अगले पांच वर्षों में भारत की अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 86 फीसदी का इजाफा हो सकता है। यह जानकारी इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा बुधवार 01 दिसंबर 2021 को जारी रिपोर्ट में सामने आई है। रिपोर्ट का यह भी कहना है कि अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में वैश्विक स्तर पर 2020 की तुलना में 2026 तक करीब 60 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।
अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 2026 तक अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता 4,800 गीगावाट पर पहुंच जाएगी, जोकि वर्तमान में संयुक्त रूप से जीवाश्म ईंधन और परमाणु ऊर्जा द्वारा पैदा की जा सकने वाली कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता के लगभग बराबर है। रिपोर्ट के मुताबिक 2021 से 2026 तक वैश्विक ऊर्जा उत्पादन क्षमता में जो इजाफा होगा, उसमें 95 फीसदी का योगदान अकेले अक्षय ऊर्जा का होगा। यही नहीं इस वृद्धि में लगभग आधे की हिस्सेदारी केवल सौर ऊर्जा की होगी। देखा जाए तो पर्यावरण और जलवायु के दृष्टिकोण से यह वृद्धि बहुत मायने रखती है।
यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इन आने वाले पांच वर्षों में अक्षय ऊर्जा हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण होगी। यदि 2015 से 2020 की तुलना में 2021 से 2026 के बीच अक्षय ऊर्जा क्षमता में होने वाली वृद्धि को तुलनात्मक रूप से देखें तो इसमें 50 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि होने की सम्भावना है।
रिपोर्ट की मानें तो दुनिया भर में सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय स्रोतों से पैदा हो रही ऊर्जा में तेजी से इजाफा हो रहा है, जिसके आने वाले वर्षों में भी तेजी से बढ़ने की सम्भावना है। अनुमान है कि इस साल अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकती है।
यदि सिर्फ इस साल की बात करें तो अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में करीब 290 गीगावाट का इजाफा हुआ है। जिसका मुख्य कारण सोलर और विंड एनर्जी के क्षेत्र में तेजी से हो रहा विकास है। गौरतलब है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस साल अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में करीब 3 फीसदी का इजाफा हुआ है।
अक्षय ऊर्जा के विकास में सोलर और विंड की होगी मुख्य भूमिका
रिपोर्ट के अनुसार अक्षय ऊर्जा के मामले में सोलर पीवी के क्षेत्र में हो रही वृद्धि बहुत मायने रखती है। 2021 के दौरान सौर ऊर्जा की उत्पादन क्षमता में 17 फीसदी की वृद्धि होने की सम्भावना है, जोकि करीब 160 गीगावाट तक हो सकती है। वहीं 2026 तक पवन ऊर्जा के तीन गुना होने की सम्भावना है।
सोलर पैनल और विंड टरबाइन के निर्माण में उपयोग की जाने वाली सामग्री की बढ़ती लागतों के बावजूद इस क्षेत्र में होने वाली वृद्धि इस बात का सबूत है कि वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा के ऊपर पहले से कहीं ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। रिपोर्ट ने भी इस वृद्धि के लिए सशक्त नीतियों और कॉप-26 में जलवायु लक्ष्यों पर दिए गए जोर को बड़ी वजह माना है। हालांकि रिपोर्ट ने यह बात भी कही है कि नेट जीरो तक पहुंचने के लिए अभी भी इस क्षेत्र पर और ध्यान देने की जरुरत है। देखा जाए तो 2050 तक नेट जीरो एमिशन का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है उसे हासिल करने के लिए विकास की यह गति लगभग आधी है।
अक्षय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता में जो वृद्धि होनी है, देखा जाए तो उसमें चीन का दबदबा बरकरार रहने की सम्भावना है। गौरतलब है कि 2026 तक उसकी कुल सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता 1200 गीगावाट तक पहुंच जाएगी, इस तरह वो 2030 के लिए निर्धारित अपने लक्ष्य को चार साल पहले ही प्राप्त कर लेगा।
इस मामले में भारत भी काफी तेजी से प्रगति कर रहा है। जहां 2015 से 2020 की तुलना में उसकी उत्पादन क्षमता में दोगुनी वृद्धि होने का अनुमान है। इसी तरह यूरोप और अमेरिका में भी अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। गौरतलब है कि यह चारों मिलकर वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में होने वाले विस्तार के करीब 80 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
देश की अक्षय ऊर्जा में हो सकती है 121 गीगावाट की बढ़ोतरी
आईईए द्वारा जारी इस हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि जिस तरह भारत सरकार अक्षय ऊर्जा का समर्थन कर रही है, उसके चलते देश की अक्षय ऊर्जा की वर्तमान क्षमता में 2026 तक करीब 121 गीगावाट का इजाफा हो सकता है।
रिपोर्ट में इस बात की सम्भावना व्यक्त की गई गई है कि अगले पांच वर्षों में देश की वर्तमान क्षमता में करीब 86 फीसदी की वृद्धि हो सकती है। इस वृद्धि में 74 फीसदी का योगदान सौर ऊर्जा और 16 फीसदी का पवन ऊर्जा का होगा। हालांकि कोविड -19 के कारण उपजे संकट के चलते 2020 के दौरान भारत में अक्षय ऊर्जा के विस्तार में 44 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी।
गौरतलब है कि देश में अक्षय ऊर्जा की वर्तमान क्षमता करीब 154.9 गीगावाट है। यही नहीं देश में स्थापित कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 26 फीसदी से ज्यादा है, जबकि हाइड्रोपावर की करीब 12 फीसदी है, इस तरह देखा जाए तो देश की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में स्वच्छ स्रोतों की हिस्सेदारी 38 फीसदी से ज्यादा है।
आज दुनिया में अक्षय ऊर्जा के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है। हालांकि इसके बावजूद अभी भी हम अपनी ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों के लिए काफी हद तक कोयले और जीवाश्म ईंधन (60.2 फीसदी) पर निर्भर है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत की मंशा 2022 तक अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को बढाकर 175 गीगावाट करने की है। यदि भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो पिछले 5 वर्षों के दौरान देश में अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 226 फीसदी का इजाफा हुआ है।
आईईए के कार्यकारी निदेशक फातिह बिरोल के अनुसार भारत में अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में जो प्रगति हो रही है, वो शानदार है। यह प्रगति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि भारत 2030 तक अपने अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता के 500 गीगावाट के लक्ष्य की ओर अग्रसर है। साथ ही यह स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी लाने की भारत की क्षमता को भी उजागर करता है।