भारत में कोयले से पैदा होने वाली बिजली में 5 फीसदी की गिरावट

ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिपोर्ट 2021 के मुताबिक, भारत में सौर और पवन ऊर्जा की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है
भारत में कोयले से पैदा होने  वाली बिजली में 5 फीसदी की गिरावट
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भारत में कोयला आधारित बिजली में 2020 के दौरान करीब 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं यदि सोलर और विंड एनर्जी की बात करें तो उसकी कुल ऊर्जा क्षेत्र में हिस्सेदारी 8.9 फीसदी पर पहुंच गई है जोकि वैश्विक औसत 9.4 फीसदी से थोड़ी ही कम है। यह जानकारी हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (यूके) आधारित ऊर्जा और जलवायु अनुसंधान समूह एम्बर द्वारा जारी रिपोर्ट ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिपोर्ट 2021 में सामने आई है।

रिपोर्ट की मानें तो पिछले पांच वर्षों में इनमें करीब तीन गुना वृद्धि हुई है। भारत में 2015 के दौरान जहां 39 टेरावाट-घंटे विंड और सोलर एनर्जी पैदा की गई थी वो 2020 में बढ़कर 119 टेरावाट-घंटे हो गई थी। हालांकि इस दौरान उसकी विकास दर में काफी कमी आई है। जहां 2016 में इसमें 40 फीसदी की दर से वृद्धि हो रही थी वो 2020 में घटकर 8.9 फीसदी रह गई है। वहीं चीन में यह 9.5 फीसदी, जापान में 10.1 फीसदी, ब्राजील में 10.6 फीसदी, अमेरिका में 11.6 फीसदी और तुर्की में 12 फीसदी थी। वहीं जर्मनी में यह 32.7 फीसदी और यूके में 28.5 फीसदी थी।

यदि 2020 के दौरान भारत में बिजली की मांग की बात करें तो उसमें करीब 2 फीसदी की गिरावट आई है। जबकि सौर ऊर्जा की मांग 27 फीसदी बढ़ गई है। हालांकि यदि पिछले 5 वर्षों की बात करें तो इस अवधि में भारत की बिजली की मांग में 18 फीसदी बढ़ी है। वहीं उत्पादन भी 18 फीसदी बढ़ा है। जिसकी करीब 26 फीसदी जरुरत सौर ऊर्जा और 14 फीसदी पवन ऊर्जा से पूरी हो रही है। यदि कुल अक्षय ऊर्जा की बात करें तो इस बढ़ती मांग का करीब 57 फीसदी हिस्सा उसी से पूरा हो रहा है इसके बावजूद 43 फीसदी के लिए जीवाश्म ईंधन की जरुरत पड़ती है जिसमें ज्यादातर हिस्सा कोयला आधारित बिजली से पूरा होता है।

अभी भी भारत अपनी 71 फीसदी ऊर्जा सम्बन्धी जरूरतों के लिए कोयले पर ही निर्भर है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में अक्षय ऊर्जा में वृद्धि हुई है। इसके बावजूद भारत को इनपर और ध्यान देने की जरुरत है। जहां भारत ने 2022 तक 175 गीगावाट और 2030 तक 450 गीगावाट बिजली उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा है वो काफी बड़ा है। हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्लू) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को यदि 2050 तक भारत अपने एमिशन को नेट-जीरो करना है तो उसे अपनी 83 फीसदी बिजली रिन्यूएबल स्रोतों से प्राप्त करनी होगी। यदि देश के ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, तेल आदि के योगदान की बात करें तो 2015 में 73 फीसदी ऊर्जा इन्हीं स्रोतों से प्राप्त होती थी। जिसे 2050 तक घटाकर 5 फीसदी पर लाना होगा। यह लक्ष्य आसान नहीं है, पर नामुमकिन भी नहीं है।

दुनिया की 53 फीसदी कोयला आधारित बिजली उत्पन्न करता है अकेला चीन

यदि दुनिया में कोयला आधारित बिजली की बात करें तो उसमें चीन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया की 53 फीसदी कोयला आधारित बिजली चीन ही पैदा करता है, जोकि 2015 की तुलना में करीब 9 फीसदी ज्यादा है। गौरतलब है कि 2015 में चीन दुनिया की करीब 44 फीसदी बिजली उत्पन्न करता था।

चीन में कोयला आधारित बिजली को देखें तो वो 2019 की तुलना में करीब 1.7 फीसदी बढ़ी है जोकि करीब 77 टेरावाट-घंटे हैं। यही नहीं चीन विंड और सोलर के क्षेत्र में भी तेजी से प्रगति कर रहा है। पिछले वर्ष उसके पवन ऊर्जा उत्पादन में रिकॉर्ड 71.7 गीगावाट और सौर ऊर्जा में 48.2 गीगावॉट की वृद्धि दर्ज की गई है। यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि चीन ने 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों के अपने उत्सर्जन को चरम पर लाने की बात कही है साथ ही 2060 तक अपने नेट एमिशन को शून्य करना है।

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