सौर अपशिष्ट के रीसाइक्लिंग के लिए गुजरात की नई योजना

गुजरात ऊर्जा विकास एजेंसी (जीईडीए) द्वारा राज्य में सौर अपशिष्ट रीसाइक्लिंग के लिए निविदाएं आमंत्रित
Photo: Meeta Ahlawat
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गुजरात ऊर्जा विकास एजेंसी (जीईडीए) ने राज्य में सौर अपशिष्ट पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) के लिए निविदा (टेंडर) आमंत्रित की हैं। इसके लिए एक निश्चित मानदंड तैयार करने के लिए एक व्यापक योजना बनाई गई है।

इस योजना के अंतर्गत सौर व इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से निकलने वाली मूल्यवान सामग्री पर विभिन्न अनुसंधान संगठन अध्ययन करेंगे। ध्यान रहे कि गुजरात में सबसे अधिक संख्या में सौर मॉड्यूल निर्माता हैं।

इसके अलावा यहां कई बड़ी सौर परियोजनाएं भी चल रही हैं। इस संबंध में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायमेंट के नवीकरणीय ऊर्जा विभाग के कार्यक्रम प्रबंधक बिनीत दास का कहना है कि गुजरात द्वारा सौर अपशिष्ट पुनर्चक्रण के लिए मानदंड तैयार करने की पहल समयानुकूल और सराहनीय दोनों है। विशेषकर राज्य की स्थिति को देखते हुए जो एक विनिर्माण केंद्र और सौर क्षमता परिनियोजन में अग्रणी की भूमिका निभा रहा है।

जीईडीए की इस पहल का प्रमुख उद्देश्य है कि एक मजबूत, पर्यावरण के अनुकूल पुनर्चक्रण का ढांचा तैयार किया जाए। इसका कारण है कि भारत में तेजी से बढ़ते सौर ऊर्जा क्षेत्र में सौर पैनलों की समयाअवधि खत्म हो रही है और इसके चलते बड़े पैमाने पर सौर अपशिष्ट पैदा हो रहा है। दास कहते हैं कि पुनर्चक्रण व्यवहार्यता और सामग्री पुनर्प्राप्ति विधियों का आकलन करने के लिए राज्य का सक्रिय दृष्टिकोण को बताता है। हालांकि यहां यह भी कहना ठीक होगा कि यदि लागू करने योग्य विनियमन, उद्योग खरीद और बुनियादी ढांचे के समर्थन का पालन नहीं किया जाता है तो इस पहल का दायरा सीमित रह सकता है। जीईडीए का फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान पर जोर तकनीकी रूप से सही है।

जीईडीए ने गांधीनगर स्थित अपने मुख्यालय में तकनीकी रूप से सक्षम और वित्तीय रूप से मजबूत फर्मों को विभिन्न प्रकार के सौर पैनलों और ई-कचरे में पाए जाने वाले सिलिकॉन, तांबा, चांदी, एल्यूमीनियम और दुर्लभ धातुओं सहित पुनर्चक्रण सामग्री पर व्यवहार्यता रिपोर्ट और शोध अध्ययन तैयार करने के लिए आमंत्रित किया है।

ध्यान रहे कि शोध का दायरा विभिन्न फोटोवोल्टिक प्रौद्योगिकियों तक फैला हुआ है, जिसमें कैडमियम टेल्यूराइड (सीडीटीई) और सीआईजीएस, क्रिस्टलीय सिलिकॉन पैनल और टॉपकॉन सेल का उपयोग करने वाले पतले पैनल भी शामिल हैं, जिन्हें उनकी बहु परतीय संरचनाओें के कारण विशेष प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है।

जीईडीए ने कहा कि इस परियोजना में अपशिष्टों का व्यापक स्तर पर नमूने लिए जाएंगे। विशेष रूप से क्षतिग्रस्त  सौर मॉड्यूल से पृथक्करण तकनीकों का परीक्षण करने के लिए। ऐसा अनुमान है कि इस परियोजना से एक विस्तृत शोध पत्र सामने आने की उम्मीद है। जिसमें सबसे कुशल पुनर्प्राप्ति विधियों के अलावा गुजरात और अंततः पूरे देश में ऐसी प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने की आर्थिक व्यवहार्यता के पहलुओं को रेखांकित किया जाएगा।

एजेंसी के अनुसार अध्ययन सुरक्षित विघटन, नियामक अनुपालन, पर्यावरण मानकों और श्रमिक सुरक्षा प्रोटोकॉल को कवर करने वाले दिशा-निर्देशों के निर्माण में भी योगदान देगा। इसके अलावा एक नियामक मौजूदा राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कानूनों का भी आकलन करेगी और गुजरात में सौर अपशिष्ट रीसाइक्लिंग के बुनियादी ढांचे को सक्षम करने के लिए आवश्यक किसी भी नीतिगत बदलाव की सिफारिश करेगी।

भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तक पहुंचना है। ऐसे में वर्तमान में वह एक गंभीर सौर अपशिष्ट समस्या का सामना कर रहा है। उद्योग के अनुमान बताते हैं कि इस दशक के अंत तक दसियों हजार टन पैनल अपशिष्ट के रूप में जमा हो सकते हैं। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि वित्तीय वर्ष 2023 तक भारत की स्थापित 66.7 गीगावाट क्षमता ने लगभग 100 किलोटन अपशिष्ट उत्पन्न किया। अनुमान लगया है कि कि आगामी 2030 तक यह बढ़कर 340 किलोटन हो जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत का संचयी सौर अपशिष्ट 2030 और 2050 के बीच 32 गुना बढ़ जाएगा।

अंत में दास कहना है कि इस योजना को सफल बनाने के लिए केंद्रीय विद्युत मंत्रालय, केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, सेंट्ल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड और राज्य की एजेंसियों के बीच तत्काल नीतिगत सामंजस्य की आवश्यकता है। उनका कहना है कि सही मायने में नेतृत्व करने के लिए गुजरात को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा नीतियों में सर्कुलर अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को शामिल करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रीसाइक्लिंग उसके स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण की कमजोरी न बन जाए।

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