
भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए एक केंद्रीय मूल्य निर्धारण प्रणाली को समाप्त कर दिया है, क्योंकि डेवलपर्स ने चिंता जताई थी कि यह बिजली सौदों को धीमा कर रही है।
ऊर्जा मंत्रालय ने एक अगस्त, 2025 को यह आदेश जारी किया है। ऊर्जा मंत्रालय ने कहा कि वह सौर ऊर्जा केंद्रीय पूल और सौर-पवन हाइब्रिड केंद्रीय पूल को भंग कर रहा है। ये पूल फरवरी 2024 में बनाए गए थे ताकि तीन साल की अवधि के लिए स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के टैरिफ को मानकीकृत किया जा सके।
जारी सूचना में कहा गया, "बड़ी मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता पीएसए साइन होने का इंतजार कर रही है और तैनाती को तेज करने के लिए यह निर्णय लिया गया है। कि 14 फरवरी, 2024 को जारी यूआरईटी तंत्र के कार्यान्वयन से संबंधित आदेश को वापस लिया जाता है। इसके साथ ही सौर पावर सेंट्रल पूल और सोलर-विंड हाइब्रिड सेंट्रल पूल तत्काल प्रभाव से भंग किए जाते हैं।"
ये पूल एक समान नवीकरणीय ऊर्जा टैरिफ (यूआरईटी) तंत्र का हिस्सा थे, जिसका उद्देश्य खरीदारों को कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाना था।
हालांकि, डेवलपर्स और सरकारी नवीकरणीय एजेंसियों ने चिंता जताई कि खरीदार अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने में हिचकिचा रहे थे, क्योंकि तीन साल तक भविष्य के टैरिफ को लेकर अनिश्चितता थी।
भारत के पास नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं की बड़ी पाइपलाइन है जो बिजली बिक्री समझौतों का इंतजार कर रही हैं। मंत्रालय ने कहा कि आगे और देरी से बचने के लिए वह इस आदेश को वापस ले रहा है।
भारत की फंसी हुई नवीकरणीय बिजली क्षमता खासतौर से ऐसी परियोजनाएं जिनको मंजूरी मिल चुकी है लेकिन जो चालू नहीं हो पाई हैं उनकी संख्या पिछले नौ महीनों में दोगुने से ज्यादा हो गई है। इसका कारण अधूरी ट्रांसमिशन लाइनें, कानूनी और नियामकीय देरी हैं।
हालांकि ये पूल अब अस्तित्व में नहीं रहेंगे, सरकार ने कहा कि इस योजना के तहत पहले से प्राप्त बोलियां और जारी पत्र वैध बने रहेंगे।
29 दिसंबर 2022 को अधिसूचित किए गए विद्युत (संशोधन) नियम, 2022 का अनुपालन करते हुए ऊर्जा मंत्रालय ने यूआरईटी तंत्र लागू करने और इसके तहत सौर पावर सेंट्रल पूल तथा सोलर-विंड हाइब्रिड सेंट्रल पूल को 15 फरवरी, 2024 से अगले तीन साल की अवधि (यानी 14.02.2027 तक के लिए शुरू किया था।
मंत्रालय के मुताबिक, यूआरईटी तंत्र और संबंधित केंद्रीय पूल इस उद्देश्य से अधिसूचित किए गए थे कि नीलामी में घटती कीमतों के प्रभाव से खरीदारों को सुरक्षा मिले। लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा क्रियान्वयन एजेंसियों और डेवलपर्स ने यह चिंता जताई कि तीन साल की अवधि में टैरिफ को लेकर अनिश्चितता के कारण खरीदार यूआरईटी के तहत पीएसए (पावर सेल एग्रीमेंट) साइन करने में हिचकिचा रहे थे।
मंत्रालय ने कहा है, इनके तहत प्राप्त बोलियां और जारी किए गए लेटर ऑफ अवॉर्ड स्वतंत्र रूप से वैध रहेंगे और इन पर पीएसए/पीपीए साइन किए जा सकते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा क्रियान्वयन एजेंसियां इन बोलियों के लिए खरीदारों/डेवलपर्स के साथ पीएसए/पीपीए साइन करने की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकती हैं।
पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) और पावर सेल एग्रीमेंट (पीएसए) दोनों ही बिजली आपूर्ति से जुड़े अनुबंध हैं। पीपीए बिजली उत्पादक (जैसे सौर परियोजना डेवलपर) और खरीदार (जैसे एसईसीआई या किसी डिस्कॉम) के बीच होता है, जिसमें तय होता है कि कितनी बिजली किस कीमत पर कितने समय तक सप्लाई की जाएगी।
वहीं पीएसए आमतौर पर एसईसीआई जैसी एजेंसी और अंतिम खरीदार यानी राज्य की डिस्कॉम या अन्य संस्था के बीच होता है। मतलब, एसईसीआई पहले डेवलपर से बिजली खरीदने के लिए पीपीए करती है और फिर उसे राज्यों या खरीदारों को बेचने के लिए पीएसए साइन करती है। इन दोनों समझौतों का उद्देश्य बिजली आपूर्ति और भुगतान की लंबी अवधि के लिए गारंटी सुनिश्चित करना है।