डॉ. अनिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 फरवरी 2022 को अपनी चुनावी वर्चुअल रैली में बिजनौर के महान कवि दुष्यंत की यह लाइनें पढ़ीं कि 'यहां तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियां, मुझे मालूम है कि पानी कहां ठहरा हुआ होगा'।
बस सवाल यही है कि क्या किसानों के गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नहीं जानते कि जिस पानी पर उनका पूरा जीवन टिका है, क्या वे वाकई नहीं जानते कि पानी कहां ठहरा है?
नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के आम चुनाव के वक्त उत्तर प्रदेश में प्रचार की शुरुआत बिजनौर से ही की थी और इस बार के विधानसभा चुनाव की शुरुआत भी बिजनौर से ही की। अंतर इतना था कि इस बार वर्चुअल रैली के माध्यम से ही जनता को संबोधित किया।
यूपी के प्रथम चरण के चुनाव में 11 जिलों की 58 सीटों पर दो दिन बाद मतदान होना है और पश्चिम यूपी में मतदाताओं का रुझान ही सत्ता के दरवाजे तक पहुंचाने में महती भूमिका अदा करेगा। यही वजह है कि सभी दलों के नेता यहां दिनरात एक किए हैं।
हर कोई इस क्षेत्र को प्रयोग के तौर पर देख रहा है। और देखे भी क्यूं न। यह चुनाव जो आम जनता के मुद्दों पर लड़ा जाना चाहिए था, धीरे-धीरे जाति-धर्म, दंगा, बंटवारा और जिन्ना पर लाकर खड़ा कर दिया गया है। महंगाई, गरीबी, चिकित्सा-स्वास्थ्य, सड़क-बिजली-पानी, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दे अधिकांश पार्टियां हजम कर गई हैं।
पश्चिम यूपी की इन 58 सीटों में से 53 पर अभी भाजपा काबिज है। इसमें दो-दो सपा और बसपा और एक रालोद ने जीती थी। भाजपा ने यहां एक तरफा जीत हासिल की थी, लेकिन क्या भाजपा इसे दोहराएगी? 13 माह दिल्ली में चले किसान आंदोलन के चलते यह सवाल बार-बार दोहराया जा रहा है।
2014 की रैली में प्रधानमंत्री ने कहा था कि किसानों को गन्ने का भुगतान 15 दिन नहीं बल्कि 14 दिन के अंदर कराया जाएगा। न होने की स्थिति में ब्याज सहित भुगतान की गारंटी दी जाएगी, लेकिन आज जब उन्होंने प्रदेश की पहली चुनावी रैली को संबोधित किया तो उन्होंने यह तो गिनाया कि हमने गन्ने की कितनी खरीदी की और कितना भुगतान किया है लेकिन 14 दिन और ब्याज वाली बात भुला दी।
यही नहीं उन्होंने खुद को चौधरी चरण सिंह का वारिस तो बताया लेकिन पहली रैली में चौधरी चरण सिंह कल्याण कोष की स्थापना का वादा वह सिरे से ही भूल गए और सरकार की उपलब्धियों के अलावा कानून व्यवस्था के माध्यम से ही सरकार चलाने की खूबी का बखान किया।
मोदी जी अपने पूरे भाषण में किसान आंदोलन की परछाई से बचने के लिए प्रयासरत दिखे। किसान नेता दिगंबर सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री के भाषण में ब्याज सहित गन्ना भुगतान की बात सिरे से गायब रही। वहीं बजट में भी किसानों को जो उम्मीद थी वह पूरी नहीं हुई। इसलिए किसान इस बार लखीमपुर कांड और बजट में किसानों की अवहेलना को ध्यान में रखकर ही मतदान करेगा। वहीं, सरदार दलजीत सिंह का मानना है कि जाति और धर्म के आधार पर वोटों की फसल काटने वालों को इस बार निराश होना पड़ेगा।
दरअसल, इस क्षेत्र के किसानों के लिए गन्ने की कीमत और देरी से भुगतान एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। किसानों का कहना है कि जिस तरह से फसल की लागत और खर्च बढ़ रहे हैं। गन्ने का दाम नहीं मिल रहे हैं। इतना ही नहीं, चीनी मिलें 14 दिन तो दूर 14 माह में भी भुगतान नहीं कर रही हैं।
10 दिसंबर 2021 को संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा था कि गन्ने का कुल बकाया 4,445 करोड़ रुपए था, जिसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में 3,752 करोड़ रुपया बकाया था। किसानों का कहना है कि चुनान की घोषणा के बाद सरकार ने बकाया भुगतान की प्रक्रिया तेज तो कर दी, लेकिन अभी भी कोई सुव्यवस्थित तरीका नहीं अपनाया जा रहा है, ताकि चुनाव के बाद समय पर किसानों को उनका पैसा मिल जाए।
क्यों हुई वर्चुअल रैली
प्रधानमंत्री ने बिजनौर की चुनावी रैली को वर्चुअल रैली में बदलने के लिए बताया कि यहां का मौसम खराब है, लेकिन जानकारों की माने तो बिजनौर का राजनीतिक मौसम बहुत गर्म था। जानकारों का मानना है कि बिजनौर के किसान उनको अपने 2014 के भाषण की याद दिला सकते थे, जिसमें उन्होंने ब्याज सहित गन्ना भुगतान और चौधरी चरण सिंह कल्याण कोष की स्थापना की बात कही थी। इसलिए विरोध से बचने के लिए चुनावी रैली को स्थगित किया गया।
बजट का चुनाव पर असर
जानकारों का मानना है कि मोदी जी अपने बजट के जरिए किसानों को बहुत कुछ दे सकते थे जैसे कि किसानों को उम्मीद थी ₹6000 सालाना के बजाय किसानों को ₹12000 देने की व्यवस्था बजट में की जाएगी जो कि नहीं हुई। इसके अलावा खाद-बीज और कीटनाशक पर भी सब्सिडी की उम्मीद थी लेकिन उससे निराशा ही हाथ लगी जिससे किसानों की नाराजगी कम नहीं हुई। इसीलिए भाजपा पश्चिम में तुष्टीकरण के नाम पर जाति और धर्म का सहारा लेकर चुनावी समर में है।
जाटलैंड के नाम से विख्यात इस क्षेत्र में कवाल कांड से उपजी हिंसा के बाद जाटों को भाजपा ने हिंदू एकता के नाम पर अपने पक्ष में खड़ा कर इन सीटों पर फतह हासिल की थी, लेकिन किसान आंदोलन ने उस फतह का रास्ता रोकने का काम किया है। बल्कि भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के आंसूओं ने किसान बिरादरी और खासकर जाटों को एकजुट करने का काम किया और इस बहाने हिंदू-मुस्लिम एकता को भी बल मिला। लेकिन अभी भी वही सवाल उठ रहा है कि क्या वाकई किसान नहीं जानता कि पानी कहां ठहरा हुआ है?