तेजी से बढ़ेगा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को खत्म करने का बाजार

दुनिया के कई देश परमाणु संयंत्रों की सेवाओं से मुक्त हो रहे हैं। भारत अब भी इस दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाया है। हालांकि, भविष्य में इसी काम के लिए 1,975 करोड़ रुपये फंड जुटा लिए गए हैं।
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एक तरफ नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। तो दूसरी तरफ सुरक्षा कारणों से परमाणु ऊर्जा के प्रति कई देशों का मोहभंग हो रहा है। इस आकर्षण से मोहभंग के सफर ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को नष्ट (डीकमशनिंग) करने के बाजार को गरम कर दिया है।

वैश्विक व्यापार का विश्लेषण करने और सलाह देने वाली एडरॉइट मार्केट रिसर्च की हालिया और ताजा रिपोर्ट  में यह बात कही गई है। इस रिपोर्ट का पूर्वानुमान है कि बेहद विशिष्ट संचालन (न्यूक्लियर डीकमशनिंग) वाली इस बाजार को 2018 से 2025 तक पांच फीसदी की उछाल मिल सकती है। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक, सितंबर 2017 तक दुनिया में करीब 110 कॉमर्शियल पावर रिएक्टर्स, 48 प्रोटोटाइप रिएक्टर्स, 250 रिसर्च रिएक्टर्स और विभिन्न ईंधन सुविधा केंद्रों का संचालन बंद हो चुका है। यह सभी सुविधाएं डीकमशनिंग प्रक्रिया के अधीन होंगी। ऐसे में इनमें लंबा वक्त लगेगा क्योंकि इन विशिष्ट तरीके के प्लांट से बड़े पैमाने पर उपकरणों, कल-पुर्जों को हटाना होगा। उनका सुरक्षित निस्तारण भी करना होगा। सर्वे के मुताबिक ऐसे कामों की संख्या में 2018-2023 के बीच बढ़ोत्तरी हो सकती है।

यूरोपियन यूनियन देशों में परमाणु ऊर्जा स्रोतों से बेहद तेजी से किनारा किया जा रहा है। यूरोपियन देश नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में सबसे ज्यादा आगे आ रहे हैं। इससे परमाणु ऊर्जा की विकास की रफ्तार धीमी हो रही है। यह निकट भविष्य में संयंत्रों के डीकमशनिंग बाजार के लिए ईंधन का काम कर सकता है। जर्मनी और फ्रांस ने आगे बढ़कर चरणबद्ध तरीके से परमाणु ऊर्जा को खत्म करने की योजना तैयार कर उसपर अमल शुरु कर दिया है। फ्रांस ने तय किया है कि 2025 तक वह 17 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को बंद करेगा।

दुनिया में सबसे ज्यादा, 99 परमाणु ऊर्जा संयंत्र अमेरिका में हैं। इनमें 10 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की डीकमीशनिंग की जा चुकी है जबकि 10 अभी इसकी प्रक्रिया में हैं। वहीं, रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि “यूरोपियन यूनियन के विभिन्न देशों का नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर ध्यान बढ़ा है। वे चरणबद्ध तरीके से परमाणु ऊर्जा को बाहर भी कर रहे हैं। इससे प्रत्याशित है यूरपोयिन क्षेत्र में परमाणु संयंत्रों को सेवाओं से मुक्त करने संबंधी बाजार में उछाल आएगा।”  

रिपोर्ट के मुताबिक 2017 से 2019 तक वैश्विक स्तर पर 76 परमाणु संयंत्र सेवा मुक्त हो जाएंगे। 2020 में 183 ईकाइयां और 2030 में 127 ईकाइयां बंद हो सकती है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक यूरोप में 2018-2022 के बीच परमाणु संयंत्रों को सेवाओं से मुक्त कराने की सुविधा मुहैया कराने वाले बाजार में 29.57 फीसदी की बढ़ोत्तरी होगी। हालांकि, भारत अभी तक ऐसा नहीं कर सकता है। हालांकि, परमाणु संयंत्रों को हटाने के लिए एटॉमिक एनर्जी रेग्युलेटरी बोर्ड की एक गाइडलाइन जरूर जारी की गई है। भारत में परमाणु ऊर्जा का मुख्य उत्पादक न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड है जो भविष्य में संयंत्रों को हटाने के लिए अपने यूजर्स से लेवी वसूल रहा है। यह फंड डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के जरिए तैयार की गई है।

न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड की 2017-2018 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक संयंत्रों को भविष्य में  हटाने के लिए 1975 करोड़ रुपये का फंड एकत्र किया जा चुका है। 2012 के दौरान संसद में एक सवाल के जवाब में डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी की अध्यक्षता करने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की उम्र पर किसी तरह की सीमा नहीं चाहता है। हालांकि, उसी जवाब में यह भी कहा गया था कि भारत के पास परमाणु संयंत्रों को हटाने की विस्तृत क्षमताएं मौजूद हैं। भारत में डीकमीशनिंग रिसर्च रिएक्टर्स जेरलीना और पुर्णिमा के पास पर्याप्त विशेषज्ञता है।

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