा रहे हैं। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है। सीएसई ने देश के विभिन्न राज्यों में स्थापित थर्मल पॉवर प्लांट द्वारा किए जाने वाले उत्सर्जन का विस्तार से विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण में यह बात निकलकर आई है कि कहीं भी उत्सर्जन के लिए निर्धारित किए गए मानदंडों का पूर्ण पालन नहीं किया जा रहा है। हालांकि इनमें पूर्वोत्तर के राज्यों की हालात तो और भी चिंताजनक हैं क्योंकि ये राज्य तो किसी भी प्रकार का मानदंड का पालन नहीं कर रहे हैं। सीएसई का कहना है कि यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक और सोचनीय है।
सीएसई द्वारा किए गए इस नए विश्लेषण में कहा गया है कि भारत के कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट उत्सर्जन मानदंडों को पूरा करने में अपने हाथ-पैर खींच रहे हैं। सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई के कार्यक्रम निदेशक निवित यादव कहते हैं, “पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दिसंबर 2015 में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए उत्सर्जन मानदंडों के लिए आवश्यक दिशानिर्देश देते हुए एक अधिसूचना जारी की थी। तब से, कई मानदंडों को कमजोर कर दिया गया है। सीएसई के विश्लेषण के अनुसार, अब तक एसओटू उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए एफजीडी (दहन गैस निर्गंधकीकरण) स्थापित करने वाले 5 प्रतिशत संयंत्रों में 9,280 मेगावाट शामिल हैं, जिनके बारे में बताया गया है कि उन्होंने एफजीडी चालू कर दिए हैं और अन्य 1,430 मेगावाट जो एसओटू के मानदंड का पालन करने का दावा करते हैं। इस संबंध में सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई की कार्यक्रम अधिकारी अनुभा अग्रवाल कहती हैं कि ये दावे कितने सच हैं, यह कहना मुश्किल है, क्योंकि इन दावों की पुष्टि के लिए राज्य-स्तरीय नियामक द्वारा किए गए जमीनी निरीक्षण के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
ध्यान रहे कि एसओटू के नियंत्रण के लिए एक इकाई में एफजीडी की स्थापना में लगभग दो साल लगते हैं, जिसके बाद आवश्यक व्यवस्था करने के लिए इकाई को अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है। अग्रवाल कहती है कि इस पद्धति के आधार पर हमने पाया है कि समय सीमा में पांच से आठ साल के विस्तार के बावजूद, 43 प्रतिशत क्षमता (श्रेणी ए, जिसमें दिल्ली-एनसीआर के 10 किमी के दायरे में संयंत्र) 11 प्रतिशत (श्रेणी बी - गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों के 10 किमी के दायरे में) और शेष क्षमता का 1 प्रतिशत (श्रेणी सी) क्रमशः 2024, 2025 और 2026 की नवीनतम समय सीमा तक मानदंडों को पूरा करने की संभावना नहीं है। हालांकि यादव कहते हैं कि इस पूरे प्रकरण में थोड़ी बहुत आशा की किरण दिखाई देती है क्यों कि दिसंबर 2021 और वर्तमान के बीच मानदंडों के पालन की संभावना की तुलना करने से पता चलता है कि सुधार हुआ है।
इस मामले में पूर्वी क्षेत्र के किसी भी राज्य (बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और झारखंड) में ऐसा कोई भी थर्मल पावर प्लांट नहीं है जो वर्तमान में उत्सर्जन मानदंडों का अनुपालन कर रहा हो। वहीं यदि पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों में देखें तो इस क्षेत्र के सभी राज्यों (छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र) में कुछ टीपीपी (ताप विद्युत संयंत्र) ही हैं जो एसओटू मानदंडों का पालन कर रहे हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ में बंदखार टीपीपी (300 मेगावाट) और नवापारा टीपीपी (600 मेगावाट) के एसओटू के अनुरूप होने का दावा किए जाने की बात कही गई है लेकिन इन दावों को सही ठहराने के लिए कोई सबूत नहीं है। यदि इस क्षेत्र के सभी संयंत्रों के पालन करने का प्रतिशत देखें तो यह सात है। देश के सबसे अधिक कोयला तापीय क्षमता महाराष्ट्र की है लेकिन राज्य के केवल 11 फीसदी संयंत्र ही अभी नियमों का अनुपालन कर पा रहे हैं। जहां तक देश के उत्तरी राज्यों की बात है तो इस क्षेत्र केवल उत्तर प्रदेश में दादरी टीपीपी, ऊंचाहार टीपीपी और हरियाणा में महात्मा गांधी टीपीपी उत्तरी क्षेत्र ऐसे संयंत्र हैं जो मानदंडों का पालन कर रहे हैं।