
स्टील बनाने की प्रक्रिया के दौरान कोयला आधारित रोटरी भट्ठी तकनीक से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ दाखिल याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आईआईटी खड़गपुर से आठ हफ्तों में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। पीठ ने कहा है कि वह इन आरोपों की सच्चाई पर रिपोर्ट तैयार करें।
एनजीटी में शिकायकर्ता की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि कोयले पर आधारित रोटरी भट्ठी तकनीक के जरिए स्टील बनाने की प्रक्रिया अत्यधिक प्रदूषण पैदा करती है।
शिकायकर्ता की ओर से पेश वकील ने अपनी दलील में कहा कि इस तकनीक से जब लोहे की शुरुआती अवस्था ( डायरेक्टर रीड्यूस्ड ऑयरन यानी डीआरआई) तैयार की जाती है तो उससे काफी प्रदूषण होता है। इसलिए इस प्रक्रिया में कोयले की जगह साफ या हरित ईंधन इस्तेमाल करने वाली तकनीक को ही अपनाना चाहिए।
याचीकर्ता ने अपने पक्ष में फाइनेंसिंग डीकॉर्बोनाइजेशन ऑफ द सेकेंडरी स्टील सेक्टर इन इंडिया नाम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि कार्बन उत्सर्जन घटाने के दो तरीके इसमें बताए गए हैं। पहला तरीका यह है कि जो तकनीकें पुरानी हो चुकी हैं उन्हें थोड़े निवेश में नई, बेहतर तकनीकों से बदला जाए। जैसे डीआरआई , इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस (ईएएफ), इंडक्शन फर्नेस (आईएफ) और री-रोलिंग मिल्स में।
दूसरा, लंबी अवधि का तरीका यह है कि कोयले से चलने वाले डीआरआई प्लांट्स को नेचुरल गैस या हाइड्रोजन से चलने वाली तकनीक में बदला जाए।"
इसके अलावा, वकील ने एक और रिपोर्ट “ डीकॉर्बोनाइजिंग कोल बेस्ड डायरेक्ट रीड्यूस्ड ऑयरन प्रोडक्शन” का जिक्र किया है, जिसमें रोटरी किल्न की कार्यप्रणाली को समझने के लिए गहराई से अध्ययन करने और हीट की बर्बादी को दोबारा उपयोग करने की संभावनाएं (वेस्ट हीट रीकवरी) और इसको अपनाने के लिए प्रोत्साहन देने की बात की गई है। साथ ही कोयले की खपत घटाने के लिए वैकल्पिक ईंधनों (जैसे बायो-फ्यूल) पर पायलट प्रोजेक्ट चलाए जाने की सिफारिश है। साथ ही पेलेट्स के इस्तेमाल से कोयला तो कम लगेगा लेकिन लागत ज्यादा होगी, इस पर आर्थिक अध्ययन करने की सलाह है।
याची ने एक और रिपोर्ट “डीकॉर्बोनाइजेशन ऑप्शन्स फॉर रोटरी किल्न-इंडक्शन फरनेस प्रोसेस ऑफ क्रूड स्टील प्रोडक्शन” का जिक्र करते हुए चार मुख्य उपाय बताए गए हैं जिनसे प्रदूषण कम किया जा सकता है। इसके तहत कहा गया है, ऊर्जा की बचत, जैसे ग्रैविमेट्रिक सेपरेटर लगाने से बिजली की खपत कम होती है। कोयले की जगह बायो-चार जैसे हरित ईंधनों का इस्तेमाल। अच्छी क्वालिटी के कच्चे माल, जैसे डोलोमाइट का उपयोग व कोयले की जगह नेचुरल गैस का इस्तेमाल की बात कही गई है।
वकील ने एक और रिपोर्ट “डीकॉर्बोनाइजिंग इंडिया ” का हवाला देते हुए बताया कि जलवायु परिवर्तन से निपटना पूरी दुनिया की सरकारों की प्राथमिकता है। भारत ने यह लक्ष्य रखा है कि वह 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करेगा। ऊर्जा, कृषि, कचरा, उद्योग आदि क्षेत्र इसमें सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। इनमें सबसे ज्यादा हिस्सा ऊर्जा क्षेत्र का है।
याची ने यह दलील दी कि कोयले पर आधारित रोटरी किल्न्स को हाइड्रोजन या पीएनजी जैसे साफ ईंधनों में बदला जाना जरूरी है ताकि प्रदूषण कम हो।
अदालत ने जवाब देने वाले पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब के बाद मामले की सुनवाई करने को कहा है।