अक्षय ऊर्जा की बदौलत ऊर्जा क्षेत्र को हुआ 43 लाख करोड़ रूपए का फायदा

नई रिपोर्ट के मुताबिक अक्षय ऊर्जा तापमान में होती वृद्धि को 1.5 सेल्सियस पर सीमित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है
फोटो: आईस्टॉक
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अक्षय ऊर्जा न केवल पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के लिहाज से जरूरी है, साथ ही यह आर्थिक दृष्टिकोण से भी फायदेमंद है। यह जानकारी इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेन्सी (आईआरईएनए) द्वारा जारी नई रिपोर्ट "रिन्यूएबल पावर जेनेरशन कॉस्ट्स इन 2022" में सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2000 के बाद से अक्षय ऊर्जा क्षमता में जो विस्तार हुआ है, उसकी वजह से 2022 में वैश्विक स्तर पर ऊर्जा क्षेत्र के ईंधन खर्च में करीब 43 लाख करोड़ रूपए (52,000 करोड़ डॉलर) की बचत हुई है।

आंकड़ों के अनुसार यदि ओईसीडी से जुड़े देशों को छोड़ दें तो अन्य देशों ने 2022 में अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता में जितना विस्तार किया है उससे उनके जीवनकाल में होने वाले खर्च में 47.9 लाख करोड़ रूपए (58,000 करोड़ डॉलर) की बचत की जा सकती है।

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि प्रत्यक्ष तौर पर पैसों की होने वाली इस बचत के अलावा, अक्षय ऊर्जा क्षमता में किया यह विस्तार बढ़ते उत्सर्जन के साथ-साथ स्थानीय तौर पर वायु प्रदूषण में कटौती करने में भी मददगार होगा।

गौरतलब है कि 2022 में जीवाश्म ईंधन की कीमतों से जुड़ा जो संकट पैदा हुआ था उसने अक्षय ऊर्जा की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा दिया है। इसी का नतीजा है कि 2022 में, करीब 86 फीसदी यानी 187 गीगावाट नई अक्षय ऊर्जा की लागत जीवाश्म ईंधन से पैदा की जा रही बिजली कीमतों की तुलना में कम थी।

देखा जाए तो 2022 के दौरान जीवाश्म ईंधन की लागतों में आया उछाल इस ओर भी इशारा करता है कि अक्षय ऊर्जा किस कदर ऊर्जा सुरक्षा के रूप में मजबूत आर्थिक लाभ प्रदान कर सकती है।

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान यदि अक्षय ऊर्जा क्षमता का विस्तार न किया गया होता तो 2022 में जीवाश्म ईंधन की कीमतों में जो उछाल आया था उसके आर्थिक परिणाम कहीं ज्यादा बदतर हो सकते थे। अनुमान है कि कई सरकारें सार्वजनिक धन की मदद से जो प्रबंधन कर सकती थीं, यह प्रभाव उनकी क्षमता से भी कहीं ज्यादा होते। सरल शब्दों में कहें तो कई सरकारें सार्वजनिक धन का उपयोग करके भी इससे नहीं उबर सकती थी।

इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेन्सी द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट "रिन्यूएबल कैपेसिटी स्टेटिस्टिक्स 2023" के हवाले से पता चला है कि ऊर्जा संकट के बावजूद 2022 अक्षय ऊर्जा के लिए स्वर्णिम वर्ष था। जब अक्षय ऊर्जा क्षमता में रिकॉर्ड 9.6 फीसदी यानी 295 गीगावाट की वृद्धि दर्ज की गई थी।

1.5° सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने में निभा सकती है अहम भूमिका

आंकड़ों की मानें तो 2022 के अंत तक वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 3,372 गीगावाट (जीडब्ल्यू) तक पहुंच गई थी। आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले साल कुल ऊर्जा क्षमता में जो विस्तार किया गया था, उसमें अक्षय ऊर्जा का करीब 83 फीसदी योगदान था।

अपनी इस रिपोर्ट में आईआरईएनए ने वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को कम करने में अक्षय ऊर्जा की भूमिका पर भी प्रकाश डाला है। जो तापमान में होती वृद्धि को 1.5° सेल्सियस पर सीमित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

देखा जाए तो अक्षय ऊर्जा देशों में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को तेजी से कम करने के साथ-साथ शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद कर सकती है। यह इसका न केवल लागत प्रभावी उपाय है साथ ही यह आर्थिक नुकसान को कम करने की भी कुंजी है।

