
यूरोप के फॉर्मूला सीजन 1 की रेस में उत्सर्जन को कम करने के लिए बड़ा कदम उठाया जा रहा है। दरअसल 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह खत्म करने का लक्ष्य है। इस सीजन में रेस कारें तो ट्रैक पर दौड़ेंगी, लेकिन उनके पीछे की पूरी व्यवस्था अब कहीं ज्यादा हरित और टिकाऊ होगी।
ट्रकों में बायोफ्यूल, पिट और पैडॉक में सोलर पैनल, बैटरियों से बिजली और हर रेस के साथ कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती का दावा किया गया है।
इस बार यूरोप में होने वाली नौ रेसों की शुरुआत 2025 के एमिलिया-रोमाग्ना ग्रां प्री से होगी, जहां पहली बार पूरे पैडॉक एरिया को अक्षय ऊर्जा से चलने वाली सेंट्रल सिस्टम से बिजली मिलेगी। इससे करीब 90 फीसदी तक कार्बन उत्सर्जन घटने की उम्मीद है।
यह सिस्टम एचवीओ यानी हाइड्रोट्रीटेड वेजिटेबल ऑयल (वनस्पति तेल से बना जैविक ईंधन), सौर पैनलों और बैटरी एनर्जी स्टोरेज से चलेगा। मतलब अब हर टीम को अपना जनरेटर नहीं लाना पड़ेगा, जिससे ट्रकिंग और डीजल पर निर्भरता कम होगी।
सिर्फ बिजली ही नहीं, सामान ढोने वाले ट्रक भी अब पर्यावरण के अनुकूल हो चुके हैं। डीएचएल ने इस बार फिर से 37 बायोफ्यूल ट्रकों को यूरोप में रेस सामग्री पहुंचाने के लिए तैयार किया है। 2023 में जब इन ट्रकों का इस्तेमाल किया गया था, तो पारंपरिक डीजल ट्रकों के मुकाबले लॉजिस्टिक्स से जुड़े उत्सर्जन में 83 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज हुई थी।
इसी तरह, फॉर्मूला 2 और फॉर्मूला 3 रेस कारें अब 100 फीसदी टिकाऊ ईंधन पर दौड़ रही हैं। पहले इनमें 55 फीसदी ही ऐसा ईंधन इस्तेमाल होता था। यह वही ईंधन है जिसे 2026 से फॉर्मूला 1 की मुख्य कारों में भी लाया जाएगा। इस ईंधन की खास बात यह है कि इसे सड़क पर चलने वाली गाड़ियों में भी बिना कोई बदलाव किए इस्तेमाल किया जा सकता है। यानी यह सिर्फ रेसिंग का भविष्य नहीं, आम लोगों के लिए भी टिकाऊ समाधान बन सकता है।
इसके अलावा, फ्लाईअवे रेस (जिनमें टीमें हवाई जहाज से जाती हैं) के लिए भी फॉर्मूला 1 ने टिकाऊ एविएशन फ्यूल (एसएएफ) में भारी निवेश किया है, जिससे हर फ्लाइट से जुड़ा कार्बन उत्सर्जन 80 फीसदी तक घटेगा।
डीएचएल और कतर एयरवेज के साथ मिलकर की गई इस पहल से 2024 में 8,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन में कटौती की है।
वहीं, फॉर्मूला 1 की ईएसजी प्रमुख एलेन जोन्स ने कहा, "हमारी वैकल्पिक ईंधन रणनीति से यूरोपीय सीजन में जो बदलाव दिख रहे हैं, वो वाकई उत्साहजनक हैं। हम 2030 तक नेट जीरो का लक्ष्य पूरा करने की राह पर हैं और ये नई तकनीकें और साझेदारियां इस सफर को मुमकिन बना रही हैं। अच्छा ये है कि रेसिंग का रोमांच या फैंस का अनुभव, कहीं से भी कम नहीं हुआ।"