महेश्वर विद्युत परियोजना के सभी समझौते रद्द

मध्य प्रदेश मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दी, नर्मदा बचाओ आंदोलन के अंतर्गत समझौतों को रद्द करने के लिए इस परियोजना से विस्थापित होने वाले 61 गांव के प्रभावित पिछले ढाई दशक से संघर्ष कर रहे थे
महेश्वर विद्युत परियोजना के सभी समझौते रद्द
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27 सितंबर को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने महेश्वर जल विद्युत परियोजना के सम्बंध में निजी परियोजनाकर्ताओं के साथ हुए सभी समझौतों को रद्द करने घोषणा की। मंत्रिमंडल की बैठक में इस परियोजना के तहत किए गए समझौतों को रद्द करने की स्वीकृति दी गई।

जिन समझौतों के रद्द करने की स्वीकृति प्रदान की । उनमें 11 नवंबर 1994 - विद्युत क्रय समझौता, 27 मई 1996 - विद्युत क्रय समझौता संशोधन, 27 मई 1996 - इम्प्लीमेंटेशन एग्रीमेंट, 24 फरवरी 1997 - पुनर्वास व पुनर्स्थापना समझौता, 16 सितंबर 2005 -अमेंडेटेरी एंड रीस्टेटेड एग्रीमेंट शामिल हैं। साथ ही इन समझौतों से जुड़ी राज्य सरकार की सभी गारंटियों और काउंटर गारंटियों को भी रद्द कर दिया गया है।

महेश्वर परियोजना के खिलाफ नर्मदा बचाओ आन्दोलन के अंतर्गत इस परियोजना से होने वाले प्रभावित पिछले 25 वर्षों से लगातार संघर्ष कर रहे थे। प्रभावितों के साथ लगातार संघर्षरत नर्मदा आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यह हमारे संघर्ष की ऐतिहासिक जीत है। आखिर सरकार को यह मानना पड़ा कि हम सही थे, वे गलत थे।

महेश्वर जल विद्युत परियोजना के तहत नर्मदा नदी पर मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में एक बड़ा बांध बनाया जा रहा है। 400 मेगवाट क्षमता वाली इस बिजली परियोजना को निजीकरण के तहत 1994 में एस कुमार समूह की कंपनी श्री महेश्वर हायडल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड को दिया गया था।

राज्य सरकार ने कंपनी के साथ सन 1994 में विद्युत क्रय समझौता और सन 1996 में संशोधित विद्युत क्रय समझौता किया था। इस जनविरोधी समझौते के अनुसार बिजली बने या न बने और बिके या न बिके फिर भी जनता का करोड़ों रुपया 35 वर्ष तक निजी परियोजनाकर्ता को दिया जाता रहना था। इस परियोजना की डूब में 61 गांव प्रभावित हो रहे थे।

इस परियोजना पर लगातार बीते सालों में लगातार अनिमितता के आरोप लगते रहे। इस परियोजना पर सीएजी तक ने अपनी रिपोर्ट इस बात का जिक्र किया है। इस संबंध में नर्मदा बचाओ आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित ने बताया कि इस परियोजना में तमाम वित्तीय अनियमितताएं हुईं और इसके कारण बार-बार परियोजना का कार्य बंद हुआ, परियोजना स्थल की कुर्की हुई और पिछले 12 वर्षों से परियोजना का काम ठप्प पड़ा था।

सीएजी ने वर्ष 1998,  2000, 2003, 2005 और 2014 की पांच रिपोर्टों में महेश्वर परियोजना के संबंध में गंभीर भ्रष्टाचार का खुलासा किया है, 2014 की रिपोर्ट में सीएजी ने तो यहां तक लिखा कि सरकार क्यों नहीं महेश्वर परियोजना का समझौता रद्द करती।

इसके अलावा भारतीय औद्योगिक वित्त निगम (आईएफसीआई) ने अपनी 2001 के रिपोर्ट में भी स्पष्ट कहा था कि परियोजनाकर्ता एस. कुमार्स ने तमाम बैंक व सरकारी संस्थायों से महेश्वर परियोजना के लिए लिये गये 106.4 करोड़ रुपये को उसी ग्रुप की अन्य कम्पनी को डाइवर्ट कर दिया था। इस कारण नर्मदा बचाओ आन्दोलन ने बार-बार यह मांग की थी कि परियोजना के लिए आये सार्वजनिक पैसे का फोरेंसिक ऑडिट किया जाए।

400 मेगावाट क्षमता की महेश्वर जल विद्युत् परियोजना से मात्र 80 करोड़ यूनिट बिजली पैदा होना प्रस्तावित है। अभी जारी आदेश में स्वीकार किया गया है कि इसकी बिजली की कीमत 18 रूपये प्रति यूनिट से अधिक होगी। मध्य प्रदेश में वर्तमान में बिजली प्रदेश की समूची मांग पूरी करने के बाद भी 3,000 करोड़ यूनिट अतिरिक्त है और वर्त्तमान में बिजली 2.5 रु/ यूनिट की दर पर उपलब्ध है। अतः महेश्वर की बिजली बनती भी तो खरीदी नहीं जा सकती थी।

परन्तु महेश्वर परियोजनाकर्ता से हुए विद्युत क्रय समझौते के अनुसार बिजली न खरीदने पर भी सरकार को निजी परियोजनाकर्ता को लगभग 1,200 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष, 35 वर्ष तक देना पड़ता। अतः साफ है कि 35 वर्ष में बिना बिजली खरीदे 42,000 करोड़ों रुपए मध्य प्रदेश की जनता की जेब से जाते। अतः परियोजना रद्द होने से जनता के यह 42,000 करोड़ रुपए लुटने से बच गये।

मध्य प्रदेश के जबलपुर स्थित बरगी बांध विस्थापित संघ के सदस्य राजकुमार सिन्हा ने बताया कि महेश्वर परियोजना निजीकरण के नाम पर जनता की लूट का एक वीभत्स उदाहरण है। शुरू से ही इस परियोजना का उद्देश्य जनता के पैसे की लूट था, जिसे विस्थापितों के आन्दोलन ने लगातार भयावह दमन सहते हुए पूरी ताकत से उठाया और अंतत: उनकी जीत हुई। 

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