उत्तराखंड में 14 फरवरी को मतदान है। राज्य के दोनों प्रमुख दलों भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने घोषणा पत्र के जरिये राज्य के अगले 5 साल के विकास कार्यों की तस्वीर पेश की है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते राज्य में आ रही आपदाओं और उससे निपटने के लिए घोषणा पत्र में कोई ठोस बात नहीं की गई है। वन और जल संसाधनों के जरिये अधिक से अधिक राजस्व जुटाना लक्ष्य रखा गया है।
भाजपा के घोषणा पत्र में पर्यावरण से जुड़े मु्द्दे
भाजपा ने प्लास्टिक मुक्त उत्तराखंड बनाने और सिंगल यूज प्लास्टिक पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कही है। प्रदूषण से निपटने के लिए प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से अनुसंधान और नवाचार परियोजनाओं को बढ़ावा देने का वादा किया है। जंगल की आग पर काबू के लिए रिस्पॉन्स सिस्टम को बेहतर बनाने की बात की है।
वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही के लिए वन्यजीव कॉरीडोर बनाने और मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए ट्रैकिंग प्रौद्योगिकी पर जोर दिया गया है।
शहरी क्षेत्रों में पर्यावरण फ्रेंडली परिवहन के लिए 1000 इलेक्ट्रिक बसें लाने का वादा है।
पर्यटन बढ़ाने के लिए 20 नए इको-टूरिज्म स्पॉट विकसित करने के साथ ही राज्य में पर्यटकों की संख्या तीन गुनी करने के लिए 45 नए हॉटस्पॉट बनाने की योजना है। औली में स्नो फेस्टिवल, मुनस्यारी के बेतुलीधर, चकराता के मुंडाली और उत्तरकाशी के दयारा बुग्याल को स्कीइंग स्थलों के रूप में बढ़ावा देने की महत्वकांक्षी योजनाएं हैं।
भाजपा ने “मिशन हिमवंत” की महत्वपूर्ण घोषणा की है। जिसमें भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए जरूरी कदम उठाने और सड़क किनारे ढलानों को मजबूत बनाई जाएंगी।
कृषि क्षेत्र में उत्तराखंड ऑर्गेनिक्स ब्रांड बनाने की योजना है। राज्य के 3500 गांवों में 100% प्राकृतिक कृषि का प्लान है।
सड़क इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने पर घोषणा पत्र में जोर दिया गया है। देहरादून-पांवटा साहिब, सितारगंज-टनकपुर, रुद्रपुर-काठगोदाम, रुड़की-छुटमलपुर-गणेशपुर की सड़कें अपने साथ पेड़ों को कटने की स्थितियां लेकर आएंगी। देहरादून और आसपास सड़क समेत अन्य निर्माण कार्यों के लिए काटे जा रहे पेड़ों को लेकर पहले ही प्रदर्शन हो चुके हैं।
सड़क के साथ रेल और रोपवे के विकास की भी योजनाएं हैं। रोपवे विकास निगम के जरिये राज्य के 10 पहाड़ी जिलों में रोपवे परिवहन नेटवर्क बनाने की बात कही गई है।
सौर ऊर्जा से जुड़ी परियोजनाओं को प्राथमिकता दी गई है। राज्य में सभी ऊर्जा इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को तय समय पर पूरा कर कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता 6000 मेगावाट का लक्ष्य है। इसके अलावा टिहरी में कोटली भेल जलविद्युत परियोजना का निर्माण करने की भी बात कही गई है।
राज्य की सभी नदियों को सदानीरा बनाए रखने के लिए मिशन भागीरथी का जिक्र है।
कांग्रेस का घोषणा पत्र और पर्यावरण के सवाल
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वन, वन कानून, वन पंचायत जैसे मुद्दों को भी शामिल किया है। इसमें कहा गया है कि वन कानून के चलते पहाड़ के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है। इसमें आवश्यक बदलाव के लिए कदम उठाए जाएंगे। राज्य में वर्ष 1981 से 1000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पेड़ों का कटान प्रतिबंधित है। इसे जंगल की आग की एक वजह भी माना जाता है। बेहतर वन प्रबंधन के लिए राज्य में बढ़ते चीड़ के जंगलों को कम करने को कहा गया है। वन पंचायतों को मजबूत बनाने और स्वायत्तता देने का वादा किया गया है।
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ग्रीन बोनस की मांग को शामिल किया है।
पहाड़ में जंगली जानवरों से फसलों को नुकसान एक बड़ी चुनौती बन गई है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सूअर, बंदर, लंगूर, भालू और पक्षियों से फसल को नुकसान को मुआवजे के दायरे में लाने और सूअर-बंदर के नुकसान पर देने वाले मुआवजे को बढ़ाने का वादा किया है।
पहाड़ से पलायन रोकने के लिए अपने मूल गांवों में रह रहे लोगों को विशेष प्रोत्साहन राशि और बिजली-पानी के बिल में विशेष छूट देने की घोषणा की गई है।
राज्य के छोटे-छोटे गदेरों, जल स्रोतों, नदियों, झीलों में मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की बात कही गई है। सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देंगे। बंजर खेतों में पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा गया है। बंजर खेतों और जल स्रोतों के पुनर्जीवन के लिए पर्वतीय कृषि सहायता कार्यक्रम की बात कही गई है।
वन संसाधन को पर्यटन से जोड़ने की योजनाएं कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी शामिल हैं। बायो फ्यूल और ग्रीन फ्यूल को आगे बढ़ाने की बात है। 5 किलोवाट तक सोलर विकसित करने के लिए 90 प्रतिशत सब्सिडी देने की योजना है।
कांग्रेस ने पर्यावरण संतुलन संरक्षण एवं विकास को देखते हुए हरित विकास मॉडल विकसित करने की बात कही है। वन संसाधन का आर्थिक लाभ, नदियों के बर्फीले पानी में कोल्ड स्टोरेज बनाने, राजस्व के लिए खनन पर जोर दिया गया है।
पर्यावरण-जलवायु परिवर्तन चुनाव में मुद्दे क्यों नहीं?
पिछले वर्ष तकरीबन इसी समय चमोली जैसी भीषण आपदा और अक्टूबर में तीव्र बारिश से तबाही झेलने वाले राज्य में सियासी दलों ने जलवायु परिवर्तन पर कोई महत्वपूर्ण बात नहीं की है।
पर्यावरणविद् अनिल जोशी कहते हैं “चुनाव उन्हीं मुद्दों पर लड़े जाते हैं जिन पर राजनीतिक दलों को जनता का झुकाव दिखता है। इसीलिए चुनाव में अस्पताल, शिक्षा, सड़क ही मुद्दे बनाए जाते हैं। जब तक लोग पर्यावरण को मुद्दा नहीं बनाएंगे, तब तक राजनीतिक दल घोषणा पत्रों में पर्यावरण के मुद्दों को प्रमुखता से शामिल नहीं करेंगे। मुफ्त चीजों का वादा ही चुनाव का चलन बन गया है। इसके लिए हम लोग ही जिम्मेदार हैं”।