इस बारे में आईआरईएनए के महानिदेशक फ्रांसेस्को ला कैमरा के मुताबिक 2022 अक्षय ऊर्जा की तैनाती का एक अहम मोड़ है। वैश्विक स्तर पर वस्तुओं और उपकरणों की बढ़ती कीमतों के बावजूद अक्षय ऊर्जा पहले से कहीं ज्यादा लागत प्रभावी हुई है। इस दौरान कीमतों में आए ऐतिहासिक उछाल के बावजूद सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों ने कमाल का प्रदर्शन किया था। इसकी सबसे बड़ी वजह पिछले दस वर्षों में सौर और पवन ऊर्जा में हुई पर्याप्त वृद्धि थी।

रिपोर्ट से पता चला है कि 2022 के दौरान विभिन्न देशों में वस्तुओं और उपकरणों की कीमतों में आई मुद्रास्फीति के चलते, लागतों से जुड़े अलग-अलग रुझान सामने आए थे। हालांकि यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो अक्षय ऊर्जा की औसत लागत में गिरावट आई है।

पिछले 13 से 15 वर्षों में सौर और पवन ऊर्जा की वजह से अक्षय ऊर्जा पैदा करने की लागत में कमी आ रही है। 2010 से 2022 के बीच वित्तीय सहायता के बिना भी, सौर और पवन ऊर्जा जीवाश्म ईंधन के मुकाबले में खड़ी है।

सोलर पैनल से बनने वाली बिजली की औसत वैश्विक लागत 89 फीसदी घटकर 0.049 डॉलर प्रति किलोवाट रह गई है। जो दुनिया में सबसे सस्ते जीवाश्म ईंधन विकल्प से भी करीब एक-तिहाई कम है। इसी तरह 2022 में तटवर्ती पवन ऊर्जा की 69 फीसदी घटकर 0.033 डॉलर प्रति किलोवाट रह गई है जो जीवाश्म ईंधन के सबसे सस्ते विकल्प की लागत के आधे से भी कम है।

हालांकि अक्षय ऊर्जा क्षमता में होता विस्तार दुनिया के केवल कुछ गिने-चुने हिस्सों तक ही सीमित है। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल अक्षय ऊर्जा में जो भी वृद्धि हुई है उसका करीब तो तिहाई हिस्सा चीन, अमेरिका और यूरोपियन देशों में दर्ज किया गया है। वहीं अफ्रीका की वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता में हिस्सेदारी केवल एक फीसदी ही है।

उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि आज अक्षय ऊर्जा एक मजबूत आर्थिक विकल्प है, लेकिन इसके बावजूद दुनिया का को 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के ट्रैक पर बने रहने के लिए 2030 तक अक्षय ऊर्जा में हर साल करीब 1,000 गीगावॉट क्षमता का विस्तार करने की जरूरत है। जो 2022 के स्तर तीन गुणा ज्यादा है।

उनके मुताबिक जीवाश्म ईंधन के साथ ऊर्जा प्रणालियों में देखे गए क्रमिक बदलाव के विपरीत, अक्षय ऊर्जा के धीरे-धीरे विकसित होने का समय नहीं है। जैसा कि इस वर्ष दुबई में होने वाले कॉप-28 की तैयारियां चल रही हैं, रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि अक्षय ऊर्जा जलवायु में आते बदलावों का सामना करने का बेहतरीन समाधान है, जो देशों को अपनी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के साथ-साथ लागत प्रभावी कार्रवाई करने का साधन प्रदान करती है।

आईआरईएनए द्वारा जारी नई रिपोर्ट "वर्ल्ड एनर्जी ट्रांसिशन्स आउटलुक 2023: 1.5 डिग्री पाथवे" से पता चला है कि यदि जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना है तो अक्षय ऊर्जा तकनीकों के लिए किए जा रहे निवेश को चौगुना करने की जरूरत है। गौरतलब है कि 2022 में रिन्यूएबल एनर्जी तकनीकों पर करीब 106.89 लाख करोड़ रुपए (1.3 लाख करोड़ डॉलर) का निवेश किया गया था।   

बता दें कि पेरिस समझौते के तहत तापमान में होती वृद्धि को औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। हालांकि देखा जाए तो वैश्विक तापमान में होती वृद्धि पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच चुकी है।

विश्लेषण दर्शाते हैं कि 2050 में बिजली की यह जरूरत बढ़कर 89.8 पेटावाट-घंटा पर पहुंच जाएगी। ऐसे में यदि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना है तो ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी को 91 फीसदी करने की जरूरत है। वहीं जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा को पांच फीसदी पर सीमित करने की जरूरत है।

रिपोर्ट का मानना है कि जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतें, अक्षय ऊर्जा को ऊर्जा उत्पादन का सबसे किफायती विकल्प बना देंगी। अक्षय ऊर्जा उपभोक्ताओं को जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतों के कहर से बचा सकती है, वो जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति की कमी हल कर देंगी और ऊर्जा को पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए कहीं ज्यादा सुरक्षित बना देंगी।

एक डॉलर = 82.65 भारतीय रूपए

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