हाइड्रोजन से मोबिलिटी : शोध में चेताया कि ईयू के बाध्यकारी कानून से बड़ा घाटा संभव

शोधकर्ताओं ने 600,000 से अधिक मालवाहक मार्गों के आंकड़ों के आधार पर एक परिष्कृत मॉडल विकसित किया है, जो यह दर्शाता है कि 2050 तक हाइड्रोजन-आधारित लंबी दूरी के ट्रकों के लिए किस क्षेत्र में सबसे अधिक मांग होगी
शोध पत्र में कहा गया है कि हीलियम के लिए जांच-पड़ताल संबंधी रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है और हाइड्रोजन के लिए एक समान 'पहला सिद्धांत' के नजरिए को अपनाया जा सकता है।
शोध पत्र में कहा गया है कि हीलियम के लिए जांच-पड़ताल संबंधी रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है और हाइड्रोजन के लिए एक समान 'पहला सिद्धांत' के नजरिए को अपनाया जा सकता है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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यूरोपीय संघ (ईयू) ने 2030 तक हर 200 किलोमीटर पर हाइड्रोजन रिफ्यूलिंग स्टेशन और हर शहरी नोड में कम से कम एक स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य तय किया है। यह प्रयास वैकल्पिक ईंधनों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को तैयार करने के तहत हो रहा है, जिससे लंबी दूरी के भारी मालवाहक वाहनों को हाइड्रोजन ईंधन से संचालित किया जा सके। इस दिशा में अलट्रानेटिव फ्यूल्स इंफ्रास्ट्रक्चर रेगुलेशन (एएफआईआर) नामक कानून 2023 में लागू किया जा चुका है। यह यूरोपीय संघ का एक कानून है, जो वैकल्पिक ईंधनों जैसे हाइड्रोजन और बिजली के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे की योजना और निर्माण को बाध्यकारी बनाता है।

वहीं, स्वीडन के चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के एक नए अध्ययन ने इस दिशा में नियोजित योजना पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का दावा है कि ईयू के नियम देशीय मांग, भौगोलिक विविधता और यातायात के प्रकार को पर्याप्त रूप से ध्यान में नहीं रखते। इसके चलते करोड़ों यूरो के नुकसान की आशंका है, खासकर उन देशों में जहां यातायात प्रवाह बहुत कम है लेकिन कानून उन्हें बड़े निवेश के लिए बाध्य करता है।

शोधकर्ताओं ने 600,000 से अधिक मालवाहक मार्गों के आंकड़ों के आधार पर एक परिष्कृत मॉडल विकसित किया है, जो यह दर्शाता है कि 2050 तक हाइड्रोजन-आधारित लंबी दूरी के ट्रकों के लिए किस क्षेत्र में सबसे अधिक मांग होगी और ईयू के वर्तमान मानदंडों से किन देशों में अत्यधिक निवेश हो सकता है जो शायद ज्यादा उपयोग में ही न आए।

चाल्मर्स के यांत्रिकी और समुद्री विज्ञान विभाग के शोध छात्र जोएल लोफ्विंग के अनुसार, “ईयू की नीति केवल दूरी पर आधारित है, लेकिन देशों में यातायात का घनत्व भिन्न होता है। उदाहरण के लिए हमारे मॉडल के अनुसार 2050 तक फ्रांस में आवश्यक हाइड्रोजन अवसंरचना क्षमता ईयू द्वारा निर्धारित लक्ष्य से सात गुना अधिक होगी। ऐसे में एएफआईआर एक शुरुआती कदम हो सकता है, लेकिन इसे सुधार की आवश्यकता है।”

शोध यह बताता है कि बुल्गारिया, रोमानिया और ग्रीस जैसे देशों में बहुत कम यातायात प्रवाह होने के बावजूद, वहां भी भारी निवेश के निर्देश एएफआईआर के तहत दिए गए हैं। इस तरह के निवेश का उपयोग नहीं होने की स्थिति में हर साल दसियों मिलियन यूरो की लागत पर निष्प्रभावी बुनियादी ढांचा खड़ा हो सकता है।

शोध में कहा गया है कि इसमें केवल दूरी और ट्रैफिक वॉल्यूम ही नहीं, बल्कि यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी से प्राप्त स्थलाकृतिक आंकड़ों को भी शामिल किया गया है। पहाड़ी या ऊबड़-खाबड़ इलाकों में ट्रकों की ऊर्जा खपत फ्लैट इलाकों की तुलना में बहुत अधिक होती है, जिसे पारंपरिक औसत ऊर्जा खपत के मॉडल में नहीं गिना जाता। लोफ्विंग कहते हैं, “ऊंचाई और गति जैसे तत्वों को शामिल करने से ऊर्जा की मांग के ज्यादा सटीक प्रोफाइल मिलते हैं, जिससे अवसंरचना की असली जरूरत समझ में आती है।”

शोध का फोकस खासतौर पर 360 किलोमीटर से अधिक दूरी वाले लॉन्ग हॉल ट्रैफिक पर रहा है, क्योंकि अल्प दूरी के लिए भविष्य में बैटरी चालित ट्रक पर्याप्त माने जा रहे हैं। लंबी दूरी पर हाइड्रोजन की भूमिका को लेकर अध्ययन भविष्य की तकनीकी दिशा को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।

यह मॉडल 2030 के ईयू लक्ष्यों से आगे की सोचता है और 2050 तक टिकाऊ ढांचे के निर्माण की संभावनाएं तलाशता है। अध्ययन पहले ही स्वीडन और ईयू की राजनीतिक चर्चाओं में शामिल हो चुका है, जहां हाइड्रोजन आधारित अवसंरचना को लेकर योजनाएं बन रही हैं।

जोएल लोफ्विंग कहते हैं, “हमने 2026 में एएफआईआर के मूल्यांकन के लिए ईयू स्तर पर इनपुट दिया है। मेरी आशा है कि हमारी रिपोर्ट कानून निर्माण की प्रक्रिया को देश विशेष की परिस्थिति के अनुसार संवेदनशील बनाने में मदद करेगी। स्वीडन जैसे देशों के लिए एएफआईआर एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन महंगी तकनीक में निवेश हमेशा जोखिम भरा होता है। हमारी दीर्घकालिक सोच ने यह चर्चा शुरू करने में योगदान दिया है कि कैसे एक आर्थिक रूप से टिकाऊ ईंधन नेटवर्क तैयार किया जा सकता है, जो अंततः भारी हाइड्रोजन वाहनों के लिए एक सुसंगत बाजार विकसित कर सके।”

यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ हाइड्रोजन एनर्जी में प्रकाशित हुआ है और इसके लेखक जोएल लोफ्विंग, सेल्मा ब्रायनॉल्फ और मारिया ग्रान हैं, जो सभी चाल्मर्स विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। यह शोध टेक फॉर हाइड्रोजन परियोजना के अंतर्गत हुआ है, जो भारी वाहनों के लिए बहुविषयक हाइड्रोजन अनुसंधान को बढ़ावा देने वाली एक केंद्रित पहल है। यह उस व्यापक शोध कार्यक्रम का भी हिस्सा है जो परिवहन क्षेत्र में हाइड्रोजन संक्रमण के प्रणालीगत प्रभावों का विश्लेषण करता है।

शोध में चेताया गया है कि हाइड्रोजन ढांचे की योजना अगर केवल दूरी आधारित रही तो यह यूरोपीय परिवहन क्षेत्र को भारी आर्थिक बोझ और अक्षमता की ओर ले जा सकती है।

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