कोयले की खपत के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है भारत

एक ओर जहां कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने की बात हो रही है, वहीं भारत कोयले की खपत करने में दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है
Photo: Wikimedia commons
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जलवायु परिवर्तन की चुनौती को देखते हुए कोयले को दुनिया की अर्थव्यवस्था से बाहर करने की आवश्यकता है। यह तभी संभव है जब सामाजिक उद्देश्य और स्थानीय हितधारक इस प्रक्रिया में शामिल हों। शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय समूह का कहना है कि कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा सकता है। इसके लिए श्रमिकों, कोयले का उपयोग करने वाले विभिन्न क्षेत्रों और उद्योगों को शामिल करने के लिए एक रोडमैप बनाने की आवश्यकता है। इसके लिए सभी का सहमत होना जरूरी है।

शोधकर्ताओं का तर्क है कि कोयला हटाने को निष्पक्ष रूप से देखा जाना चाहिए और इसमें राजनीतिक वास्तविकताओं का ध्यान रखना चाहिए। इसको हटाने से प्रभावित होने वाले लोगों/समूहों को प्रभावी रूप से क्षतिपूर्ति करनी चाहिए।  

यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन बर्लिन में मर्केटर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं और ऑस्ट्रेलिया, यूके, जर्मनी, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

भारत में कोयले का उपयोग

हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अध्ययन में कहा गया है कि 60 प्रतिशत उत्सर्जन कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से होता है जबकि इनमें से 70 फीसदी 2022 तक उत्सर्जन के मानकों को पूरा नहीं कर पाएंगे। अध्ययन के अनुसार, कुल बिजली उत्पादन का 56 फीसदी हिस्सा कोयले पर निर्भर होता है, इसलिए भारत की ऊर्जा के क्षेत्र में कोयले की अहम भूमिका है।

मानकों को पूरा करने के लिए 5 वर्ष से अधिक का समय दिए जाने के बावजूद बिजली संयंत्रों द्वारा इन्हें पूरा नहीं किया गया। इस पर सीएसई ने पर्यावरण मंत्रालय से दिशानिर्देश जारी करने की सिफारिश की है। इसमें समय पर मानकों को पूरा न करने वाले बिजली संयंत्रों पर अधिक जुर्माना लगाने, ऐसे संयंत्रों को बंद करने का नोटिस देने की बात कही गई है। पुराने संयंत्र जो उत्सर्जन नियमों को लागू नहीं कर सकते हैं, इन्हें हटाना चाहिए या इनमें तकनीकी सुधार किया जाना चाहिए। पानी के इस्तेमाल को लेकर बनाए गए नियम को लागू किया जाना चाहिए।

सीएसई के अनुसार, नियमों मे बदलाव होना चाहिए ताकि जो बिजली संयंत्र प्रदूषण नहीं फैला रहे हैं, अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं उन्हें पुरस्कृत किया जा सके। इसके विपरीत नियमों की अनदेखी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।

ऑस्ट्रेलिया में कोयले का उपयोग हमेशा से ही होता रहा है। अब अक्षय ऊर्जा नए संयंत्रों से बिजली उत्पादन का सबसे सस्ता तरीका बन गया है। ऑस्ट्रेलिया का कोयला सबसे अधिक बिजली संयंत्रों में उपयोग होता है, जो काफी पुराना है। द ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (एएनयू) के अध्ययनकर्ता प्रोफेसर फ्रैंक जोत्जो ने कहा कि अब यूरोप और उत्तरी अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में भी कोयले का उपयोग काफी तेजी से कम हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया के हेजलवुड और लिडेल कोयला संयंत्र के नियोजित तरीके से बंद करने पर विवाद हो सकता है। कोयले के इस संयंत्र को किसी दूसरे में परिवर्तित करना मुश्किल है। वह कहते हैं कि अन्य देशों के अनुभवों से सीख लेते हुए हमें वैकल्पिक व्यावसायिक गतिविधि को लागू करने के लिए पहले योजना बनाने की आवश्यकता है।

श्रमिकों, स्थानीय समुदायों और ऊर्जा उद्योग के हितों के साथ-साथ ऊर्जा उपयोगकर्ताओं और करदाताओं के हितों को नहीं भूलना चाहिए। कई लोग सोचते हैं कि शायद जल्द ही कोयले के काफी संयंत्र बंद हो जाएंगे, क्योंकि बिजली की कीमतें गिर गई हैं और अक्षय ऊर्जा की प्रतिस्पर्धा मजबूती से हो रही है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि एक सुंदर भविष्य के लिए हमें कोयले से सम्बंधित उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से हटाना ही होगा। कार्बन उत्सर्जन के लिए कोयला संयंत्र सबसे अधिक जिम्मेदार माने गए हैं। हमें बिजली संयंत्रों से कोयला हटाने के लिए अक्षय ऊर्जा को युद्ध स्तर तक बढ़ाना होगा। सरकारों द्वारा अक्षय ऊर्जा उद्योगों को सब्सिडी प्रदान की जानी चाहिए।

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