पहाड़ों की नदियां बांधों के संकट से घिरी हैं। चमोली में ऋषि गंगा नदी पर बन रहे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट ने स्थानीय लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इनमें वे लोग भी हैं जिनके पूर्वजों ने चिपको आंदोलन के जरिये जंगल बचाए थे। आज उनकी संतानें ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ़ खड़ी हैं। चिपको आंदोलन के लिए विख्यात चमोली के गौरा देवी के गांव रैणी के लोगों ने इसी मुश्किल के चलते इस वर्ष चिपको आंदोलन की वर्षगांठ भी नहीं मनायी। ऐसा पहली बार हुआ।
रैणी गांव के कुंदन सिंह ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि प्रोजेक्ट के नाम पर सरकार ने उनकी जमीनें ले लीं, उस समय गांव के लोगों को रोजगार का वादा किया गया था। लेकिन आज न तो उन लोगों के पास रोजगार है, न ही जमीन के लिए मुआवजा दिया गया। इसके उलट प्रोजेक्ट के लिए क्षेत्र में की जा रही ब्लास्टिंग से गांवों के अस्तित्व पर भी खतरा आ गया है।
हाईकोर्ट में रैणी गांव के लोगों का पक्ष रखने वाले वकील अभिजय नेगी ने बताया कि वर्ष 2005 में ऋषि गंगा नदी पर पावर प्रोजेक्ट स्थापित किया गया था। इसके साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार और दूसरी सुविधाओं का वादा किया गया था। लोगों से किये गये वादे पूरे नहीं हुए। इससे उलट, पॉवर प्रोजेक्ट के लिए किये जा रहे निर्माण कार्यों की वजह से नंदा देवी बायो स्फेयर रिजर्व एरिया को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। ब्लास्टिंग की वजह से वन्य जीव परेशान हैं और वे भागकर गांवों की ओर आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि नदी किनारे स्टोन क्रशर यूनिट लगाए गए हैं। गांववालों को उस हिस्से में जाने से रोक दिया गया है, जहां गौरा देवी ने कभी पेड़ों को गले लगाया था। याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि प्रोजेक्ट के निर्माण से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, साथ ही चिपको आंदोलन के वन मार्ग को बंद करने से ग्रामीण आहत हैं।
रैणी गांव में अनुसूचित जाति के परिवार रहते हैं। अभिजय कहते हैं कि ये कम पढ़े-लिखे लोग हैं और कंपनी के रोजगार देने के झांसे में आ गए। कंपनी ने गांव के जिन लोगों से शुरू में छोटे-मोटे कार्य कराए, उनका वेतन बकाया रखा और मुआवजे का भुगतान भी नहीं किया गया।
स्थानीय विधायक महेंद्र भट्ट का कहना है कि उन्होंने इस बारे में जिला प्रशासन से बात की थी। वह कहते हैं कि विकास होने चाहिए और ऊर्जा के क्षेत्र में उत्तराखंड को आगे रखना है, लेकिन साथ ही नियमों के मुताबिक कार्य करना चाहिए। इस प्रोजेक्ट को लेकर विधायक कहते हैं कि दिक्कत ये है कि उस क्षेत्र में नियमों को ताक पर रखकर काम किया जा रहा है। उनका कहना है कि हमने प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों से बात की थी कि आप गांव वालों की सहमति से कार्य करें। जिनकी जमीनों का अधिग्रहण किया गया है वे लोग वहां रोजगार चाहते हैं, लेकिन ये एजेंसियां अपने समझौते से मुकर जाती है, इसीलिए ग्रामीणों में रोष है। ये निर्माण करना है तो ग्रामीण क्षेत्र की जनता को विश्वास में लेना पड़ेगा।
ऋषि गंगा नदी पर उत्तराखंड जल विद्युत निगम यानी यूजेवीएन के साथ प्राइवेट कंपनी के भी पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं। यूजेवीन के प्रबंध निदेशक एस.एन. वर्मा का कहना है कि राज्य के पावर प्रोजेक्ट में ब्लास्टिंग का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। यदि कहीं ऐसा किये जाने की सूचना है तो वे इसकी जांच कराएंगे।
नैनीताल हाईकोर्ट ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार, राज्य सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी किया है और तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है।