
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री पिछले पांच वर्षों में 11 गुना बढ़ चुकी है। जहां 2020 में महज 1.75 लाख ईवी रजिस्टर हुए थे, वहीं 2025 में यह आंकड़ा 18.9 लाख तक पहुंच गया। लेकिन इस ऊपरी सफलता के पीछे एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती छिपी है। दरअसल चार्जिंग के लिए इस्तेमाल हो रही बिजली अब भी काफी हद तक जीवाश्म ईंधनों से आ रही है। थिंक टैंक एम्बर की नई रिपोर्ट "फ्रॉम फॉसिल टू फ्लेक्सिबल : एडवांसिंग इंडियाज रोड ट्रांसपोर्ट इलेक्ट्रिफिकेशन" इस विरोधाभास को उजागर कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की ईवी क्रांति अभी अधूरी है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि फिलहाल भारत में ईवी चार्जिंग की 77.7 प्रतिशत बिजली जीवाश्म स्रोतों से आ रही है। इस वक्त राष्ट्रीय बिजली ग्रिड से मिलने वाली हर किलोवॉट-घंटा बिजली में औसतन 727 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।यदि भारत 2032 तक अपनी राष्ट्रीय विद्युत योजना (एनईपी-14) के 486 गीगावॉट पवन और सौर क्षमता लक्ष्य को पूरा कर लेता है, तो यह उत्सर्जन 430 ग्राम तक घट सकता है, और स्वच्छ ऊर्जा का हिस्सा 50 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।
आज भले ही भारत के ईवी टेलपाइप उत्सर्जन यानी वाहन के साइलेंसर (एग्जॉस्ट पाइप) से निकलने वाला धुंए को शून्य करते हैं, जिससे कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड्स, पार्टिकुलेट मैटर और अन्य प्रदूषक उत्सर्जित नहीं होते लेकिन यदि उन्हें कोयले से बनी बिजली से चार्ज किया जाए तो कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 33 से 55 फीसदी तक की ही गिरावट संभव है, वह भी वाहन श्रेणी पर निर्भर करते हुए। रिपोर्ट कहती है कि अगर चार्जिंग पूरी तरह नवीकरणीय ऊर्जा से हो तो यह कटौती और अधिक हो सकती है।
2030 तक भारत में ईवी चार्जिंग की जरूरत करीब 25,300 गीगावाट तक पहुंच सकती है, जो लगभग 14 गीगावाट समर्पित पवन और सौर क्षमता के बराबर होगी। यह एनईपी-14 के 486 गीगावाट लक्ष्य का केवल 3 प्रतिशत है। यानि पूरी मांग को स्वच्छ ऊर्जा से पूरा करना न केवल संभव है, बल्कि बेहद किफायती भी।
रिपोर्ट के मुताबिक देश के 10 प्रमुख राज्यों जिनमें ईवी के वाहनों की बिक्री सबसे ज्यादा की गई है। इनमें 2025 में ईवी बिक्री के आंकड़ों के आधार पर उत्तर प्रदेशशीर्ष पर रहा, जहां 70.6 फीसदी ईवी बिक्री तिपहिया वाहनों की थी। वहीं असम (94.2 फीसदी) और बिहार (78.8 फीसदी) में भी तिपहिया की हिस्सेदारी प्रमुख रही। दूसरी ओर महाराष्ट्र (86.1फीसदी), तमिलनाडु (86.3 फीसदी), कर्नाटक (85.4 फीसदी) और ओडिशा (85.8 फीसदी) में ईवी बिक्री में दोपहिया वाहनों का दबदबा रहा।
