75 हजार करोड़ रुपये के कर्ज और भारी आर्थिक तंगहाली से गुजर रहे हिमाचल सरकार को बड़ा झटका लगा है। हिमाचल हाईकोर्ट ने हिमाचल सरकार की ओर से हाइड्रो पावर प्रोजेक्टस पर लगाए गए वाटर सेस को अवैध करार दिया है।
हाईकोर्ट के न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान की खंडपीठ ने अपने 100 पन्नों के आदेशों में कहा कि पावर जनरेशन को लेकर लगने वाला टैक्स केंद्र सरकार के दायरे में आता है, इसलिए राज्य सरकार इस तरह का सेस नहीं लगा सकती है।
हिमाचल सरकार की ओर से प्रदेश में 170 से अधिक पावर कंपनियों को वाटर सेस को लेकर पिछले वर्ष बिल जारी किए गए थे। जिसके खिलाफ हाइड्रो पावर की 40 सरकारी और निजी कंपनियों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
इस याचिका पर मंगलवार को आया फैसला सरकारी और निजी कंपनियों के हक में रहा है। हाईकोर्ट ने वाटर सेस एक्ट 2023 को गलत ठहराया है और पावर प्रोजेक्टस कंपनियों से वसूले गए वाटर सेस की रकम को चार सप्ताह में वापस करने के दिए आदेश दिए हैं।
हिमाचल के एडवोकेट जनरल अनूप रत्न का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अब राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में जाएगी और अपने आय को साधने को बढ़ाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को पूरजोर से कोर्ट के समक्ष रखेगी।
उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार ने पावर प्रोजेक्टस कंपनी द्वारा बहते हुए पानी के प्रयोग पर वाटर सेस लगाया था। लेकिन कोर्ट ने सरकार की दलीलों को स्वीकार नहीं किया है। अब हम अपनी खारिज की गई दलीलों को नए सिरे से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखेंगे।
इससे पहले भी केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष सभी राज्यों को वाटर सेस को अवैध और असंवैधानिक बताते हुए शीघ्र बंद करने को लेकर पत्र लिखा था। इस पत्र में केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 286,287 और 288 के बारे में जानकार देते हुए बिजली उत्पादन पर वाटर सेस व अन्य शुल्क लगाने को राज्य के क्षेत्राधिकार से बाहर बताया था। लेकिन बावजूद इसके हिमाचल सरकार ने पिछले वर्ष विधानसभा में वाटर सेस को लेकर विधेयक पारित कर राज्य जल उपकर आयोग की भी स्थापना की थी और यही राज्य जल उपकर आयोग पावर प्रोजेक्टस कंपनियों से वाटर सेस लेने का काम कर रहा था।
हिमाचल सरकार की ओर से पिछले वर्ष प्रदेश में चल रहे 170 से अधिक पावर प्रोजेक्टस पर वाटर सेस लेने की दर 0.06 से लेकर 0.30 रुपये प्रति घन मीटर तय की थी। राज्य जल उपकर आयोग की ओर से पिछले वर्ष सितबंर में बीबीएमबी, एसजेवीएनएल, एनएचपीसी समेत सभी कंपनियों को बिल जारी किए थे। जिसमें से 23 प्रोजेक्टों एवं एजेंसियों से 34 करोड़ रुपए वाटर सेस के तौर पर एकत्रित किया जा चुका है।