चार्जिंग के लिए स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग में कर्नाटक (37.6 फीसदी) सबसे आगे है, उसके बाद ओडिशा (29.8 फीसदी), राजस्थान (24.2 फीसदी) और मध्य प्रदेश (23.8 फीसदी) का स्थान आता है। लेकिन गुजरात (12.3 फीसदी) और तमिलनाडु (12.8 फीसदी) जैसे सौर और पवन समृद्ध राज्य भी जलविद्युत की कमी के कारण साफ बिजली में पिछड़ रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 से लेकर अब तक केंद्र सरकार ने कुल 71,270 करोड़ (करीब 8.6 बिलियन डॉलर) की ईवी प्रोत्साहन योजनाएं लागू की हैं। फेम -I (2015-19) और फेम-II (2019-24) से लेकर 2023 में शुरू हुई ई-बस सेवा और 2024 की पीएम ई ड्राइव योजना तक, इनमें दोपहिया, तिपहिया, चारपहिया, ई-बस, ई-ट्रक और ई-एम्बुलेंस तक शामिल किए गए हैं। इसके साथ-साथ 25 से अधिक राज्यों ने अपनी ईवी नीति लागू की है। 2025 में महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश ने अपनी नीतियों को अपडेट करते हुए 2030 तक के लिए बिक्री लक्ष्यों, चार्जिंग स्टेशन प्रोत्साहन और नवीकरणीय ऊर्जा आधारित चार्जिंग हब जैसे प्रावधान किए हैं।
रिपोर्ट बताती है कि आठ राज्यों, जिनमें असम, बिहार, गुजरात, एमपी, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तमिलनाडु शामिल हैं। इन राज्यों ने टाइम ऑफ डे टैरिफ लागू किए हैं, जिनमें सुबह 10 से शाम 4 बजे के बीच चार्जिंग पर छूट मिलती है, जबकि पीक ऑवर्स (शाम) में अधिक शुल्क लिया जाता है। कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य घरेलू चार्जिंग पर भी टाइम ऑफ डे लागू कर रहे हैं।
लेकिन समस्या यह है कि ज्यादातर चार्जिंग रात को होती है, खासकर घरों में। फिलहाल देशभर में केवल 26,367 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं। इससे टीओडी नीति यानी छूट के साथ दिन में चार्ज करने का लाभ सीमित हो जाता है। रिपोर्ट सुझाती है कि अगर बैटरी स्वैपिंग या कार्यस्थलों और व्यावसायिक केंद्रों पर सार्वजनिक चार्जिंग का विस्तार किया जाए, तो दिन में चार्जिंग और अधिक संभव हो सकेगी।
ग्रीन टैरिफ की व्यवस्था कुछ राज्यों में है, जहां उपभोक्ता अतिरिक्त प्रीमियम देकर 100 फीसदी हरित बिजली खरीद सकते हैं। लेकिन यह सुविधा केवल उन्हीं के लिए है जिनका कनेक्टेड लोड 100 किलोवाट से अधिक है। घरेलू ईवी उपभोक्ता इससे बाहर हैं। साथ ही, उच्च प्रीमियम के चलते अपटेक भी कम है।
रूफटॉप सोलर आधारित चार्जिंग स्टेशन जैसे विकल्प दिल्ली और बेंगलुरु में उभरे हैं, लेकिन उच्च लागत और जगह की कमी इसकी पहुंच को सीमित करती है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि जून 2022 के बाद ओपन एक्सेस नियमों में सुधार हुआ है, जिससे ईवी चार्जिंग स्टेशन अब 100 किलोवॉट लोड पर भी नवीकरणीय बिजली सीधे खरीद सकते हैं, लेकिन अभी भी शुल्क और अनुमति संबंधी अड़चनें बनी हुई हैं।
रिपोर्ट में सुझाया गया है कि ईवी को एक लचीला बिजली उपभोक्ता मानकर योजनाएं बनानी चाहिए। स्मार्ट चार्जिंग तकनीक से पीक लोड प्रबंधन, डिमांड रेस्पॉन्स और एनसिलेरी सर्विसेज संभव होंगी। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि चार्जिंग पैटर्न, समय और स्थान से संबंधित डेटा जुटाया जाए। अभी ज्यादातर ईवी घरों में चार्ज होते हैं, जिससे ग्रिड संचालन के लिए जरूरी जानकारी डिस्कॉम के पास नहीं पहुंचती। रिपोर्ट एक समेकित राज्यवार पीसीएस डेटाबेस बनाने की जरूरत बताती है, जिससे अनारक्षित क्षेत्रों की पहचान और नीति निर्माण दोनों सुदृढ़ हो सकें।